
आज विश्व के एकीकरण का समय माना जाता है अर्थात वैश्वीकरण। यह वैश्वीकरण कुछ और नहीं बल्कि व्यापार की दृष्टि से देशों का आपस में जुड़ना है। जब व्यापार होगा तो एक दूसरे देश की सामाजिक-सांस्कृतिक परंपराएं भी विस्तार लेती चली जाती हैं। वैश्वीकरण ने व्यापार के रास्ते खोलने के साथ-साथ समाज में नयापन भरा है, लोगों की सोच में भी परिवर्तन किया है। देश-विदेश की दूरियों को भी कम किया है।
आज भारत में अमेरिका द्वारा लगाए जा रहे टैरिफ को लेकर बहुत सारी बातें हो रही हैं। कोई इसे भारतीय व्यापार पर कुप्रभाव की बात कर रहा है तो कोई आगामी परिणाम की बात कर रहा है। यदि हम थोड़ा सा पीछे हटकर देखें और बात करें तो प्रथम युद्ध का एक कारण यूरोपीय देशों का उपनिवेशवाद भी रहा। यह देश अपने लिए मंडी अर्थात बाजार खोज रहे थे।बाजार खोजते-खोजते इन यूरोपीय देशों ने एशिया के बहुत सारे देशों को गुलाम बनाना शुरू कर दिया। कई बार मन में प्रश्न उठता है कि एक छोटे से देश ने कैसे देखते ही देखते भारत जैसे विशाल भूखंड़ पर और इसकी प्राचीन सनातन संस्कृति पर अपना कुठाराघात किया। यह सत्ताधारी देश जिस देश पर अधिकार करते, उस देश की धन-संपदा तो लूटते ही थे साथ में वहां से कच्चा माल ले जाकर अपने देश के नाम पर विश्व में बेचकर मोटा पैसा कमाते थे। इन्होंने जिस भी देश पर अधिकार किया उस देश को चूस फेंका। गुलाम देशों में स्वतंत्रता को लेकर आंदोलन होते रहे, यह व्यापार में पैसा कमाते रहे।हमारा भारतवर्ष भी उन दिनों ब्रिटिश शासन के अधीन गुलाम देश में से एक रहा।
ध्यान देकर देखें तो दूसरे विश्व युद्ध का बड़ा कारण वैश्विक आर्थिक मंदी रहा। यह आर्थिक मंदी भी पूरे यूरोपीय देशों और अमेरिका में ही रही। इन ताकतवर देशों ने अपने आसपास उभरते देशों को दबाना शुरू किया और दूसरा विश्व युद्ध हो गया। एक दृष्टि से दोनों विश्व युद्ध की जड़ में बड़ा कारण आर्थिक लड़ाई ही रहा। कहने का भाव है कि यूरोपीय देश रहे हों या अमेरिका, ये हमेशा से ही वैश्विक बाजार पर अपना प्रभुत्व स्थापित करने में लगे हुए हैं। इसके लिए कितना ही बड़ा युद्ध क्यों ना हो जाए।
विचार करें तो अब वैश्विक परिस्थितियों बहुत बदल चुकी हैं। विश्व के बहुत सारे देश स्वतंत्र रूप में अपना कार्य कर रहे हैं। जिन देशों पर अमेरिका या यूरोप अपना दबाव बढ़ाना चाहता है, वह देश उनसे किनारा करके अन्य देशों के साथ व्यापार करने पर तैयार हो जाते हैं। आज सभी के लिए सभी के कपाट खुले हुए हैं। भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी अपने प्रथम कार्यकाल से ही कहते रहे हैं मेक इन इंडिया और स्वदेशी अपनाओ। दूसरी ओर देखेंगे तो पूरे स्वतंत्रता संग्राम में भी स्वदेशी अपनाओ की बात महात्मा गांधी जी ने भी कही। इससे विदेशी लोगों की कमर अपने आप ही टूट गई।
आज हमारा देश हर क्षेत्र में कार्य कुशल है। अंतरिक्ष, विज्ञान, संचार, तकनीक आदि हर क्षेत्र में हमारे देश ने अपना लोहा विश्व को मनवाया है। कार्य और व्यापार के क्षेत्र में भी हम स्वावलंबी बनाकर अपनी ताकत के साथ काम कर रहे हैं। हम स्वयं एक मजबूत स्थिति में है। भारतवर्ष आज विश्व की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। अमेरिका और अन्य यूरोपीय देशों को यह बात गले से नीचे नहीं उतर रही है। जिस गति से हमारी अर्थव्यवस्था आगे बढ़ रही है, हम तीसरे स्थान पर भी जल्द ही पहुंच जाएंगे।
अमेरिका रोज-रोज अपनी टैरिफ नीति में बदलाव कर रहा है। टैरिफ में बदलाव कर वह भारत पर दबाव बना रहा है। कैसे भी हो वह हमारे और वैश्विक बाजार को डुबो देना चाहता है। भारतवर्ष और अन्य उभरते देश आर्थिक रूप से टूट जाए, ऐसा प्रयास चल रहा है। लेकिन अब ऐसा होने वाला नहीं है। 21वीं सदी का यह भारत कुछ नई दृष्टि और दृष्टिकोण से सोचता है। हमें शुद्ध व्यापार करना है, किसी भी देश से कर सकते हैं। छल, कपट, धोखा हम नहीं करते। हमारा देश आज मजबूत स्थिति में खड़ा है। धमकियों से कुछ होने वाला नहीं है। माना कुछ पक्षों पर प्रभाव पड़ सकता है। लेकिन हम अपनी शर्तों पर काम करते हैं। भारतीय जनमानस का अपनी सरकार, अपने कार्य बल पर पूरा भरोसा है। देश दिनों-दिन विकास के रास्ते पर आगे बढ़ता रहेगा। बाधाएं और कठिनाइयां तो रास्ते में पड़ने वाले पड़ाव होते हैं, उन्हें पार करना ही हमारी सबसे बड़ी ताकत है।
आज भारत में अमेरिका द्वारा लगाए जा रहे टैरिफ को लेकर बहुत सारी बातें हो रही हैं। कोई इसे भारतीय व्यापार पर कुप्रभाव की बात कर रहा है तो कोई आगामी परिणाम की बात कर रहा है। यदि हम थोड़ा सा पीछे हटकर देखें और बात करें तो प्रथम युद्ध का एक कारण यूरोपीय देशों का उपनिवेशवाद भी रहा। यह देश अपने लिए मंडी अर्थात बाजार खोज रहे थे।बाजार खोजते-खोजते इन यूरोपीय देशों ने एशिया के बहुत सारे देशों को गुलाम बनाना शुरू कर दिया। कई बार मन में प्रश्न उठता है कि एक छोटे से देश ने कैसे देखते ही देखते भारत जैसे विशाल भूखंड़ पर और इसकी प्राचीन सनातन संस्कृति पर अपना कुठाराघात किया। यह सत्ताधारी देश जिस देश पर अधिकार करते, उस देश की धन-संपदा तो लूटते ही थे साथ में वहां से कच्चा माल ले जाकर अपने देश के नाम पर विश्व में बेचकर मोटा पैसा कमाते थे। इन्होंने जिस भी देश पर अधिकार किया उस देश को चूस फेंका। गुलाम देशों में स्वतंत्रता को लेकर आंदोलन होते रहे, यह व्यापार में पैसा कमाते रहे।हमारा भारतवर्ष भी उन दिनों ब्रिटिश शासन के अधीन गुलाम देश में से एक रहा।
ध्यान देकर देखें तो दूसरे विश्व युद्ध का बड़ा कारण वैश्विक आर्थिक मंदी रहा। यह आर्थिक मंदी भी पूरे यूरोपीय देशों और अमेरिका में ही रही। इन ताकतवर देशों ने अपने आसपास उभरते देशों को दबाना शुरू किया और दूसरा विश्व युद्ध हो गया। एक दृष्टि से दोनों विश्व युद्ध की जड़ में बड़ा कारण आर्थिक लड़ाई ही रहा। कहने का भाव है कि यूरोपीय देश रहे हों या अमेरिका, ये हमेशा से ही वैश्विक बाजार पर अपना प्रभुत्व स्थापित करने में लगे हुए हैं। इसके लिए कितना ही बड़ा युद्ध क्यों ना हो जाए।
विचार करें तो अब वैश्विक परिस्थितियों बहुत बदल चुकी हैं। विश्व के बहुत सारे देश स्वतंत्र रूप में अपना कार्य कर रहे हैं। जिन देशों पर अमेरिका या यूरोप अपना दबाव बढ़ाना चाहता है, वह देश उनसे किनारा करके अन्य देशों के साथ व्यापार करने पर तैयार हो जाते हैं। आज सभी के लिए सभी के कपाट खुले हुए हैं। भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी अपने प्रथम कार्यकाल से ही कहते रहे हैं मेक इन इंडिया और स्वदेशी अपनाओ। दूसरी ओर देखेंगे तो पूरे स्वतंत्रता संग्राम में भी स्वदेशी अपनाओ की बात महात्मा गांधी जी ने भी कही। इससे विदेशी लोगों की कमर अपने आप ही टूट गई।
आज हमारा देश हर क्षेत्र में कार्य कुशल है। अंतरिक्ष, विज्ञान, संचार, तकनीक आदि हर क्षेत्र में हमारे देश ने अपना लोहा विश्व को मनवाया है। कार्य और व्यापार के क्षेत्र में भी हम स्वावलंबी बनाकर अपनी ताकत के साथ काम कर रहे हैं। हम स्वयं एक मजबूत स्थिति में है। भारतवर्ष आज विश्व की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। अमेरिका और अन्य यूरोपीय देशों को यह बात गले से नीचे नहीं उतर रही है। जिस गति से हमारी अर्थव्यवस्था आगे बढ़ रही है, हम तीसरे स्थान पर भी जल्द ही पहुंच जाएंगे।
अमेरिका रोज-रोज अपनी टैरिफ नीति में बदलाव कर रहा है। टैरिफ में बदलाव कर वह भारत पर दबाव बना रहा है। कैसे भी हो वह हमारे और वैश्विक बाजार को डुबो देना चाहता है। भारतवर्ष और अन्य उभरते देश आर्थिक रूप से टूट जाए, ऐसा प्रयास चल रहा है। लेकिन अब ऐसा होने वाला नहीं है। 21वीं सदी का यह भारत कुछ नई दृष्टि और दृष्टिकोण से सोचता है। हमें शुद्ध व्यापार करना है, किसी भी देश से कर सकते हैं। छल, कपट, धोखा हम नहीं करते। हमारा देश आज मजबूत स्थिति में खड़ा है। धमकियों से कुछ होने वाला नहीं है। माना कुछ पक्षों पर प्रभाव पड़ सकता है। लेकिन हम अपनी शर्तों पर काम करते हैं। भारतीय जनमानस का अपनी सरकार, अपने कार्य बल पर पूरा भरोसा है। देश दिनों-दिन विकास के रास्ते पर आगे बढ़ता रहेगा। बाधाएं और कठिनाइयां तो रास्ते में पड़ने वाले पड़ाव होते हैं, उन्हें पार करना ही हमारी सबसे बड़ी ताकत है।