
शिवानन्द मिश्रा
क्या डॉलर के वर्चस्व को झटका लगने वाला है? पूरी दुनिया में अमेरिका की असली ताकत सिर्फ उसकी आर्मी या टेक्नोलॉजी नहीं है। असली हथियार है – US Dollar का वर्चस्व।
तेल, गैस, दवाइयाँ, तकनीक, हथियार – हर बड़ा सौदा डॉलर में ही होता है।
IMF और World Bank तक डॉलर को ही आधार मानकर चलते हैं। यही कारण है कि अमेरिका जितना चाहे डॉलर छाप लेता है और पूरी दुनिया उसे अपनाने को मजबूर रहती है।
सही मायने में अमेरिका सिर्फ छापता है और बाकी दुनिया पसीना बहाकर उस Dollar को कमाती है।
BRICS Currency का Concept.
BRICS (Brazil, Russia, India, China, South Africa) के सामने बड़ा सवाल है – क्या वो मिलकर डॉलर की बादशाहत को चुनौती देने वाली साझा मुद्रा ला सकते हैं?
स्वरूप: यह नई करेंसी भौतिक (Printed Note) से ज्यादा Digital या Crypto-like फॉर्म में होगी।
बैकिंग: यह करेंसी डॉलर की तरह “हवा में छपने” वाली नहीं होगी बल्कि Gold, Rare Metals और Energy Reserves पर आधारित करने की चर्चा है।
नियंत्रण: संभवतः इसका नियमन किसी बहु-देशीय बैंक जैसे BRICS Bank (NDB – New Development Bank) के हाथ में होगा। इसका मुख्यालय Shanghai (China) में है – लेकिन सदस्य देश चाहते हैं कि किसी एक देश का दबदबा न हो।
क्या चीन की Monopoly होगी? यह सबसे बड़ा सवाल है क्योंकि BRICS में सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था चीन है और वो अपनी पकड़ मजबूत करना चाहता है लेकिन India, Russia और Brazil साफ कर चुके हैं – अगर यह करेंसी आई तो यह Multi-national Consensus पर चलेगी, किसी एक देश का Private Coin नहीं बनेगी यानी यह “Chinese Yuan” नहीं होगी बल्कि साझा BRICS Currency होगी।
यह करेंसी काम कैसे करेगी?
शुरुआत में सिर्फ International Trade में तेल, गैस, गेहूं, technology deals – इन्हीं में इसका इस्तेमाल होगा।
धीरे-धीरे Member Countries की कंपनियाँ और Banks आपस में BRICS Currency में Transactions करेंगे।
आम जनता के हाथ में Cash Note या Coin आने की संभावना बहुत कम है।
ज़्यादातर यह Digital Currency के रूप में होगी।
कब तक आने की संभावना है? पिछले 5 साल से चर्चा चल रही है। Russia-Ukraine War और US Sanctions के बाद गति तेज़ हुई है। 2025-26 तक इसका Pilot Project या Limited Trade Usage संभव है।
लेकिन Dollar की पूरी जगह BRICS Currency ले पाए – ऐसा 10-15 साल से पहले मुश्किल है। अगर BRICS Currency सफल हुई तो Dollar की Demand कम होगी। अमेरिका की “Print Without Production” वाली ताकत टूट जाएगी।
Wall Street की पकड़ ढीली होगी।
Global Trade में “Multi-Currency System” उभरेगा यानी दुनिया को पहली बार एहसास होगा कि Dollar असल में एक Financial Trap था और हर Trap की एक Expiry Date होती है। इसके Challenges भी कम नहीं हैं:
BRICS देशों के बीच आपसी अविश्वास।
चीन का बढ़ता दबदबा। अलग-अलग देशों की राजनीतिक और आर्थिक प्राथमिकताएँ।
Dollar की गहरी जड़े – जो Global Banking System में पहले से हैं।
लेकिन जिस दिन यह करेंसी सचमुच Launch होकर Global Market में Active हो गई – उस दिन साबित हो जाएगा कि Dollar की बादशाहत एक कागज़ी साम्राज्य थी और इतिहास गवाह है – हर साम्राज्य एक दिन गिरता ही है।