क्या राज्यपाल और राज्य सरकार के बीच संविधान निर्माताओं के अनुसार सामंजस्य है : न्यायालय ने पूछा
Focus News 20 August 2025
नयी दिल्ली, 20 अगस्त (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को पूछा कि क्या देश संविधान निर्माताओं की इस उम्मीद पर खरा उतरा है कि राज्यपाल और राज्य सरकार के बीच सामंजस्य होगा तथा दोनों शक्ति केंद्रों के बीच विभिन्न मुद्दों पर परामर्श भी किया जाएगा।
भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) बी. आर. गवई की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने यह टिप्पणी उस समय की जब केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने राज्यपाल की नियुक्ति और शक्तियों पर संविधान सभा की बहस का उल्लेख किया।
पीठ में न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायमूर्ति विक्रम नाथ, न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा और न्यायमूर्ति ए एस चंदुरकर भी शामिल हैं।
मेहता ने पीठ को बताया कि विभिन्न वर्गों में की गई आलोचनाओं के विपरीत, राज्यपाल का पद राजनीतिक शरण चाहने वालों के लिए नहीं है, बल्कि संविधान के तहत उनके पास कुछ शक्तियां और दायित्व हैं।
सॉलिसिटर जनरल ने राष्ट्रपति संदर्भ पर अपनी दलीलें जारी रखते हुए कहा कि संविधान की संघीय योजना को ध्यान में रखते हुए संविधान सभा में राज्यपालों की भूमिका और नियुक्ति पर विस्तृत बहस हुई है।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने शीर्ष अदालत से यह जानने का प्रयास किया था कि क्या राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों पर विचार करते समय राष्ट्रपति द्वारा विवेकाधिकार का प्रयोग करने के लिए न्यायिक आदेशों द्वारा समय-सीमाएं निर्धारित की जा सकती हैं।
उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को केंद्र सरकार और अटॉर्नी जनरल से राज्यपालों के पास लंबे समय से लंबित उन विधेयकों के बारे में सवाल किए, जो राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित किए जा चुके हैं। साथ ही न्यायालय ने उन स्थितियों में संवैधानिक अदालतों की सीमाओं का जिक्र किया जिसमें 2020 से विधेयक लंबित हैं।
शीर्ष अदालत ने कहा कि वह केवल कानून पर ही अपने विचार व्यक्त करेगी, तमिलनाडु मामले में आठ अप्रैल के फैसले पर नहीं, जिसमें राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों पर कार्रवाई के लिए राज्यपालों और राष्ट्रपति के लिए समयसीमा तय की गयी है।
राष्ट्रपति द्वारा मांगे गए परामर्श की विचारणीयता पर तमिलनाडु और केरल सरकार द्वारा उठाई गई प्रारंभिक आपत्तियों का जवाब देते हुए, पीठ ने कहा कि वह अपने परामर्श क्षेत्राधिकार का प्रयोग करेगी, क्योंकि वह अपीलीय क्षेत्राधिकार में नहीं बैठी है।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने मई में संविधान के अनुच्छेद 143(1) के तहत शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए शीर्ष अदालत से यह जानने का प्रयास किया था कि क्या राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों पर विचार करते समय राष्ट्रपति द्वारा विवेकाधिकार का प्रयोग करने के लिए न्यायिक आदेशों द्वारा समय-सीमाएं निर्धारित की जा सकती हैं।
केंद्र ने अपनी लिखित दलील में कहा है कि राज्य विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों पर कार्रवाई के लिए राज्यपालों और राष्ट्रपति के लिए निश्चित समय-सीमा निर्धारित करना, सरकार के एक अंग द्वारा ऐसा अधिकार अपने हाथ में लेना होगा, जो संविधान ने उसे प्रदान नहीं किया है और इससे ‘‘संवैधानिक अव्यवस्था’’ पैदा हो सकती है।
उच्चतम न्यायालय ने तमिलनाडु विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों से निपटने में राज्यपाल की शक्तियों पर आठ अप्रैल को दिए फैसले में पहली बार यह प्रावधान किया था कि राष्ट्रपति को राज्यपाल द्वारा उनके विचारार्थ रखे गए विधेयकों पर संदर्भ प्राप्त होने की तिथि से तीन महीने के भीतर निर्णय लेना होगा।
पांच पृष्ठों के परामर्श में राष्ट्रपति मुर्मू ने उच्चतम न्यायालय से 14 प्रश्न पूछे और राज्य विधानमंडल द्वारा पारित विधेयकों पर विचार करने में अनुच्छेद 200 और 201 के तहत राज्यपाल और राष्ट्रपति की शक्तियों पर उसकी राय जानने की कोशिश की।