न्यायाधीश के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी के लिए माफी मांगें वादी और वकील: उच्चतम न्यायालय
Focus News 11 August 2025
नयी दिल्ली, 11 अगस्त (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को कहा कि उच्च न्यायालय के न्यायाधीश इस शीर्ष अदालत के न्यायाधीशों से ‘‘किसी भी तरह से कमतर’’ नहीं हैं।
इसी के साथ उच्चतम न्यायालय ने एक वादी और उसके वकीलों को तेलंगाना उच्च न्यायालय के उन न्यायाधीश से बिना शर्त माफी मांगने का निर्देश दिया, जिनके खिलाफ उन्होंने ‘‘अपमानजनक आरोप’’ लगाए थे।
प्रधान न्यायाधीश बी आर गवई, न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति अतुल एस चंदुरकर की पीठ ने कहा, ‘‘हमने देखा है कि आजकल वकीलों के बीच अकारण उच्च न्यायालयों और निचली अदालतों के न्यायाधीशों की आलोचना करना एक चलन बन गया है। यह भी एक चलन बन गया है कि जब भी मामले में कोई राजनीतिक व्यक्ति शामिल होता है, तो यह माना जाता है कि याचिकाकर्ता को न्याय नहीं मिला है और वह स्थानांतरण की मांग करता है… (लेकिन)उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को भी उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों के समान ही छूट प्राप्त है।’’
पीठ ने कहा कि संवैधानिक व्यवस्था के तहत, उच्च न्यायालय के न्यायाधीश उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों से ‘‘किसी भी तरह से कमतर’’ नहीं हैं।
शीर्ष अदालत ने कहा, ‘‘हालांकि उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों के निर्णयों को संशोधित कर सकते हैं, लेकिन उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों पर उसका (उच्चतम न्यायालय का) कोई प्रशासनिक नियंत्रण नहीं है।’’
उच्चतम न्यायालय संबंधित विषय का स्वत: संज्ञान लेकर एक अवमानना याचिका पर सुनवाई कर रहा था। पीठ ने कहा कि उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के खिलाफ आरोप अवमाननापूर्ण हैं और उन्हें माफ नहीं किया जा सकता।
शीर्ष अदालत की यह टिप्पणी हाल में इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा एक दीवानी मामले में सुनाये गये निर्णय में हुई गड़बड़ी की पृष्ठभूमि में भी महत्वपूर्ण है।
प्रधान न्यायाधीश के हस्तक्षेप के बाद, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर महादेवन की पीठ ने आठ अगस्त को इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की आलोचना वाली अपनी टिप्पणियां हटा दीं। इलाहाबाद उच्च न्यायालय के संबंधित न्यायाधीश ने एक दिवानी विवाद मामले में आपराधिक कार्यवाही की अनुमति दी थी।
उच्चतम न्यायालय में मौजूदा मामला एन पेड्डी राजू की स्थानांतरण याचिका से संबंधित है, जिसमें तेलंगाना के मुख्यमंत्री ए रेवंत रेड्डी के खिलाफ अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति (एससी/एसटी) अधिनियम के तहत एक आपराधिक मामले को खारिज करने वाले उच्च न्यायालय के न्यायाधीश पर पक्षपातपूर्ण और अनुचित व्यवहार करने का आरोप लगाया गया था।
प्रधान न्यायाधीश की अगुवाई वाली पीठ ने 29 जुलाई को यह याचिका खारिज कर दी थी, लेकिन ‘‘उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी’’ पर संज्ञान लिया और राजू के वकीलों को नोटिस जारी किया था।
प्रधान न्यायाधीश ने 1954 के संविधान पीठ के फैसले का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि न केवल वादी, बल्कि ऐसी निंदनीय याचिकाओं पर हस्ताक्षर करने वाले वकील भी समान रूप से जिम्मेदार हैं।
उच्चतम न्यायालय ने कहा, ‘‘आरोप उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के विरुद्ध हैं, इसलिए उच्च न्यायालय के न्यायाधीश से माफ़ी मांगना अधिक उचित होगा। हम प्रतिवादियों (यहां याचिकाकर्ताओं) को उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के समक्ष बिना शर्त माफ़ी मांगने की अनुमति देते हैं।’’
पीठ ने तेलंगाना उच्च न्यायालय के महापंजीयक को संबंधित न्यायाधीश के समक्ष मामले को फिर से खोलने का निर्देश दिया जो अंतिम आदेश पारित करेंगे।
पीठ ने कहा कि मामले के दोबारा खुलने के एक हफ्ते के भीतर उच्च न्यायालय के न्यायाधीश से माफीनामा दाखिल किया जाए और उसके बाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश एक हफ्ते के भीतर माफीनामे पर निर्णय लेंगे।
प्रधान न्यायाधीश ने पक्षों को उच्च न्यायालय के समक्ष डिजिटल तरीके से पेश होने की अनुमति देते हुए कहा, ‘‘हम दोहराते हैं कि अदालतों को वकीलों को इस तरह से काम करने से दंडित करने में कोई खुशी नहीं है जो इस अदालत में हस्तक्षेप के बराबर हो।’’
अवमानना नोटिस पर पेश वरिष्ठ अधिवक्ता संजय हेगड़े ने ‘‘बिना शर्त माफी’’ मांगी और उन परिस्थितियों के बारे में बताया, जिनमें ये बयान दिए गए थे।
उच्चतम न्यालय ने 29 जुलाई को राजू, उनके ‘एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड’ रितेश पाटिल और अन्य संबंधित वकीलों को अवमानना नोटिस जारी किया तथा उन्हें याचिका वापस लेने की अनुमति देने से इनकार कर दिया।
उच्चतम न्यायालय ने कहा था, ‘‘हम न्यायाधीशों को कठघरे में खड़ा होने और किसी भी वादी को न्यायाधीश के खिलाफ इस तरह के आरोप लगाने की अनुमति नहीं दे सकते। यहां हम वकीलों को बचाने की कोशिश कर रहे थे।’’
शीर्ष अदालत राजू की स्थानांतरण याचिका पर सुनवाई कर रही थी। राजू ने पाटिल के माध्यम से यह याचिका दायर की थी।
वादी और वकीलों को माफ़ी मांगने का निर्देश देते हुए, पीठ ने पहले कहा था कि वह इस पर विचार करेगी कि इसे स्वीकार किया जाए या नहीं।
पीठ ने कहा था, ‘‘हम देखेंगे कि माफ़ी वास्तविक है या नहीं। जब हमने भाषा पर नाखुशी जताई, तो इसे वापस लेने की छूट मांगी गई। हमने अनुरोध खारिज कर दिया।’’
यह मामला मुख्यमंत्री के खिलाफ एससी/एसटी अधिनियम के तहत दर्ज एक आपराधिक मामले को उच्च न्यायालय द्वारा रद्द किये जाने के फैसले पर आधारित है।
याचिकाकर्ता ने बाद में उच्च न्यायालय के न्यायाधीश पर पक्षपात और अनुचित व्यवहार का आरोप लगाते हुए स्थानांतरण याचिका के साथ शीर्ष अदालत का रुख किया।