नयी दिल्ली, 11 सितंबर (भाषा) केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने बृहस्पतिवार को कहा कि जलवायु वित्त, जलवायु कार्रवाई के लिए ‘निर्णायक मुद्दा’ है और विकसित देशों की नैतिक जिम्मेदारी है कि वे कम कार्बन वाली अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ने में ‘ग्लोबल साउथ’ का समर्थन करें।
उद्योग मंडल फिक्की द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए यादव ने कहा कि भारत को अपने ‘नेट-जीरो’ लक्ष्य को पूरा करने के लिए 2070 तक 10 हजार अरब अमेरिकी डॉलर से अधिक की आवश्यकता होगी। उन्होंने वैश्विक वित्तीय प्रणालियों से पारदर्शिता, जवाबदेही और किफायत सुनिश्चित करते हुए निजी पूंजी को प्रवाहित करने का आह्वान किया।
उन्होंने कहा, ‘‘सार्वजनिक धन मौजूदा समस्या के स्तर पर ध्यान देने के लिए पर्याप्त नहीं हो सकता और न ही होगा। राजकोषीय गुंजाइश कम है।’’
उन्होंने कहा कि जलवायु वित्त, विकास वित्त है।
मंत्री ने कहा, ‘‘स्वच्छ ऊर्जा, सक्षम शहर, जलवायु-अनुकूल कृषि और लचीला बुनियादी ढांचा अलग नहीं हैं; ये ऊर्जा सुरक्षा, खाद्य सुरक्षा और औद्योगिक प्रतिस्पर्धात्मकता की नींव हैं।’’
भारत की उपलब्धियों पर प्रकाश डालते हुए यादव ने कहा कि ‘सॉवरेन ग्रीन बॉन्ड’ ने निवेशकों का मजबूत विश्वास आकर्षित किया है, आरबीआई और सेबी जैसे नियामक हरित उपकरणों में जवाबदेही और विश्वसनीयता सुनिश्चित कर रहे हैं।
यादव ने कहा कि भारत ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में ‘महत्वाकांक्षा, नवाचार और परिवर्तन’ का मार्ग चुना है। उन्होंने देश के ‘सबसे बड़े नवीकरणीय ऊर्जा विस्तार कार्यक्रम, सबसे जीवंत स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्रों में से एक और नवाचार के लिए उत्सुक युवा, कुशल आबादी’ की ओर इशारा किया।
यादव ने पेरिस समझौते के अनुच्छेद 6 को हरित विकास के एक उपकरण के रूप में उपयोग करने का पुरज़ोर समर्थन करते हुए कहा कि यह अंतरराष्ट्रीय सहयोग को सक्षम बनाता है और विकासशील देशों के लिए वित्तीय सहायता को सुगम बना सकता है।
यादव ने कहा कि ‘ग्लोबल नॉर्थ’ को पृथ्वी की बेहतरी के लिए अपने वादों को पूरा करने के लिए आगे आना होगा।
उन्होंने कहा कि 2035 तक 300 अरब अमेरिकी डॉलर की यूएनएफसीसीसी प्रक्रिया अपर्याप्त है।