धरती का सच और हमारा कल

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इंसान का इतिहास दो तस्वीरों में बँटा है। पहली तस्वीर—जिसमें इंसान खेतों में अनाज उगाता है, पुल बनाता है, नदियों पर बाँध खड़ा करता है, बीमार का इलाज करता है, और बच्चों को पढ़ाता है। दूसरी तस्वीर—जिसमें वही इंसान धरती के टुकड़े करता है, दूसरों को नीचा दिखाने के लिए हथियार बनाता है, और अपने छोटे स्वार्थों के लिए लाखों की जान लेता है।

हमारी सभ्यता की शुरुआत सहयोग से हुई थी। जब हम शिकारी-फ़सल काटने वाले समाज से आगे बढ़े, तो एक-दूसरे पर निर्भर रहने की आदत बनी लेकिन समय बीतते-बीतते हमने अपनी पहचान को छोटे-छोटे खाँचों में बाँट दिया—जाति, धर्म, भाषा, प्रांत और देश। अब यह खाँचे दीवारों में बदल गए हैं और उन दीवारों को गिराने की जगह हम उन्हें और ऊँचा कर रहे हैं।

पूर्वी उत्तर प्रदेश का एक छोटा गाँव। गली के नुक्कड़ पर चायवाले की केतली हमेशा खौलती रहती है।

यहीं एक दिन एक बाहरी आदमी आया। उसने धीरे-धीरे कुछ घरों में बैठना शुरू किया। वह कहता—

“तुम्हारा धर्म अलग है, तुम्हारी पूजा अलग है। पड़ोसी तुम्हारे भाई नहीं हो सकते।”उनका धर्म अलग है । हम लोगों का धर्म अलग है। हमलोग गाय की पूजा करते हैं, वे लोग उसे काटकर खाते हैं। इसी तरह की बहुत सारी एकदूसरे धर्म वाले से नफ़रत की बातें करते ।

पहले लोग हँसकर बात टाल देते, लेकिन बीज बो दिया गया था। महीनों में शक की बेल फैल गई। त्योहारों की मिठाई का आदान-प्रदान बंद हो गया। एक दूसरे के पर्व त्योहार पर आना जाना खत्म सा हो गया।

एक दिन किसी छोटी बात पर मारपीट हो गई। गाँव के बीच दीवार खिंच गई।

जो कल तक एक-दूसरे की फसल काटने में मदद करते थे, अब बात तक नहीं करते।

यह कहानी सिर्फ़ उस गाँव की नहीं—यह हर जगह हो रही है।

इंसान ने चाँद पर झंडा गाड़ दिया, मंगल की मिट्टी का नमूना ला लिया, और समुद्र की गहराई में कैमरे उतार दिए लेकिन यही इंसान अगर चाह ले, तो एक बटन दबाकर पूरी धरती को राख में बदल सकता है।

दुनिया में इतने परमाणु हथियार जमा हो चुके हैं कि धरती को सौ बार नष्ट किया जा सकता है। यह वही इंसान है जिसने कभी आग जलाना सीखा था ताकि खाना पका सके।

अब वही आग, बस्तियाँ जलाने में लग रही है। हथियार बनाने की दौड़ ऐसी है कि हर साल अरबों डॉलर खर्च होते हैं जबकि लाखों बच्चे भूख से मरते हैं।

ऑक्सफैम की एक रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया की 1% आबादी के पास 90% संपत्ति है। मतलब, अगर 100 लोगों का एक गाँव हो तो सिर्फ़ एक आदमी के पास सब खेत, कुएँ और गोदाम हों और बाकी 99 लोग रोटी के लिए तरसें।

एक रात मैंने अपने आँखों से देखा—एक  होटल के पीछे, जहाँ बचे खाने के डिब्बे फेंके जा रहे थे,  एक माँ अपने बच्चे को उस जूठन से निकाल कर अपने खुद खा रही और बच्चे को खिला रही है।

यह सिर्फ भूख की कहानी नहीं, यह इंसानियत की नाकामी है।

इतिहास गवाह है—जंग में जीत कोई नहीं पाता। हार हर किसी की होती है।

1945 में हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम गिराया गया। पलक झपकते ही शहर खाक हो गया। जो बचे, उनके शरीर जल गए और आने वाली पीढ़ियाँ विकलांग पैदा हुईं।

शांति में, हम मिलकर बैठते हैं, विवाद सुलझाते हैं, और ऐसा भविष्य बनाते हैं जहाँ बच्चों को डरकर सोना न पड़े। लेकिन शांति के लिए हिम्मत चाहिए—जंग छेड़ना आसान है, शांति बनाना कठिन।

हममें से ज़्यादातर लोग अपने-अपने छोटे फायदे में उलझे रहते हैं। कोई पद के लिए लड़ रहा है, कोई ठेके के लिए, कोई मुनाफ़े के लिए।

इन छोटे स्वार्थों में हम भूल जाते हैं कि इंसान होने का एक बड़ा मक़सद भी है—धरती को समझना, उसके रहस्यों को जानना, और उसे आने वाली पीढ़ियों के लिए सँभालकर रखना।

विज्ञान का मतलब केवल मोबाइल, कार या मशीन बनाना नहीं है। विज्ञान का असली मक़सद है—प्रकृति को समझना और इंसानियत की भलाई करना।

जब न्यूटन ने गुरुत्वाकर्षण खोजा, तो उसका मक़सद युद्ध नहीं था। जब लुई पाश्चर ने टीके बनाए, तो उनका लक्ष्य बीमारी मिटाना था।

आज हमें विज्ञान को हथियार की फैक्ट्रियों से निकालकर खेतों, स्कूलों और अस्पतालों में लाना होगा।

मैंने सांसद और किसान नेता राजाराम सिंह को कहते सुना—

“अगर मेरे पास उतनी ताक़त होती जितनी बड़े देशों के पास है, तो मैं उससे हर खेत तक पानी पहुँचाता, सूखी ज़मीन को हरा करता, और हर भूखे को खाना देता।”

यही असली ताक़त है—किसी को गिराने के लिए नहीं, बल्कि सबको उठाने के लिए।

बिहार का एक गाँव—जहाँ एक डॉक्टर ने अपनी क्लिनिक मुफ्त खोल दी क्योंकि पास का अस्पताल बंद था।

राजस्थान का कस्बा—जहाँ सब धर्मों के लोग मिलकर तालाब की खुदाई करते हैं।

ये छोटी मिसालें बताती हैं कि शांति और सहयोग कोई सपना नहीं, बल्कि रोज़मर्रा की मेहनत है।

हम अपने बच्चों को क्या देंगे?

हथियारों से भरी दुनिया या हरे-भरे खेतों वाली धरती?

निर्णय आज करना होगा, कल देर हो जाएगी।

धरती का सच यही है कि यह सबकी है। हमारा कल तभी सुरक्षित होगा जब हम इसे सबके लिए बचाए रखेंगे।

विज्ञान और इंसानियत साथ चलेंगे तो आने वाली पीढ़ियाँ हमें धन्यवाद देंगी वरना वे हमें श्राप देंगी कि हमने उनके लिए सिर्फ राख और आँसू छोड़े।

 

 

शम्भू शरण सत्यार्थी

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