नयी दिल्ली, 17 सितंबर (भाषा) इतिहासकार रोमिला थापर ने कहा कि जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) और सामाजिक विज्ञान के अन्य केंद्रों को पिछले 10 वर्षों में भारी नुकसान हुआ है और जो लोग उनकी स्थापना में शामिल थे, वे इसकी ‘दुर्दशा’ से स्तब्ध हैं।
इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में तीसरे कपिला वात्स्यायन स्मृति व्याख्यान में बोलते हुए थापर ने मंगलवार को कहा कि पिछले एक दशक में जेएनयू में शैक्षणिक मानकों को बनाए रखना ‘बेहद समस्याग्रस्त’ रहा है।
थापर ने कहा, ‘‘हममें से कुछ लोग, जो 1970 के दशक में जेएनयू की स्थापना में शामिल थे, पिछले 10 वर्षों में हुई इसकी दुर्दशा से स्तब्ध हैं। यह केवल जेएनयू तक ही सीमित नहीं है, सामाजिक विज्ञान के अन्य मजबूत केंद्रों को भी इसका सामना करना पड़ा है।’’
उन्होंने कहा कि वे एक ऐसे विश्वविद्यालय की स्थापना करने में सफल रहे थे जिसका देश और दुनिया में बहुत सम्मान है।
थापर ने कहा, ‘‘…लेकिन पिछले दशक में, शैक्षणिक मानकों को बनाए रखना, विनम्रता से कहें तो, बेहद समस्याग्रस्त हो गया है। यह कई तरीकों से किया गया, कुछ घटिया शिक्षकों की नियुक्ति करके, गैर-पेशेवरों द्वारा पाठ्यक्रम तय करके, पहले नियुक्त प्रोफेसर एमेरिटस को हटाने की कोशिश करके, शोध करने और शिक्षाविदों द्वारा सार्थक माने जाने वाले विषयों को पढ़ाने की स्वतंत्रता को सीमित करके… ।’’
थापर ने विश्वविद्यालय में जनवरी 2020 की एक घटना का हवाला दिया, जिसमें एक सशस्त्र भीड़ ने परिसर में धावा बोल दिया था, जिसके परिणामस्वरूप छात्र और शिक्षक घायल हो गए थे। इस घटना का जिक्र करते हुए 93 वर्षीय थापर ने कहा कि स्थिति ‘‘शैक्षणिक तंत्र से परे’’ हो गई थी।
उमर खालिद का नाम लिए बिना उनकी गिरफ्तारी का उल्लेख करते हुए, थापर ने कहा, ‘‘शिक्षा पर राजनीतिक नियंत्रण बौद्धिक रचनात्मकता को दबा देता है’’।
उन्होंने कहा, ‘‘गिरफ्तार किए गए कुछ लोग पिछले छह वर्षों से जेल में रहने के बावजूद, बिना किसी मुकदमे के अभी भी जेल में हैं।’’
उन्होंने भारत में इतिहास शिक्षण के वर्तमान तरीकों की भी आलोचना करते हुए कहा कि ‘‘देश में इतिहास का सामान्य ज्ञान कम होने के कारण यह एक आसान शिकार है’’।