संवाद के जरिये मतभेदों को दूर करने का रास्ता है मध्यस्थता: बी आर गवई

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भुवनेश्वर, 28 सितंबर (भाषा) भारत के प्रधान न्यायाधीश बी.आर. गवई ने कहा कि मध्यस्थता और मुक्त संवाद मतभेदों को बातचीत के जरिये दूर करने, तनाव को सौहार्द में बदलने और पक्षों के बीच सद्भाव बहाल करने के रास्ते हैं।

भुवनेश्वर में शनिवार को हुए दो दिवसीय राष्ट्रीय मध्यस्थता सम्मेलन के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि सदियों से विभिन्न समाजों में मध्यस्थता की प्रथा चली आ रही है और मध्यस्थता अधिनियम, 2023 के बनने के बाद इसे कानूनी मान्यता मिली है।

प्रधान न्यायाधीश ने कहा, “मैं यह कहना चाहूंगा कि हमारी शांति तभी भंग होती है जब हम झगड़े या असहमति को सुनने, समझने और उसे सुलझाने की ईमानदारी से कोशिश करने से इनकार कर देते हैं। संघर्ष को अगर रचनात्मक तरीके से निपटाया जाए तो वह आगे बढ़ने का अवसर बन सकता है।’’

उन्होंने कहा कि यह अधिनियम न्याय को सहभागितापूर्ण, समान और सुलभ बनाता है, साथ ही अदालतों में लंबित मामलों की बढ़ती संख्या को भी कम करने में मदद करता है।

राज्यपाल हरिबाबू कंभमपति, मुख्यमंत्री मोहन चरण मझी, ओडिशा उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश हरीश कुमार टंडन और उच्चतम न्यायालय के न्यायमूर्ति सूर्यकांत सहित अन्य गणमान्य व्यक्ति इस समारोह में उपस्थित थे।

सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए राज्यपाल कंभमपति ने कहा कि मध्यस्थता केवल विवाद सुलझाने के लिए नहीं है, बल्कि यह विश्वास कायम करने, रिश्तों को बचाने और सामाजिक सौहार्द कायम करने का भी तरीका है।

राज्यपाल ने कहा, “मध्यस्थता एक पुरानी प्रथा है जो बातचीत और आम सहमति पर आधारित है। इससे मतभेद दूर होते हैं, रिश्ते सुधरते हैं और न्यायसंगत व स्थायी समाधान मिलता है।”

मुख्यमंत्री मोहन चरण माझी ने न्यायिक सुधारों और वैकल्पिक विवाद समाधान के प्रति ओडिशा की प्रतिबद्धता दोहराई।

उन्होंने कहा कि यह सम्मेलन मध्यस्थता को भारत की न्याय प्रणाली का मुख्य आधार बनाने के प्रयासों को और मजबूत करेगा, जिससे कानूनी प्रक्रिया में दक्षता, समावेशिता और विश्वास सुनिश्चित होगा।

न्यायमूर्ति टंडन ने कहा कि ओडिशा ने मध्यस्थता सेवाओं के विस्तार के लिए सार्थक कदम उठाए हैं।

उच्चतम न्यायालय विधिक सेवा समिति के अध्यक्ष न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा, “हमारे बुजुर्ग कभी बरगद के पेड़ के नीचे इकट्ठा होकर विवादों को सुलझाते थे ताकि फिर से सौहार्द स्थापित हो सके। 2023 का मध्यस्थता अधिनियम उसी भावना को दर्शाता है।”

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