रूस के लिए तेल धन शोधन केंद्र में बदल गया है भारत : नवारो ने लगाया आरोप
Focus News 29 August 2025
न्यूयॉर्क/वाशिंगटन, 29 अगस्त (भाषा) यूक्रेन संघर्ष को ‘‘मोदी का युद्ध’’ बताने के एक दिन बाद अमेरिका के राष्ट्रपति के आधिकारिक आवास एवं कार्यालय व्हाइट हाउस के व्यापार सलाहकार पीटर नवारो ने भारत पर ‘‘क्रेमलिन (रूस) के लिए तेल धन शोधन केन्द्र’’ होने का आरोप लगाया है।
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के प्रशासन में व्यापार और विनिर्माण मामलों के वरिष्ठ सलाहकार नवारो ने बृहस्पतिवार को ‘एक्स’ पर एक लंबे लेख में रूस से भारत की तेल खरीद और नयी दिल्ली के ऊंचे शुल्क (टैरिफ) के बारे में बात की।
ट्रंप प्रशासन द्वारा भारत पर लगाया गया 50 प्रतिशत शुल्क बृहस्पतिवार से लागू हो गया।
व्यापार सलाहकार ने कहा कि 50 प्रतिशत शुल्क में अनुचित व्यापार के लिए 25 प्रतिशत और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए 25 प्रतिशत शुल्क एक प्रत्यक्ष प्रतिक्रिया थी।
नवारो ने दावा किया, ‘‘भारत की बड़ी तेल लॉबी ने दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र को क्रेमलिन के लिए एक विशाल रिफाइनिंग केंद्र और तेल धन शोधन केंद्र में बदल दिया है।’’
उन्होंने कहा कि भारतीय रिफाइनरियां किफायती दरों पर रूसी तेल खरीदती हैं, उसका प्रसंस्करण करती हैं और यूरोप, अफ्रीका तथा एशिया को तेल का निर्यात करती हैं।
उन्होंने दावा किया, ‘‘भारत अब प्रतिदिन 10 लाख बैरल से ज्यादा परिष्कृत पेट्रोलियम निर्यात करता है, जो उसके द्वारा आयातित रूसी कच्चे तेल की मात्रा के आधे से भी ज़्यादा है। इससे होने वाली आय भारत के राजनीतिक रूप से जुड़े ऊर्जा क्षेत्र के दिग्गजों को मिलती है -और सीधे पुतिन के सैन्य कोष में जाती है।’’
नवारो ने कहा कि अगर विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र भारत चाहता है कि उसके साथ ‘‘अमेरिका के रणनीतिक साझेदार जैसा व्यवहार किया जाए, तो उसे वैसा ही व्यवहार करना होगा।’’
व्यापार सलाहकार ने कहा कि अमेरिकी उपभोक्ता भारतीय सामान खरीदते हैं, जबकि भारत उच्च शुल्क और गैर-शुल्क बाधाओं के माध्यम से अमेरिकी निर्यात को रोक कर रखता है।
नवारो ने कहा, ‘‘भारत हमारे डॉलर का इस्तेमाल रियायती दरों पर रूसी कच्चा तेल खरीदने के लिए करता है। भारतीय रिफाइनरियां, अपने मूक रूसी साझेदारों के साथ अंतरराष्ट्रीय बाजार में मोटा मुनाफा कमाने के लिए कालाबाजारी वाले तेल को रिफाइन करती और बेचती हैं जबकि रूस यूक्रेन के खिलाफ अपने युद्ध के लिए भारी मात्रा में नकदी जुटाता है।’’
उन्होंने दावा किया कि रूस के यूक्रेन पर आक्रमण से पहले ‘‘भारत के आयात में रूसी तेल की हिस्सेदारी एक प्रतिशत से भी कम थी, लेकिन आज यह 30 प्रतिशत से अधिक है यानी रोज़ाना 15 लाख बैरल से ज्यादा।’’
उन्होंने आरोप लगाया, ‘‘यह बढ़ोतरी घरेलू मांग से नहीं बल्कि भारतीय मुनाफाखोरों के कारण हुई है और इसकी कीमत यूक्रेन को खूनखराबे और तबाही से चुकानी पड़ती है।’’
नवारो ने कहा, ‘‘अमेरिका यूक्रेन को हथियार उपलब्ध कराने पर पैसा खर्च कर रहा है जबकि भारत रूस को आर्थिक सहारा दे रहा है। साथ ही भारत अमेरिका की वस्तुओं पर दुनिया के सबसे ऊंचे शुल्क लगाकर अमेरिकी निर्यातकों को नुकसान पहुंचा रहा है।’’
अमेरिकी अधिकारी ने कहा कि अमेरिका को भारत के साथ 50 अरब डॉलर का व्यापार घाटा झेलना पड़ रहा है और नयी दिल्ली उन्हीं डॉलर का इस्तेमाल रूसी तेल खरीदने में कर रहर है।
उन्होंने आरोप लगाया, ‘‘भारत इससे भारी मुनाफा कमाता है और यूक्रेनी लोग मरते हैं। मामला यहीं खत्म नहीं होता। भारत लगातार रूसी हथियार खरीदता जा रहा है और साथ ही अमेरिकी कंपनियों से यह मांग करता है कि वे संवेदनशील सैन्य तकनीक भारत को हस्तांतरित करें और यहां कारखाने स्थापित करें। यह रणनीतिक मुफ्तखोरी है।’’
वहीं, भारत ने अमेरिका द्वारा लगाए गए शुल्क को ‘‘अनुचित और विवेकहीन’’ बताया है।
नयी दिल्ली ने कहा है कि किसी भी बड़ी अर्थव्यवस्था की तरह, वह अपने राष्ट्रीय हितों और आर्थिक सुरक्षा की रक्षा के लिए सभी आवश्यक उपाय करेगा।
नवारो ने कुछ तस्वीरें भी पोस्ट की हैं, जिनके शीर्षक हैं – ‘भारत-रूस रक्त तेल व्यापार’। साथ ही पैसों से भरी एक तिजोरी की तस्वीर है जिस पर ‘पुतिन का युद्ध खजाना’ लिखा है और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की तस्वीर तथा ध्यान मुद्रा में बैठे प्रधानमंत्री मोदी की तस्वीर है।
इससे एक दिन पहले नवारो ने आरोप लगाया था कि यूक्रेन संघर्ष ‘‘मोदी का युद्ध’’ है और ‘‘शांति का मार्ग’’ आंशिक रूप से ‘‘नयी दिल्ली से होकर’’ गुजरता है।
भारत ने अभी नवारो के बयान पर कोई टिप्पणी नहीं की है।
इस बीच, अमेरिकी संसद की विदेश मामलों की समिति ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट में कहा कि चीन या अन्य देशों द्वारा रूसी तेल की बड़ी मात्रा में खरीद को लेकर प्रतिबंध लगाने के बजाय, ‘‘ट्रंप भारत पर शुल्क लगाकर उसे निशाना बना रहे हैं, जिससे अमेरिकियों को नुकसान पहुंच रहा है और इस प्रक्रिया में अमेरिका-भारत संबंध खराब हो रहे हैं। ऐसा लग रहा है जैसे यह यूक्रेन का मामला ही नहीं है।’’