
भारतीय होना केवल जन्म से जुड़ा तथ्य नहीं है बल्कि यह एक ऐसी पहचान है जो समय, संस्कृति, संघर्ष और सामूहिक चेतना से गढ़ी जाती है। जब हम स्वयं से यह प्रश्न पूछते हैं कि हम भारतीय क्यों हैं, तो इसका उत्तर किसी एक पंक्ति, किसी एक भाषा या किसी एक धर्म में नहीं समा सकता। यह प्रश्न हमारी सभ्यता की जड़ों, हमारे ऐतिहासिक अनुभवों और हमारे सांस्कृतिक समन्वय से गहराई से जुड़ा हुआ है। वास्तव में भारतीयता एक अर्जित मूल्य है—यह हमें विरासत में मिलती भी है और इसे हमें हर दिन जीकर साबित भी करना पड़ता है।
भारतीयता की परिभाषा देना कठिन है क्योंकि यह केवल किसी जातीय, धार्मिक या भाषायी पहचान तक सीमित नहीं है। भारत का भूगोल, इसकी नदियाँ, पर्वत, मैदान और समुद्र इस पहचान का बाहरी रूप हैं लेकिन इसकी असली आत्मा यहाँ के लोग हैं—वह लोग जो अलग-अलग भाषाएँ बोलते हैं, अलग-अलग धार्मिक मान्यताओं को मानते हैं, अलग-अलग रीति-रिवाज अपनाते हैं, फिर भी खुद को एक ही सूत्र में बाँधते हैं। यही कारण है कि भारतीयता की पहली विशेषता है—विविधता में एकता।
भारत की सभ्यता हजारों वर्षों पुरानी है। सिंधु घाटी सभ्यता से लेकर वेद, उपनिषद, जैन, बौद्ध और सूफी परंपराओं तक, यहाँ विचारों का महासंगम होता रहा। इस धरती पर शंकराचार्य का अद्वैतवाद भी फला-फूला और कबीर का निर्गुण भक्ति मार्ग भी। यहाँ बुद्ध की करुणा भी जन्मी और गुरु नानक का संदेश भी। यही नहीं, भारत ने बाहरी संस्कृतियों को भी आत्मसात किया—यूनानी आए, हूण आए, तुर्क और मुग़ल आए, अंग्रेज आए; हर दौर में बाहरी तत्वों ने भारतीय जीवन में कुछ जोड़ा, लेकिन भारतीयता ने हमेशा अपनी आत्मा को अक्षुण्ण बनाए रखा।
स्वतंत्रता संग्राम भारतीयता के निर्माण का सबसे महत्वपूर्ण अध्याय रहा। अंग्रेजों की फूट डालो और राज करो की नीति ने हमें जाति, धर्म और प्रांतों के आधार पर बाँटना चाहा लेकिन इसी दौर में गांधीजी ने सत्याग्रह और अहिंसा के जरिए साझा संघर्ष की राह दिखाई। नेहरू ने आधुनिक भारत का सपना देखा, जिसमें विविधता ही हमारी ताकत बने। भगत सिंह और सुभाष चंद्र बोस ने राष्ट्रवाद को क्रांतिकारी स्वर दिया। इस पूरे आंदोलन ने भारतीयता को एक ठोस राजनीतिक और सांस्कृतिक आधार दिया। और स्वतंत्रता के बाद संविधान ने इस भारतीयता को संवैधानिक रूप दिया।
संविधान के मूल अधिकारों ने हर भारतीय को यह भरोसा दिया कि चाहे वह किसी भी धर्म, जाति, भाषा या लिंग का हो, उसे समान अधिकार प्राप्त हैं। यह भारतीयता का सबसे ठोस स्वरूप था। डॉ. भीमराव आंबेडकर ने इसे स्पष्ट किया कि एक राष्ट्र तभी सशक्त हो सकता है जब वह समानता और न्याय की बुनियाद पर खड़ा हो। भारतीयता का अर्थ केवल संस्कृति या परंपरा तक सीमित नहीं है बल्कि यह सामाजिक न्याय और लोकतांत्रिक चेतना भी है।
लेकिन यह कहना भी अधूरा होगा कि भारतीयता केवल गौरवशाली परंपरा का नाम है। हमारे इतिहास में अंधकार के पन्ने भी हैं। जातिगत भेदभाव, छुआछूत, स्त्री शोषण, साम्प्रदायिक संघर्ष—ये सब हमारी सामूहिक चेतना पर दाग की तरह रहे हैं। परंतु भारतीयता की खासियत यही है कि उसने इन अंधकारों से जूझकर नए रास्ते बनाए। जब समाज ने छुआछूत थोपा, तब संतों और सुधारकों ने समानता का बिगुल बजाया। जब स्त्रियों को दबाया गया, तब समाज सुधारकों ने उनके अधिकारों के लिए संघर्ष किया। जब धर्म के नाम पर लड़ाइयाँ हुईं, तब सूफी और भक्ति आंदोलन ने प्रेम और भाईचारे का संदेश दिया।
आजादी के 75 सालों के बाद भी भारतीयता की राह आसान नहीं है। आधुनिक भारत ने विज्ञान, तकनीक और अर्थव्यवस्था में बड़ी प्रगति की है। आईटी सेक्टर, अंतरिक्ष अनुसंधान और युवा ऊर्जा ने भारत को विश्व मंच पर नई पहचान दी है। लेकिन दूसरी ओर साम्प्रदायिकता, जातिवाद, भ्रष्टाचार और राजनीति की संकीर्णता आज भी समाज में दरारें पैदा कर रही हैं। लोकतंत्र की आत्मा तभी मजबूत होगी जब भारतीयता केवल नारे में नहीं, बल्कि व्यवहार में उतरे।
भारतीयता की असली पहचान करुणा, सहिष्णुता और समरसता में है। गांधीजी ने कहा था कि भारत केवल एक भूखंड नहीं बल्कि एक जीवन-दृष्टि है। यह दृष्टि हमें यह सिखाती है कि मतभेदों के बावजूद हम संवाद कर सकते हैं, अलग-अलग राहों पर चलकर भी एक साझा लक्ष्य पा सकते हैं।
अगर भारतीयता की विशेषताओं को बिंदुवार समझें तो पाँच मुख्य आधार सामने आते हैं।
पहला, विविधता में एकता, जहाँ अलग-अलग धर्म और भाषाएँ भी हमें बाँट नहीं पातीं। दूसरा, साझी संस्कृति, जहाँ रामायण और कुरान, गुरुग्रंथ साहिब और बाइबिल सब हमारे साझा जीवन का हिस्सा हैं।
तीसरा, अतिथि देवो भवः, यानी बाहरी को अपनाने की परंपरा। चौथा, सहिष्णुता, जो हमें मतभेदों के बावजूद सह-अस्तित्व का मार्ग दिखाती है और पाँचवां, लोकतंत्र, जो हर नागरिक को आवाज़ और अधिकार देता है।
लेकिन भारतीयता को कमजोर करने वाली चुनौतियाँ भी कम नहीं हैं। धार्मिक कट्टरता और नफरत की राजनीति समाज को बाँट रही है। जातिगत असमानता अब भी बड़ी समस्या है। भ्रष्टाचार और राजनीति का अपराधीकरण भारतीयता के आदर्शों को आहत करता है। वैश्वीकरण और उपभोक्तावाद युवाओं को उनकी सांस्कृतिक जड़ों से काट रहे हैं। ऐसे में यह आवश्यक हो जाता है कि भारतीयता को केवल परिभाषाओं तक सीमित न रखा जाए, बल्कि इसे व्यवहार में उतारा जाए।
इसके लिए कुछ ठोस कदम उठाने होंगे। शिक्षा में भारतीयता का बोध बढ़ाना होगा, ताकि नई पीढ़ी अपनी पहचान को समझ सके। समाज में जाति और धर्म की खाई को पाटने के लिए समान अवसर और सामाजिक न्याय सुनिश्चित करना होगा। युवाओं को भारतीय संस्कृति और मूल्यों से जोड़ने के लिए कला, साहित्य और इतिहास को जीवंत रूप में पढ़ाना होगा। राजनीति को ईमानदार, पारदर्शी और समावेशी बनाना होगा। और सबसे महत्वपूर्ण, हमें कबीर, नानक, आंबेडकर, टैगोर और गांधी जैसे विचारकों के संदेश को अपने जीवन में उतारना होगा।
हम भारतीय इसलिए नहीं हैं कि हमारा जन्म भारत में हुआ। हम भारतीय इसलिए हैं क्योंकि हमने इस देश की साझा संस्कृति और साझा चेतना को अपनाया है। हम भारतीय इसलिए हैं क्योंकि हमने समानता, स्वतंत्रता और भाईचारे का सपना देखा है। हम भारतीय इसलिए हैं क्योंकि हमें विश्वास है कि हमारी विविधता ही हमारी सबसे बड़ी ताकत है।
भारतीयता कोई स्थिर दी हुई चीज़ नहीं है। यह एक जीवित प्रक्रिया है जिसे हर दिन अर्जित करना पड़ता है। जब हम करुणा दिखाते हैं, जब हम भेदभाव तोड़ते हैं, जब हम संवाद को संघर्ष पर तरजीह देते हैं, तभी हम सच में भारतीय होते हैं।
शम्भू शरण सत्यार्थी