यूसीसी पर पैनल के सदस्यों का चयन राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र में: गुजरात उच्च न्यायालय

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अहमदाबाद, 31 जुलाई (भाषा) गुजरात उच्च न्यायालय ने कहा है कि राज्य सरकार द्वारा समान नागरिक संहिता (यूसीसी) पर पांच सदस्यीय समिति के गठन को किसी भी वर्ग के लोगों के प्रति पूर्वाग्रह पैदा करने वाला नहीं कहा जा सकता और इसमें हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है।

न्यायमूर्ति निरल आर मेहता की एकल पीठ ने मंगलवार को समिति के गठन को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें समिति में अल्पसंख्यक समुदायों का प्रतिनिधित्व नहीं होने के कारण इसके पुनर्गठन के लिए अदालत से निर्देश देने का अनुरोध किया गया था।

अदालत ने कहा कि समिति के सदस्यों का चयन ‘‘पूर्णतः राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र में होगा।’’

इस वर्ष चार फरवरी को मुख्यमंत्री भूपेन्द्र पटेल ने यूसीसी की आवश्यकता का आकलन करने तथा इसके लिए एक विधेयक का मसौदा तैयार करने के वास्ते समिति के गठन की घोषणा की थी।

इस समिति की अध्यक्षता उच्चतम न्यायालय की सेवानिवृत्त न्यायाधीश रंजना देसाई कर रही हैं। इसके सदस्यों में सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी सी एल मीणा, अधिवक्ता आर सी कोडेकर, पूर्व कुलपति दक्षेश ठाकर और सामाजिक कार्यकर्ता गीताबेन श्रॉफ शामिल हैं।

उच्च न्यायालय की वेबसाइट पर उपलब्ध कराए गए विस्तृत फैसले में पीठ ने कहा कि समिति का गठन पूर्णतः एक प्रशासनिक निर्णय था।

न्यायालय ने कहा कि उसका दृढ़ मत है कि एक बार जब यूसीसी समिति का गठन भारत के संविधान के अनुच्छेद 162 के तहत एक कार्यकारी आदेश द्वारा पूरी तरह से कर दिया गया तो इसके विशेष सदस्यों का चयन “राज्य सरकार के पूर्ण अधिकार क्षेत्र में होगा।”

इसमें कहा गया, ‘‘राज्य प्राधिकारियों द्वारा समिति के सदस्यों का चयन करना पूरी तरह से न्यायोचित है और इसके लिए रिट आदेश जारी नहीं की जा सकती।’’

अदालत ने कहा, ‘‘ समिति गठित करने से यह नहीं कहा जा सकता कि इससे किसी वर्ग के लोगों के प्रति पूर्वाग्रह पैदा होता है, जबकि विशेष रूप से किसी भी वर्ग के लोगों के लिए समान नागरिक संहिता पर अपने विचार प्रस्तुत करने का विकल्प हमेशा खुला रहता है।’’

याचिकाकर्ता, सूरत निवासी अब्दुल वहाब सोपारीवाला ने उच्च न्यायालय से अनुरोध किया था कि राज्य सरकार को निर्देश दिया जाए कि वह समिति का पुनर्गठन करे जिसमें संबंधित कानून के बारे में ज्ञान और अनुभव रखने वाले नए सदस्य शामिल हों तथा यूसीसी को लागू करने के किसी भी कदम से पहले सभी धार्मिक और सांस्कृतिक समुदायों को शामिल करते हुए परामर्श प्रक्रिया अपनाई जाए।

महाधिवक्ता कमल त्रिवेदी ने अपने तर्क में कहा कि समिति का गठन पूर्णतः एक प्रशासनिक कार्रवाई है और इसका राज्य सरकार के किसी वैधानिक कर्तव्य से कोई लेना-देना नहीं है।