अनुपम औषधि है पानी

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पानी जीवन का अनिवार्य एवं बहुमूल्य पोषक तत्व है। यह जीवन रक्षक तथा जीवन के लिए अमृत है। भोजन के बिना कुछ दिन जीवित रहा जा सकता है पर पानी के बिना नहीं। यदि उचित मात्रा में पानी न पिया जाए तो मानव शरीर के सभी अंग उससे प्रभावित होने लगते हैं।
शरीर की आवश्यकताओं के अनुरूप पानी न पीकर बहुत से लोग अपने शरीर पर चर्बी चढ़ा लेते हैं। पानी की कमी से शरीर के अंग कमजोर पड़ जाते हैं, पाचन क्रिया खराब हो जाती है तथा शरीर में विषैले पदार्थ तेजी से बढ़ने लगते हैं।
व्यक्ति को प्रतिदिन कम से कम ढाई लिटर (आठ से दस गिलास) पानी अवश्य पीना चाहिए। पानी में अनेक रोगों के निवारण की शक्ति निहित है। इसलिए प्राकृतिक चिकित्सा शास्त्रा में पानी के इलाज पर काफी जोर दिया जाता है।
पानी सर्वसुलभ उत्तम दवा है। पाचन क्रिया को सही रखने और आहार को शरीर का अंग बनाने में भी पानी महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। यह पचे हुए आहार और आक्सीजन को रक्त के द्वारा शरीर के स्नायुओं तक पहुंचाता है और साथ ही साथ पसीने के द्वारा शरीर को ठंडा रखने में भी सहायक साबित होता है।
प्रातः काल सूर्योदय से पूर्व उठ कर नित्य क्रिया से पूर्व रात का रखा हुआ जल प्रतिदिन सवा लिटर ‘लगभग चार गिलास’ अवश्य पीना चाहिए। जल ग्रहण करने के पैंतालीस मिनट तक कुछ भी खाना-पीना नहीं चाहिए। इस दौरान नित्य क्रिया अथवा अन्य क्रियाएं की जा सकती हैं।
इस प्रकार जल सेवन से मधुमेह, रक्तचाप, उदर संबंधी, बीमारी, मूत्रा रोग (पथरी, धातुस्राव इत्यादि) सिर दर्द, मानसिक दुर्बलता, मोटापा, बुखार आदि नई अथवा पुरानी अनेक बीमारियों में लाभ मिलता है।
बीमार या नाजुक प्रकृति के लोग जो एक ही बार में चार गिलास पानी न पी सकें, उन्हें एक या दो गिलास से प्रारंभ कर धीरे-धीरे चार गिलास तक आना चाहिए। फिर उसे नियमित पीना चाहिए। एक साथ चार गिलास पानी पीने से स्वास्थ्य पर कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ता। शुरूआत के तीन चार दिनों तक प्रारंभ में मूत्रा त्याग की जल्दी-जल्दी इच्छा होती है परन्तु बाद में यह सामान्य हो जाता है।
पानी पूर्ण मनोयोग से व्यवस्थित रूप से ’बैठ कर पीना चाहिए। पानी कभी भी हड़बड़ी में नहीं पीना चाहिए। गर्म वस्तु जैसे  चाय, काफी, दूध आदि पीने के तुरन्त बाद पानी नहीं पीना चाहिए। भोजन करने के एक घंटा बाद या आवश्यकता पड़ने पर दो चार घूंट अन्न नलिका साफ करने के उद्देश्य से ही पीना चाहिए।
प्रस्तुत हैं पानी के औषधीय गुणों पर नजर:-
 पानी गुर्दे को स्वच्छ और क्रियाशील बनाता है जिससे पथरी बनने की संभावना समाप्त हो जाती है।
 पानी पेट के रोगों को दूर करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। पर्याप्त मात्रा में पानी का सेवन करने वालों को प्रायः कब्ज का रोग नहीं होता।
 ठंडे पानी की पट्टी तीव्र ज्वर को उतारने में सहायक होती है।
 जलने की दशा में शरीर के जले हुए भाग को तुरन्त थोड़ी देर के लिए पानी में डुबोये रखने से फफोले नहीं पड़ते और जलन भी मिट जाती है।
 प्रातः काल तांबे के पात्रा में रखा हुआ पानी नियमित पीने से उदर रोग मिटता है और मानसिक शांति प्राप्त होती है।
 गर्मी के दिनों में पेट में पानी की समुचित मात्रा रहने से लू लगने की संभावना नहीं रहती।
 गुनगुने पानी में नींबू और शहद मिलाकर नियमित पीने से त्वचा में निखार आता है।
इस प्रकार नियमित जल सेवन से स्वस्थ रह कर दीर्घायु और सुखी जीवन व्यतीत किया जा सकता है। अतः पानी पीने में कतई कंजूसी नहीं करनी चाहिए।
 

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