आज़ादी के हामी और मुक्ति दाता हैं कृष्ण !

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द्वापर युग में भाद्रपद की कृष्णपक्ष की अष्टमी की रात आकाश में घनघोर गरजते बादलों, बिजली की चमक और  मूसलाधार बारिश के बीच बरसों से बंदिनी मां देवकी और पिता वसुदेव  को मुक्त करने के लिए कृष्ण जन्म लेते हैं।

    अपनी सात संतानों को कंस के हाथों मृत्यु लोक पहुंचते देखने वाली मां देवकी को कोई उम्मीद नहीं बची थी, उम्मीद थी तो बस एक चमत्कार की और और इस चमत्कार के रूप में पैदा हुए कृष्ण । एक साथ कई चमत्कार हुए, पहरेदार सो गए, जेल के दरवाजे खुल गए, वसुदेव प्रलय मचाती यमुना पार कर गोकुल पंहुचे, वहां से यशोदा की सद्य जन्मी कन्या को लेकर वापस भी आ गए कृष्ण के साथ देवकी और वसुदेव भी सुरक्षित रहे ।

   कृष्ण नें जन्मते ही अपना संबंध मुक्ति से जोड़ लिया । मां बाप भयमुक्त हुए तो आज़ादी की मुहिम शुरु हो गई । गोकुल में अपनी लीलाओं से दूध, दही, मक्खन, घी को कंस के जबरदस्ती छीन लेने से मुक्त कराया । गोकुल को इंद्र के भय से मुक्ति दिलाई । कंस के भेजे पूतना समेत कितने ही असुरों को जन्म व मृत्यु के बंधन से मुक्त कर निज धाम भेजा । गोपियों को मथुरा जाकर अपने मोह से मुक्त किया तो महज चौदह बरस की उम्र में कंस को भी मार कर प्रजा व उसे दोनों को ही मुक्त किया ।  यानि कृष्ण हर तरह से मुक्ति के देव ठहरते हैं ।

   जब कंस का वध किया तो मथुरा की सत्ता व सिंहासन कंस के पिता उग्रसेन को ही सौंपा  और समय आने पर अपने दम पर तीन लोक से न्यारी मथुरा का मोह छोड़ द्वारिका का निर्माण किया और छलिया ,लीलाधारी गोपीनंदन , यशोदा के कान्हा जल्द ही गीता के उपदेशक और महाभारत के कुशल कूटनीतिज्ञ व येाद्धा के साथ साथ मुक्तिदाता कृष्ण रूप  में भी प्रतिष्ठित हो गए । कृष्ण को मिथकीय चरित्र कह कर नकारना एक आदर्श एवं व्यवहारिक सत्य को निकालना है।

   इस बार कृष्ण जन्माष्टमी पर धर्म एवं स्वाधीनता का खास संयोग बन रहा है और वह संयोग है भारत के स्वाधीनता दिवस पर ही 11:49 बजे से जन्माष्टमी का योग शुरू हो जाएगा,  यानी मुक्तिदाता कृष्णा और मुक्ति पाए भारत दोनों का जन्मदिन है आज।

 यदि कृष्ण के व्यक्त्तिव व कृतित्व पर नज़र डालें तो वें अपने आप में मुक्ति के देवता ठहरते हैं । भले ही उनकी छवि एक चंचल नटखट खिलंदड़ किस्म के युवा होने, गोपियों के साथ हर तरह के रास रचाने वाले नायक की ज़्यादा हो पर जब वें एक शासक या राजा और गीता के उपदेशक व महाभारत के रणनीतिकार के रूप  में सामने आते हैं तो वें दमितों, दलितों , शोषितों व पीड़ितो के उद्धारक के रूप  में अपनी पहचान दर्ज कराते हैं ।

   कृष्ण जन्म से चमत्कार का दूसरा नाम है. वह दिव्य तरीके से अवतार लेते हैं और बावजूद देवकी के गर्भ से पैदा होने के भगवान मान लिए जाते हैं । ऐसा लगता है कि वह धरती पर आए ही मुक्ति का लक्ष्य लेकर थे, इसीलिए आते ही देवकी को व वसुदेव को भयमुक्त किया, आने से पहले ही सात वसुओं को शापमुक्त किया। गोकुल पंहुच वहां के गोप गोपियों को हर हाल में दूध दही केवल कंस को ही बेचने या देने से मुक्त करने का अभियान छेड़ा । गोकुल वासियों को इंद्र के जलीय  आतंक से मुक्ति दिलाई । कंस के भेजे गए पूतना समेत कितने ही दैत्यों को जन्म मरण के बंधन से मुक्त किया ।

   कृष्ण घी, मक्खन को व्यापारिक बंदिशों से मुक्ति दिलाते हैं तो मथुरा पंहुच नई लीला करने के लिए गोपियों को उद्धव के माध्यम से मोहमुक्त करना भी नहीं भूलते। जब उन्हे आभास होता है कि रुक्मणि के रूप  नारी बंधन में है तो वे अपने प्राणों को संकट में डालकर भी उनका अपहरण नारी को स्वैच्छिक विवाह हेतु बंधन मुक्त करते हैं।   

   जब महाभारत अपरिहार्य हो जाता है तो वह सताए गए पांडवों के साथ खड़े होते हैं बिना इस बात की चिंता किए कि हस्तिनापुर का शक्तिशाली राज्य उनके ख़िलाफ़ है । वह अपने चातुर्य और मार्गदर्शन से पांडवों को संकटों से मुक्ति दिलाने के लिए हर उपक्रम करते हैं । द्रौपदी को भरी सभा में नग्न होने के अपमान से मुक्ति दिलाने के कृष्ण के चमत्कार को तो आज तक सब नमन करते हैं ।

 महाभारत का  युद्ध रोकने को कृष्ण हर तरह से  पूरा प्रयास करते हैं पर जब अहंकारी दुर्योधन मानता ही नहीं तो वें न्याय के साथ खड़े हो जाते हैं और  उसे जिताकर ही दम लेते हैं । जब भाई बंधुओं को सामने देख अर्जुन मोह के दास बन जाते हैं तब श्रीमद् भागवत गीता का उपदेश देकर मोहपाश से स्वतंत्र कर महाभारत का आगाज़ करवाते हैं जो अंततः न्याय व अन्याय के बीच का युद्ध बनकर सामने आता है।  इतना ही नहीं वें न्याय व सत्य की जीत होने तकडटे रहते हैं ।

   एक प्रजारंजक राजा के रूप  में कृष्ण अपनी प्रजा का हर तरह से ख्याल रखते हैं उसके सुखों व सुविधाओं का इंतजाम करते हैं, बंजर भमि को उपजाऊ बनाने के लिए स्वयं भी हल चलाते हैं । जब कृष्ण शासक हो जाते हैं तब उनके चरित्र व कार्यों में चंचलता नहीं गांभीर्य दिखता है तब वें बांसुरी बजैया नहीं वरन एक प्रबुद्ध व जिम्मेदार शासक का आदर्श स्थापित करते हैं और अपनी प्रजा को हर कष्ट मुसीबत और दुख से मुक्ति दिलवाते हैं ।

   अस्तु, कृष्ण आजा़दी के हामी हैं और लोक कल्याण से संपृक्त सत्ता के दर्शन कराते हैं । अटैक कह सकते हैं कि कृष्णा मुक्ति दाता हैं जो अपने भक्तों को हर प्रकार के पाप-ताप शाप और संताप से मुक्ति दिलाते हैं।