
डॉ घनश्याम बादल
हिंदू धर्म के सबसे बड़े पर्वों में से एक माने जाने वाले नवरात्र शुरू हो गए हैं । नौ दिन तक तन मन की शुद्धि के लिए किए जाने वाले नवरात्र व्रत केवल धार्मिक कर्मकांड मात्र नहीं हैं अपितु वैज्ञानिक दृष्टिकोण भी रखते हैं और प्रतीक रूप में एक गहरा संदेश देते हैं।
भारत की संस्कृति और परंपराएँ अपने भीतर गहरे दार्शनिक अर्थ समेटे हुए हैं। नवरात्र का शाब्दिक अर्थ है “नौ रातें” और यह देवी-शक्ति की उपासना का पर्व है। यह पर्व वर्ष में दो बार – चैत्र और शारदीय नवरात्रि – मनाया जाता है। धार्मिक दृष्टि से यह शक्ति की आराधना और असुर शक्तियों पर विजय का प्रतीक है, परंतु यह केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं बल्कि स्त्री-शक्ति, नैतिक मूल्यों और सामाजिक उत्थान का उत्सव भी है।
आज के समय में जब समाज महिला असमानता, सामाजिक भेदभाव, पर्यावरण संकट, नैतिक पतन आदि अनेक चुनौतियों से जूझ रहा है तब नवरात्र हमें अवसर देते हैं कि इन समस्याओं पर सामूहिक रूप से विचार करें और समाधान खोजें।
नवरात्र की कथा के अनुसार, दुर्गा देवी ने महिषासुर जैसे राक्षस का वध कर देवताओं और मानवता को अत्याचार से मुक्ति दिलाई। यह कथा इस बात का प्रतीक है कि जब अन्याय और अत्याचार अपनी सीमा पार कर लेते हैं, तो समाज में सकारात्मक शक्ति का उदय होता है। यह संदेश आज भी उतना ही प्रासंगिक है – चाहे वह सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ संघर्ष हो, अन्यायपूर्ण व्यवस्था के खिलाफ आवाज़ उठाना हो या व्यक्तिगत जीवन में नकारात्मक प्रवृत्तियों पर विजय पाना। भले ही कथा मित्र को पर आधारित हो लेकिन प्रतीक ग्रुप में यह आज भी बड़ा संदेश देती है।
आज यें नौ देवियाँ केवल धार्मिक प्रतिमाएं मात्रा नहीं अपितु आधुनिक प्रतीक भी हैं।
यदि हम इन्हें आधुनिक दृष्टि से देखें तो प्रत्येक देवी एक मानवीय मूल्य और सामाजिक आदर्श का प्रतीक है।
लिए एक नई दृष्टि के साथ इन देवियों के आधुनिक प्रति को एवं अर्थो पर दृष्टि डालते हैं।
शैलपुत्री
पर्वतपुत्री शैलपुत्री धरती और प्रकृति से जुड़ाव की प्रेरणा देती हैं। आज जब पर्यावरण संकट बढ़ रहा है, यह देवी हमें बताती हैं कि हमें प्रकृति का सम्मान करना चाहिए और टिकाऊ जीवन शैली अपनानी चाहिए।
देवी ब्रह्मचारिणी तपस्या और अनुशासन का प्रतीक हैं। यह संदेश देती हैं कि शिक्षा, आत्मसंयम और स्पष्ट जीवन-दृष्टि से ही प्रगति संभव है।
चंद्रघंटा साहस और वीरता की देवी हैं। वे सिखाती हैं कि समाज में अन्याय, अपराध और शोषण के खिलाफ निडर होकर खड़ा होना चाहिए।
कूष्मांडा सृष्टि की रचयिता कुष्मांडा आधुनिक युग में रचनात्मकता, नवाचार और सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक हैं।
स्कंदमाता मातृत्व और पालन-पोषण की प्रतीक हैं वे हमें याद दिलाती हैं कि अगली पीढ़ी को अच्छे संस्कार देना हमारा कर्तव्य है।
कात्यायनी दमन और अन्याय के अंत की प्रतीक। वे महिला सशक्तिकरण और न्यायपूर्ण समाज के लिए संघर्ष की प्रेरणा देती हैं।
कालरात्रि अंधकार का नाश करने वाली देवी कालरात्रि हमें अज्ञान, अंधविश्वास और कुरीतियों के विरुद्ध जागरूकता फैलाने का संदेश देती हैं।
मां महागौरी पवित्रता और शांति की प्रतीक हैं और समाज में स्वच्छता, समानता और मानसिक शांति का आदर्श प्रस्तुत करती हैं।
सिद्धिदात्री जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है ज्ञान, उपलब्धि और परिपूर्णता की प्रतीक देवी हैं। वे प्रेरित करती हैं कि हम कौशल और ज्ञान से आत्मनिर्भर और समर्थ बनें।
इन नौ देवियों को यदि हम नौ सामाजिक स्तंभ मानें तो नवरात्रि हमें आत्मसुधार और समाज-सुधार की एक पूरी रूपरेखा प्रदान करती है। सामाजिक सुधार की दृष्टि से भी नवरात्र का महत्व कम नहीं है बल्कि यह समाज को नई दिशा देने का काम कर सकते हैं।
महिला सशक्तिकरण का संदेश
नवरात्रि का मूल ही स्त्री-शक्ति की उपासना है। नवरात्र में हम संकल्प लें कि बेटियों की शिक्षा, स्वास्थ्य और सुरक्षा सुनिश्चित करेंगे। महिला उत्पीड़न, दहेज प्रथा, घरेलू हिंसा जैसी समस्याओं के खिलाफ जागरूकता अभियान चलाना है यह संकल्प ही इस पर्व को सार्थक बना सकता है।
कुरीतियों का उन्मूलन
नवरात्रि आत्मशुद्धि का समय है। यह अवसर है कि हम अंधविश्वास, जातिवाद, छुआछूत, नशाखोरी और सामाजिक भेदभाव जैसी बुराइयों को समाप्त करने की प्रतिज्ञा लें।
पर्यावरण संरक्षण
प्रकृति अपने आप में देवी का स्वरूप है। इस अतः नवरात्र में वृक्षारोपण, प्लास्टिक-मुक्त अभियान और जल-संरक्षण का संदेश समाज को दिया जा सकता है। पूजा में इको-फ्रेंडली सामग्री का प्रयोग करके हम इस पर्व को पर्यावरण के अनुकूल बना सकते हैं।
सामाजिक समरसता
नवरात्रि के दौरान होने वाले सामूहिक आयोजन जाति, धर्म और वर्ग भेद को मिटाने का अवसर प्रदान करते हैं। इस समय ऐसे सांस्कृतिक कार्यक्रम किए जा सकते हैं जो समाज को जोड़ने का काम करें।
आत्मसंयम और स्वास्थ्य
नवरात्रि में व्रत व उपवास का अलग ही महत्व है। इसे केवल धार्मिक नियम न मानकर स्वस्थ जीवनशैली, नशा-मुक्ति और मानसिक शांति का अभ्यास बनाया जा सकता है।
अतः समग्र रूप में कहा जा सकता है कि नवरात्रि केवल एक धार्मिक पर्व मात्र नहीं बल्कि आत्म-संयम, सामाजिक जागरूकता और परिवर्तन का अवसर है। नौ देवियाँ हमें साहस, ज्ञान, अनुशासन, मातृत्व, न्याय, रचनात्मकता और शांति का संदेश देती हैं। यें गुण मिलकर ही एक सशक्त समाज का निर्माण कर सकते हैं। यदि हम नवरात्रि को सामाजिक सुधार की दृष्टि से मनाएँ तो यह पर्व महिला सशक्तिकरण, पर्यावरण संरक्षण और सामाजिक समरसता का सशक्त माध्यम बन सकता है।