संघ का शताब्दी वर्ष : संघ के योगदान पर एक दृष्टि

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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ(संघ)  एक सामाजिक, सांस्कृतिक, गैर- राजनीतिक एवं राष्ट्रवादी संगठन है जिसकी स्थापना सन् 1925 में महाराष्ट्र के नागपुर में डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने की थी। हेडगवार जी  प्रारंभ में कांग्रेस से जुड़े नेता थे लेकिन कांग्रेस से वैचारिक मतभेदों की वजह से वह कांग्रेस पार्टी छोड़ दिए और “राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ” की स्थापना किए थे। (माधव गोविंद वैध,राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का परिचय,पृष्ठ,11- 13)। संघ वैश्विक स्तर का सबसे बड़ा सामाजिक एवं सांस्कृतिक संगठन है। इसका लक्ष्य भारत को अखंड सांस्कृतिक  राष्ट्र के रूप में स्थापना है। संघ ने भारत की बुनियाद को मजबूत किया है। भारत की संप्रभुता की रक्षा किया है। कमजोर वर्गों को सशक्त बनाया है, और भारतीय सभ्यता के मूल्यों का उन्नयन किया है।

 

संघ नि:स्वार्थ सेवा का जीवंत प्रतीक है। राष्ट्र का निर्माण व्यक्तियों के उत्तम एवं संगत चरित्र से होता है। संघ दैनिक शाखाओं एवं सप्ताहिक मिलन कार्यक्रमों से, एवं संकल्पित भावना से राष्ट्र- निर्माण में सहयोग करता है। समर्पित एवं आत्माप्रित भाव से समाज के प्रत्येक क्षेत्र में स्वयंसेवक काम कर रहे हैं। उनका मौलिक उद्देश्य भारत को परम वैभव, सर्वशक्तिमान एवं वैश्विक गुरु के तौर पर स्थापित करना है। शताब्दी वर्ष का यही संकेत है कि हिंदू समाज को संगठित करके, समाज में सज्जन शक्तियों का प्रसार करके, समाज को एकजुट करके, सभी व्यक्तियों में सदभाव व स्नेह का वातावरण उत्पन्न करके राष्ट्रीय एकता एवं सांस्कृतिक गौरव का उन्नयन किया जा सके।

                                                     

पंच परिवर्तन के द्वारा संघ समाज और व्यवस्था में परिवर्तन का संदेश देता है। सामाजिक समरसता में जाति के भेदभाव से ऊपर उठकर समाज की एकात्मकता पर बल दिया जाता  है। सशक्त समाज के लिए जाति रूढ़ मानसिकता को तोड़ना होगा। परिवार – प्रबोधन को  भारतीय जीवन का मूल आधार माना गया है।  पर्यावरण संरक्षण के द्वारा प्रकृति और पर्यावरण के मध्य समन्वय स्थापित करके सतत विकास का रोडमैप तैयार किया जाता हैं । पर्यावरण संरक्षण भारत के संविधान के अंतर्गत मौलिक कर्तव्य की श्रेणी में है जो नागरिकों का मूल कर्तव्य है और इसकी प्रकृति नैतिक आधार की है। आत्मपरिष्कार एवं स्वाध्याय से प्रत्येक स्वयंसेवक को अपने भीतर अनुशासन एवं साधना का भाव जागृत करने की प्रेरणा मिलती है। राष्ट्रीय आत्मनिर्भर एवं एकात्मकता से समाज एवं राष्ट्र के प्रति सेवा ,समर्पण, एवं त्याग का भाव उत्पन्न हो सकेगा ।

                                                     

भारत में भूकंप, बाढ़, चक्रवात, महामारी एवं अन्य प्राकृतिक आपदाएं आती रहती हैं, इन आपदाओं में स्वयंसेवकों ने राहत  कार्यों में उल्लेखनीय योगदान दिए हैं। संघ के दूसरे  सरसंघचालक आदरणीय माधव सदाशिव  गोलवलकर उपाख्य  गुरूजी ने भारत विभाजन की क्रूर परिस्थितियों में अपने प्राणों की परवाह किए बिना कराची में मुस्लिम उन्मादियों के विरुद्ध हिंदुओं को संगठित किया था । 1947 – 48 में पाकिस्तान समर्थित कबायली हमलावरों ने तत्कालीन जम्मू – कश्मीर पर आक्रमण किया तो तत्कालीन गृहमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल ने महाराजा  हरिसिंह जी को विलय के लिए सहमत करने के लिए दूसरे सरसंघचालक माधव सदाशिव गोलवलकर उपाख्य गुरूजी का सहयोग माँगा । गुरुजी ने श्रीनगर जाकर हरिसिंहजी  को विलय के लिए राजी किया था । संघ के स्वयंसेवकों ने 1947- 48 के युद्ध के दौरान  सेना की सहायता की थी । शरणार्थियों के लिए राहत कार्यों की व्यवस्था संभाली थी। दादरा एवं नगरहवेली को पुर्तगाली शासन से मुक्त करने में स्वयंसेवकों ने अग्रणी भूमिका निभाई थी। पुर्तगाली सैनिकों की गोलीबारी में कई स्वयंसेवकों ने अपने प्राणों को  न्यौछावर किया था ।

                                                       

संघ ने सामाजिक समरसता को बढ़ाने में बहुत अधिक कार्य किया है। सामाजिक समरसता में संघ ने जाति भेदभाव से ऊपर उठकर समाज की एकात्मकता पर जोड़ दिया है। संघ के पंचम  सर – संघचालक के .सी.सुदर्शन जी ने हिंदू समाज की कुरीतियों को समाप्त करने में अग्रणी भूमिका  निभाए थे । वह सामाजिक कुरीतियों को विकास और सशक्त समाज के निर्माण में बाधा मानते थे। उन्होंने कन्या भ्रूण हत्या को रोकने में समाज के भूमिका को आवाहन किए थे। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने समय-समय पर व्याख्यान ,कार्यशालाएं, सामाजिक समरसता को लेकर जन जागरण ,सेवा कार्यों को लेकर समाजिक एकता  और सहयोग को प्रोत्साहित किए है। संघ का मूल उद्देश्य एक समरस ,संगठित, एवं सशक्त राष्ट्र- निर्माण में है जहां किसी व्यक्ति में उच्च – नीच का भेदभाव ना हो और सभी को समान अधिकार, सम्मान, एवं अवसर मिले। संघ के “ पंच परिवर्तन” एवं विभिन्न कार्यक्रमों जैसे रक्षाबंधन , समरसता भोज सभी समाज में बंधुता, समभाव, एवं एकात्मकता के उन्नयन में सहयोगी है। सामाजिक एकता, समरसता, तथा राष्ट्र भावना के प्रत्यय को बढ़ाकर समाज के सभी वर्गों के समन्वय को उत्कृष्ट प्रयास किया है।

 

संघ  ने राष्ट्र के नैतिक और सांस्कृतिक पथ को नवीन आयाम एवं दिशा प्रदान किया है। अपने असाधारण कार्य क्षमता,  विवेकी कौशल एवं रचनात्मक कार्यक्रमों से राष्ट्र की सेवा किया है। यह भारत माता के प्रति सच्ची भावना, व्यक्तिगत त्याग एवं उद्देश्य की स्पष्टता से भारतमाता को परम वैभवशाली बनाने में समर्पित रहे हैं। स्वयं शाखाओं के माध्यम से एवं अपने विवेकी  कौशल से निरंतर कार्यकर्ताओं से संपर्क एवं संवाद करके राष्ट्र के लिए समर्पित रहते हैं। संघ सदैव श्रेष्ठकार्यपद्ति और बदलते समय के प्रति खुले दिमाग एवं मन से काम करना स्वयंसेवकों की ऊर्जा है। उनके विचारों में स्पष्टता ,कार्यों में भरपूर ऊर्जा एवं लक्ष्य के प्रति मजबूत संकल्प  संघ की विशिष्ट विशेषता है।

                                                   

शाखा संघ की आधारभूत संगठनात्मक इकाई है जो संघ को जमीनी स्तर पर जोड़ती है। शाखा वह कार्यस्थल है जहां संघ के स्वयंसेवकों को वैचारिक और शारीरिक रूप से प्रशिक्षित किया जाता है। अधिकांश शाखाएं प्रत्येक दिन सुबह  और शाम को चलाई जाती हैं। कुछ मंडलों एवं जिलों में साप्ताहिक मिलन के स्तर पर चलती हैं। भारत में 83000 से ज्यादा शाखाएं हैं। शाखा में शारीरिक व्यायाम एवं खेलों के साथ-साथ ‘ सामूहिक काम ‘ एवं ‘ नेतृत्व कौशल’ से जुड़े काम होते हैं एवं ‘ आवागमन’ (Marching) और आत्मरक्षा की तकनीक सिखाई जाती है। शाखाओं में स्वयंसेवकों को वैचारिक शिक्षा दी जाती है। शाखा में ही स्वयंसेवकों को हिंदुत्व,हिंदू राष्ट्रवाद एवं संघ के अन्य मौलिक सिद्धांतों के विषय में सिखाया जाता है।

                                                 

 संघ एक आत्मनिर्भर संगठन है और संघ अपने कार्यों के लिए बाहर से कोई पैसा नहीं लेता है, भले ही वह स्वेच्छा से दिया हो। संघ अपना खर्चा ‘ गुरुदक्षिणा ‘ से पूरा करता है जो वर्ष में एक बार संघ के स्वयंसेवक “भगवाध्वज “ को गुरु मानकर समर्पित करते हैं। स्वयंसेवक बहुत सी समाजसेवा की गतिविधियां करते हैं एवं उन्हें समाज से सहायता मिलती है। इन सामाजिक कार्यों के लिए स्वयंसेवकों ने ‘ न्यास ‘ बनाया है जो विधि के सीमाओं में रहकर पैसा एकत्रित करते हैं और संगठन के काम चलाते हैं। डॉ. मोहन भागवत जी के अनुसार संघ व्यक्तियों का एक समूह है।(body of individuals)। संघ के मुताबिक, 922 जिले 6597 खंड और 27720 मंडल में 83129 दैनिक शाखाएं हैं। प्रत्येक मंडल में 12 से 15 गांव शामिल है।  संघ  कई संगठनों का समूह है. इन संगठनों को संघ का “ आनुषांगिक संगठन” कहा जाता है। इस पूरे समूह को संघ परिवार कहा जाता है।

                                       

संघ का स्वयंसेवक वैभव संपन्न भारत माता का सपना साकार होते देखना चाहता है। इस सपने को पूरा करने के लिए जिस दृष्टिकोण एवं  कार्ययोजना  पर कार्य की आवश्यकता है। संघ निरंतर इस कार्ययोजना  एवं सम्मिलित दृष्टिकोण पर कार्य कर रहा है।

 

डॉ.बालमुकुंद पांडे

राष्ट्रीय संगठन सचिव

अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना झंडेवालान नई दिल्ली।
 

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