विशिष्टता की पहचान – पैसा भी दिलाये और रोजगार भी बढ़ाये

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भारत देश में 28 राज्य हैँ और हर राज्य क़ी अपनी विशेषता है और अलग से एक अपनी विशिष्ट पहचान भी है. हापुड़ के पापड़, नागपुर के संतरे, इलाहाबाद के अमरुद, आदि नामों से उस राज्य क़ी अपनी एक खास पहचान है.

उत्तर प्रदेश में वर्तमान में 77 भौगोलिक संकेतन (जीआई) टैग प्राप्त उत्पाद हैं और यह देश में सबसे अधिक जीआई टैग वाला राज्य है। सरकार का लक्ष्य 2025-26 तक इस संख्या को बढ़ाकर 152 तक पहुंचाने का है, जिससे यह 150 से अधिक जीआई टैग वाला देश का पहला राज्य बन जाएगा।  

काशी क्षेत्र:

उत्तर प्रदेश में काशी क्षेत्र के 32 जीआई टैग प्राप्त उत्पाद हैं, जो इसे एक प्रमुख जीआई हब बनाते हैं। 

लक्ष्य:

उत्तर प्रदेश सरकार 2025-26 तक जीआई टैग वाले उत्पादों की संख्या को 152 तक पहुंचाने का लक्ष्य रखती है जिससे वह देश का पहला राज्य होगा जिसके पास 150 से अधिक जीआई टैग होंगे। 

जीआई टैग क्या है:

जीआई टैग किसी क्षेत्र के पारंपरिक उत्पाद की एक विशिष्ट पहचान होती है, जो उसके अद्वितीय गुणों और गुणवत्ता को प्रमाणित करती है। इसका उद्देश्य स्थानीय कारीगरों और किसानों के उत्पादों को पहचान दिलाना, बिक्री बढ़ाना और नकली उत्पादों से उनकी रक्षा करना है।

.भौगोलिक संकेत (जीआई टैग) के मामले में उत्तर प्रदेश सबसे आगे है, जिसके बाद तमिलनाडु का स्थान आता है। जुलाई 2024 तक भारत में कुल 605 GI टैग जारी किए गए थे, जिनमें उत्तर प्रदेश के उत्पाद सबसे अधिक थे। 

कौन सा राज्य सबसे आगे है?

उत्तर प्रदेश

जीआई-टैग प्राप्त उत्पादों की संख्या में भारत में अग्रणी है। 

इसके बाद तमिलनाडु दूसरे स्थान पर है। 

कितने भौगोलिक संकेत मिले हैं?

जुलाई 2024 तक भारत में कुल 605 GI टैग जारी किए गए थे। 

अन्य महत्वपूर्ण तथ्य:

भारत में पहला GI टैग 2004-05 में दार्जिलिंग चाय को दिया गया था।

जीआई टैग चेन्नई स्थित इंडियन ज्योग्राफिकल रजिस्ट्री द्वारा जारी किया जाता है।

यह टैग किसी वस्तु की विशिष्ट पहचान बताता है, जो उसकी भौगोलिक उत्पत्ति के कारण होती है और यह टैग 10 वर्षों के लिए मान्य होता है, जिसके बाद इसका नवीनीकरण कराना होता है।

भौगोलिक संकेत (जीआई) एक ऐसा चिह्न है जो किसी उत्पाद पर लगाया जाता है, जिसका एक विशिष्ट भौगोलिक मूल होता है और जिसमें उस मूल के कारण कोई विशेष गुणवत्ता या प्रतिष्ठा होती है। यह चिह्न यह दर्शाता है कि उत्पाद एक निश्चित भौगोलिक क्षेत्र से आता है और उस क्षेत्र की खास विशेषताओं से युक्त है। जीआई टैग उपभोक्ताओं को उत्पाद की प्रामाणिकता और गुणवत्ता की गारंटी देता है, और साथ ही उत्पादकों के हितों की रक्षा करता है, क्योंकि यह अनधिकृत कंपनियों को उस नाम का दुरुपयोग करने से रोकता है। भारत में, जीआई टैग वस्तुओं के लिए भौगोलिक संकेत (पंजीकरण और संरक्षण) अधिनियम, 1999 के तहत जारी किए जाते हैं। 

भौगोलिक संकेत (जीआई) की मुख्य विशेषताएं:

उत्पत्ति का स्थान:

जीआई टैग उत्पाद के भौगोलिक मूल को दर्शाता है, जैसे कि कोई खास शहर, क्षेत्र या देश। 

गुणवत्ता और प्रतिष्ठा:

यह उत्पाद की विशिष्ट गुणवत्ता या प्रतिष्ठा को भी बताता है, जो उसके भौगोलिक मूल से जुड़ी होती है। 

सामूहिक संपत्ति:

यह एक विशिष्ट स्थान की विरासत और प्रतिष्ठा से जुड़ी एक सामूहिक संपत्ति का प्रतिनिधित्व करता है। 

संरक्षण:

यह अनधिकृत उपयोगकर्ताओं को उस उत्पाद के नाम का उपयोग करने से बचाता है, जिससे उत्पादकों के अधिकारों की रक्षा होती है। 

उदाहरण:

भारत में दार्जिलिंग चाय, कांचीपुरम रेशम साड़ी, और मधुबनी पेंटिंग कुछ ऐसे उत्पाद हैं जिन्हें जीआई टैग प्राप्त है। 

यह किसके लिए होता है?

कृषि उत्पाद

हस्तशिल्प

निर्मित वस्तुएँ (जैसे स्पिरिट पेय)

प्राकृतिक वस्तुएँ 

भारत में जीआई के लिए प्रक्रिया

भौगोलिक संकेत के पंजीकरण के लिए एक आवेदक आवेदन कर सकता है।

आवेदन की जाँच की जाती है।

यदि सभी आवश्यकताएँ पूरी होती हैं, तो जीआई को पंजीकृत और प्रकाशित किया जाता है।

जीआई टैग 10 साल की अवधि के लिए पंजीकृत होता है और इसे नवीनीकृत किया जा सकता है।

भारत में भौगोलिक संकेतों (जीआई टैग) का महत्व बहुआयामी है; यह स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं को बढ़ावा देता है, किसानों और कारीगरों को बेहतर पहचान और मूल्य दिलाता है, और भारत के पारंपरिक ज्ञान व सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करता है। जीआई टैग भारतीय उत्पादों की निर्यात क्षमता बढ़ाते हैं, ग्रामीण रोजगार को बढ़ावा देते हैं और उपभोक्ताओं को उत्पादों की गुणवत्ता और उत्पत्ति की पहचान सुनिश्चित करते हैं। 

आर्थिक लाभ

स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा:

जीआई टैग स्थानीय उत्पादकों को बाज़ार में विशिष्ट पहचान दिलाता है, जिससे उनकी उत्पादों की मांग बढ़ती है और आर्थिक स्थिति सुधरती है। 

उत्पादों को बेहतर मूल्य:

जीआई टैग गुणवत्ता और विशिष्टता की गारंटी देता है, जिससे उत्पादकों को उनके उत्पादों के लिए उचित और बेहतर मूल्य प्राप्त होता है। 

निर्यात में वृद्धि:

जीआई टैग अंतरराष्ट्रीय बाजारों में भारतीय उत्पादों की प्रतिष्ठा बढ़ाते हैं, जिससे निर्यात को बढ़ावा मिलता है। 

सांस्कृतिक एवं सामाजिक लाभ

पारंपरिक ज्ञान का संरक्षण:

जीआई टैग किसी उत्पाद के पीछे के सांस्कृतिक ज्ञान और पारंपरिक उत्पादन विधियों को संरक्षित करने में मदद करता है, जो अक्सर लुप्त होने के कगार पर होते हैं। 

सांस्कृतिक विरासत की पहचान:

यह उन उत्पादों को पहचान दिलाता है जिनकी उत्पत्ति किसी विशेष क्षेत्र से होती है, जिससे क्षेत्र की सांस्कृतिक विशिष्टताओं का प्रचार होता है। 

रोजगार सृजन:

जीआई टैग ग्रामीण क्षेत्रों में कारीगरों, बुनकरों और किसानों के लिए रोजगार के अवसर पैदा करता है, जिससे ग्रामीण विकास को बढ़ावा मिलता है। 

कानूनी और गुणवत्ता संबंधी लाभ

गुणवत्ता की गारंटी:

जीआई टैग यह सुनिश्चित करता है कि उत्पाद एक निश्चित भौगोलिक क्षेत्र में पारंपरिक मानकों के अनुसार उत्पादित किया गया है, जिससे उत्पाद की गुणवत्ता बनी रहती है। 

अनधिकृत उपयोग पर प्रतिबंध:

जीआई टैग केवल अधिकृत उत्पादकों को ही उस उत्पाद के नाम का उपयोग करने की अनुमति देता है, जिससे दोहराव और अनुचित प्रतिस्पर्धा पर रोक लगती है। 

बौद्धिक संपदा अधिकारों (IPR) का संरक्षण:

यह भारतीय बौद्धिक संपदा अधिकारों को मजबूत करता है और उत्पादों के लिए कानूनी सुरक्षा प्रदान करता है। 

भारत में जीआई टैग का महत्व  विशिष्ट उत्पादों का संरक्षण जीआई टैग यह सुनिश्चित करता है कि किसी विशिष्ट क्षेत्र के केवल वास्तविक उत्पादक ही उस उत्पाद को उसके नाम से बेच सकते हैँ.

जीआई टैग इसलिए दिया जाता है ताकि किसी विशेष भौगोलिक क्षेत्र से जुड़े उत्पादों को कानूनी सुरक्षा मिल सके, उनकी गुणवत्ता सुनिश्चित की जा सके, और नकल को रोका जा सके. इससे उत्पादकों को अपनी चीज़ों के लिए उचित मूल्य मिलता है, बाज़ार में अच्छी पहचान बनती है, और देश व क्षेत्र का आर्थिक विकास होता है. 

जीआई टैग देने के मुख्य कारण:

कानूनी संरक्षण:

जीआई टैग किसी उत्पाद को कानूनी सुरक्षा देता है, जिससे कोई भी व्यक्ति या संस्था उस नाम या चिन्ह का अनधिकृत रूप से उपयोग नहीं कर सकता. 

गुणवत्ता का पैमाना:

यह टैग उत्पादों की एक निश्चित गुणवत्ता और प्रतिष्ठा को दर्शाता है, क्योंकि यह किसी विशेष भौगोलिक उत्पत्ति और पारंपरिक तकनीक से जुड़ा होता है. 

नकल रोकना:

यह सुनिश्चित करता है कि नकली उत्पाद उन क्षेत्रों के असली उत्पादों के नाम का गलत इस्तेमाल न कर सकें, जिससे ग्राहकों को प्रामाणिक उत्पाद मिलते हैं. 

आर्थिक लाभ:

उत्पादकों को उनके प्रामाणिक उत्पादों के लिए उचित और बेहतर दाम मिलता है, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति मजबूत होती है. 

बाजार का विस्तार:

जीआई टैग से उत्पाद देश-विदेश में अधिक लोकप्रिय होते हैं और उनके लिए एक बड़ा बाज़ार बनता है. 

क्षेत्रीय विकास:

यह उस क्षेत्र की पहचान बढ़ाता है, जिससे उस क्षेत्र में रोजगार के अवसर पैदा होते हैं और राजस्व में वृद्धि होती है. 

सांस्कृतिक पहचान:

जीआई टैग किसी क्षेत्र की सांस्कृतिक विरासत और पारंपरिक ज्ञान को संरक्षित करता है, जो उस विशेष उत्पाद से जुड़ा होता है.

जीआई टैग प्राप्त करने के लिए, आपको संबंधित उत्पाद की विशिष्टता और भौगोलिक संबंधों का प्रमाण देते हुए Controller General of Patents, Designs and Trade Marks (CGPDTM) के पास आवेदन करना होगा। आवेदन की जांच की जाती है, फिर प्रकाशन के लिए जारी किया जाता है, और आपत्तियों के बाद, उत्पाद को जीआई टैग मिल जाता है। 

जीआई टैग प्राप्त करने की प्रक्रिया:

आवेदन – किसी उत्पाद के निर्माता, संगठन या सरकार की संस्था Controller General of Patents, Designs and Trade Marks (CGPDTM) के पास आवेदन करती है।

जांच: CGPDTM उत्पाद की गुणवत्ता, विशिष्टता और भौगोलिक संबंध से जुड़े दावों की जांच करता है।

प्रकाशन: जांच के बाद उत्पाद का विवरण एक विज्ञापन के रूप में प्रकाशित किया जाता है जिससे कोई आपत्ति दर्ज कर सके।

अनुमोदन: यदि कोई आपत्ति नहीं आती है, तो उत्पाद को जीआई टैग प्रदान किया जाता है। 

जीआई टैग के लाभ:

ब्रांड सुरक्षा:

यह नकली उत्पादों को बाजार में आने से रोकता है। 

उत्पाद मूल्य में वृद्धि:

जीआई टैग उत्पाद की प्रतिष्ठा और आर्थिक मूल्य को बढ़ाता है। 

सांस्कृतिक संरक्षण:

यह सांस्कृतिक रूप से महत्वपूर्ण उत्पादों और उनके स्थानीय उत्पादन को संरक्षित करने में मदद करता है। 

जीआई टैग भारत में भौगोलिक संकेत (पंजीकरण और संरक्षण) अधिनियम, 1999 के तहत जारी किए जाते हैं और यह उद्योग संवर्धन और आंतरिक व्यापार विभाग के अंतर्गत आता है।

जीआई टैग के लिए भारत में भौगोलिक संकेत रजिस्ट्री (Geographical Indication Registry) में आवेदन करना होता है, जिसका मुख्यालय चेन्नई में है और यह पेटेंट, डिजाइन और ट्रेडमार्क महानियंत्रक (CGPDTM) के तहत काम करती है. आवेदन एक व्यक्तिगत निर्माता, संगठन या संघ द्वारा किया जा सकता है, और आवेदन में उत्पाद की अनूठी विशेषताओं, ऐतिहासिक विरासत और भौगोलिक संबंध का विस्तृत विवरण शामिल होना चाहिए. आवेदन जमा होने के बाद, रजिस्ट्री उत्पाद की जांच और छानबीन करती है. यदि दावा सही पाया जाता है, तो जीआई टैग जारी किया जाता है. 

आवेदन कहाँ करें:

भौगोलिक संकेत रजिस्ट्री (Geographical Indication Registry):

यह मुख्य स्थान है जहाँ आवेदन जमा करना होता है. 

पेटेंट, डिजाइन और ट्रेडमार्क महानियंत्रक (CGPDTM):

यह वह संस्था है जिसके तहत भौगोलिक संकेत रजिस्ट्री काम करती है और आवेदन प्रक्रिया को संभालती है. 

आवेदन की प्रक्रिया:

आवेदन जमा करना: आप या आपका संगठन पेटेंट, डिजाइन और ट्रेडमार्क महानियंत्रक के पास एक औपचारिक आवेदन पत्र जमा कर सकते हैं.

आवश्यक दस्तावेज: आवेदन के साथ उत्पाद की विशिष्ट विशेषताओं, ऐतिहासिक जड़ों, क्षेत्र के मानचित्र और उत्पादन प्रक्रिया के बारे में विस्तृत दस्तावेज प्रस्तुत करने होंगे.

जाँच और छानबीन: रजिस्ट्रार आवेदन की प्रारंभिक परीक्षा करेगा और उत्पाद की विशिष्टता और प्रामाणिकता सुनिश्चित करने के लिए पूरी तरह से जांच करेगा.

आपत्तियों का समाधान: यदि कोई आपत्ति आती है, तो आपको उसे दूर करने के लिए एक निश्चित समय के भीतर जवाब देना होगा.

अंतिम निर्णय: यदि सभी साक्ष्य और तर्क संतुष्ट करते हैं, तो उत्पाद को जीआई टैग जारी किया जाएगा. 

जीआई टैग के लाभ:

मूल्य वृद्धि:

इससे उत्पाद का मूल्य और संबंधित समुदाय का महत्व बढ़ जाता है. 

नकली उत्पादों से सुरक्षा:

यह फर्जी उत्पादों को रोकने में मदद करता है और उत्पाद की प्रामाणिकता सुनिश्चित करता है. 

आर्थिक लाभ:

संबंधित समुदाय और निर्माताओं को आर्थिक लाभ होता है. 

रोजगार और राजस्व:

यह रोजगार सृजन और राजस्व वृद्धि को बढ़ावा देता है.

 

 

चंद्र मोहन

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