
राजेश जैन
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत पर 20 से 25 प्रतिशत तक आयात शुल्क (टैरिफ) लगाने के संकेत दिए हैं। ट्रंप प्रशासन ने भारत को साफ तौर पर 1 अगस्त तक की समय सीमा दी है। अगर तब तक कोई व्यापार समझौता नहीं हुआ तो भारतीय उत्पादों पर 16 प्रतिशत अतिरिक्त टैक्स लगाया जाएगा। यह शुल्क पहले से लागू 10 प्रतिशत बेसलाइन टैरिफ के अलावा होगा, जिससे कुल शुल्क 30 प्रतिशत से अधिक हो सकता है।
यह भारत जैसे विकासशील देश के लिए एक चेतावनी है। इसका सीधा असर भारत के निर्यात पर पड़ेगा—खासकर टेक्सटाइल, ऑटो पार्ट्स, जेम्स-ज्वेलरी और फार्मा सेक्टर पर। जब एक अमेरिकी ग्राहक भारतीय गारमेंट या फार्मा उत्पाद खरीदने की सोचेगा, तो उसे 25% ज्यादा कीमत चुकानी पड़ेगी। ऐसे में भारतीय उत्पाद अमेरिकी बाजार में प्रतिस्पर्धा खो सकते हैं।
उदाहरण के तौर पर भारत हर साल अमेरिका को लगभग 9 अरब डॉलर के कपड़े निर्यात करता है। ऐसे में अगर टैरिफ बढ़ गया, तो बांग्लादेश और वियतनाम जैसे प्रतिस्पर्धी देश इस मौके का फायदा उठा सकते हैं, क्योंकि अमेरिका ने उन्हें शुल्क रियायतें दे रखी हैं।
यह टैरिफ संकट केवल व्यापार तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि इसका असर निवेश पर भी पड़ सकता है। भारत की छवि अनिश्चित व्यापारिक वातावरण वाले देश की बन सकती है, जिससे संभावित विदेशी निवेशक हिचक सकते हैं।
भारत की रणनीति
भारत की ओर से संतुलन बनाने की कोशिशें जारी हैं। भारत चाहता है कि टैरिफ 10% से कम रखा जाए और बदले में अमेरिका को कुछ क्षेत्रों में रियायतें दी जाएं।
हालांकि भारत ने स्पष्ट किया है कि वह कृषि और डेयरी क्षेत्र को विदेशी कंपनियों के लिए नहीं खोलेगा। अमेरिका लंबे समय से इन क्षेत्रों में प्रवेश चाहता रहा है लेकिन भारत का स्टैंड बिल्कुल साफ है कि अन्नदाता के हितों से कोई समझौता नहीं होगा।
भारत गैर-कृषि क्षेत्रों में समझौते के लिए तैयार है और अमेरिका को यह भी प्रस्ताव दे चुका है कि यदि शुल्क घटाए जाते हैं तो भारत अमेरिकी औद्योगिक सामानों पर टैक्स पूरी तरह खत्म करने को तैयार है। इतना ही नहीं, भारत ने बोइंग से विमान खरीदने की संभावना भी जताई है ताकि व्यापार घाटा संतुलित हो सके।
संभावनाएं और उम्मीदें
इस बीच एक अच्छी खबर यह है कि अमेरिका की ट्रेड टीम 25 अगस्त को भारत आ रही है। उम्मीद है कि सितंबर-अक्टूबर तक दोनों देश एक अंतरिम व्यापार समझौते तक पहुंच सकते हैं। पिछली बैठक वॉशिंगटन में हुई थी, जहाँ भारत के मुख्य वार्ताकार राजेश अग्रवाल और अमेरिकी प्रतिनिधि ब्रेंडन लिंच ने विस्तृत चर्चा की थी। ट्रंप के हालिया बयान भारत पर राजनीतिक दबाव बनाने की रणनीति का हिस्सा हो सकते हैं। उनका यह कहना कि “अब मैं इंचार्ज हूं और यह सब खत्म होगा”, संकेत देता है कि वह भारत को शीघ्र समझौते के लिए बाध्य करना चाहते हैं जबकि भारत के वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने भी साफ किया है कि भारत किसी भी समझौते पर दबाव में हस्ताक्षर नहीं करेगा। भारत सिर्फ उन्हीं शर्तों पर समझौता करेगा जो देश के हित में हों और पूरी तरह से परखी गई हों।
संकट या अवसर?
यह संकट भारत के लिए एक अवसर भी है। यही समय है जब ‘मेक इन इंडिया’, पीएलआई स्कीम, वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट जैसी योजनाओं को और मजबूत किया जाए। भारत को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में यह टैरिफ संकट एक उत्प्रेरक की भूमिका निभा सकता है। साथ ही, भारत को पारंपरिक बाजारों के साथ-साथ नए निर्यात गंतव्य भी तलाशने होंगे—अफ्रीका, मध्य एशिया, लैटिन अमेरिका जैसी उभरती अर्थव्यवस्थाएं भारत के लिए संभावनाओं से भरे हुए हैं।
कूटनीति की कसौटी
कूटनीतिक स्तर पर भारत की भूमिका और भी ज़िम्मेदार हो गई है। भारत और अमेरिका के संबंध केवल व्यापार तक सीमित नहीं हैं—हम रक्षा, तकनीक, साइबर सुरक्षा और ‘क्वाड’ जैसे बहुपक्षीय मंचों पर साझेदार हैं। अमेरिका के लिए भी यह समझदारी भरा कदम होगा कि वह भारत के साथ रणनीतिक साझेदारी को खराब न होने दे।
जब युद्ध तलवारों से नहीं, व्यापार की शतरंज पर लड़ा जाए तो हर चाल का असर करोड़ों लोगों की जेब और भविष्य पर पड़ता है। अगर व्यापार युद्ध है तो समझौता उसकी शांति है—लेकिन शांति हमारी शर्तों पर होनी चाहिए, झुकाव की मुद्रा में नहीं। भारत को इस लड़ाई में अपनी ज़मीन पर टिके रहकर, नीतिगत मजबूती और कूटनीतिक संतुलन के साथ आगे बढ़ना होगा। तभी हम इस टैरिफ की चुनौती को अवसर में बदल पाएंगे।