
विवेक रंजन श्रीवास्तव
कल सुबह की बात है। चाय का प्याला हाथ में लेकर अखबार पढ़ ही रहा था कि मोबाइल की स्क्रीन पर ‘दुनिया बदलने वाला’ एक मैसेज आ टपका। लिखा था “चेतावनी! कल से फेसबुक, मेटा के नाम से आपके चित्रों का उपयोग कर सकता है। आज अंतिम दिन है विरोध दर्ज कराने का।” नीचे एक लंबा-चौड़ा घोषणा-पत्र टाइप स्टेटमेंट था “मैं फेसबुक को अपने कल, आज और भविष्य के चित्रों, विचारों, संदेशों या रचनाओं के उपयोग की अनुमति नहीं देता/देती।”
पढ़कर एक क्षण को तो लगा कि देश के सभी संविधान विशेषज्ञों ने संयुक्त रूप से संविधान संशोधन प्रस्ताव व्हाट्सऐप स्टेटस में डाल दिया है।
सच कहूं तो यह वही दृश्य था, जब आदमी तकनीक के समुद्र में तैरते हुए भी “तथ्य” की पतंग को “फॉरवर्ड” की डोर से उड़ाता है। सोशल मीडिया की यही तो खूबी है, कि यहां हर तीसरा प्राणी ‘डिजिटल गुरु’, ‘कविता संकलन संपादक’, और ‘कानूनी सलाहकार’ होता है ,बशर्ते वो अपने फॉरवर्ड को सच मानने को तैयार हो।
जो मित्र आज तक बैंक लॉगिन और लॉगआउट में उलझे रहते थे, वे अचानक ‘डिजिटल अधिकारों’ की रक्षा में सुप्रीम कोर्ट के जज बन गए! जिन्होंने अब तक अपना पर्स,अपनी बैंक की पासबुक पत्नी से छिपाकर रखी, वे भी ‘प्राइवेसी राइट्स’ पर अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित कर रहे हैं,फेसबुक को ललकार कर।
हमारे मोहल्ले के शर्मा जी सहित कई मूर्धन्य विद्वानों ने बिना किसी फैक्ट चेक के भेड़ चाल चलते हुए तुरंत बाकायदा स्टेटस डाला “मैं मेटा को सूचित करता हूं कि मेरी प्रोफाइल और इसकी सामग्री पर आपका कोई अधिकार नहीं है।”। जो लेखक महोदय चाहते हैं कि उनकी कथित कविता हर अखबार कापी पेस्ट कर छाप कर उन्हें धन्य करे उन साहित्यकार महोदय ने भी यह घोषणा यथावत रिपीट कर दी। समझ सकते हैं कि फेसबुक के सर्वर अमेरिका में हैं और शर्मा जी की समझ अलमारी में बंद पुराने रेडियो जैसी। फेसबुक वाले तो इन बयानों पर शायद उतना ही ध्यान देंगे जितना रेलवे स्टेशन पर लोग ‘जागरूकता पोस्टर’ पर देते हैं।
और इसी बीच, एक नया खेल शुरू हो जाता है । “गंभीर चेतावनी को कॉपी-पेस्ट न करने वाले अगले सात दिन में दुर्भाग्य के शिकार होंगे।” अब देखिए, यह चेतावनी है या श्राप? सोशल मीडिया क्या बन गया है, सूचना का तांत्रिक अखाड़ा?
राम राम लिखने भर से 7 घंटों में धन की बौछार होने लगे तो अदानी अपने सब कर्मचारी इसी काम में लगा दें।
इस सब में असली मज़ा तब आता है, जब कोई प्रबुद्ध आत्मा, अपने टूटे फूटे कविता टाइप के स्टेटस को महादेवी वर्मा की रचना बता देता है। कविता कुछ यूँ होती है ,
*“तेरा मेरा रिश्ता है वाईफाई से जुड़ा,*
*पासवर्ड गलत हो तो दिल भी जुदा।”*
और नीचे लिखा होता है कवियित्री महादेवी वर्मा ।
बारम्बार यदि यही फॉरवर्ड रिपीट हो जाए तो गूगल के सर्वर भी कनफ्यूजिया जाते हैं, और प्रश्न करने पर कि ये पंक्तियां किसकी हैं, उत्तर मिलता है महादेवी वर्मा की । इस तरह स्व. महादेवी जी को नए संग्रह के लिए स्वर्ग में ही बैठे बैठाए नई सामग्री सुलभ हो जाती है।
कविताओं से लेकर खबरों तक, यहां हर कोई ‘शेयर’ के बटन से विद्वान बन चुका है। किसी दिन सूरज पश्चिम से उग जाए, और कोई उसे “Breaking News ग्रहों की चाल बदली” के साथ शेयर कर दे तो आश्चर्य मत करना।
ये सिलसिला सिर्फ कविताओं या चेतावनियों तक ही सीमित नहीं है। कभी आपको संदेश मिलेगा “खाली पेट लहसुन खाइए, तो कैंसर भाग जाएगा।” कैंसर अगर लहसुन से भागता, तो हर सब्जी वाले को ऑन्कोलॉजिस्ट घोषित कर देना चाहिए था।
समस्या ये नहीं कि लोग फॉरवर्ड करते हैं, समस्या ये है कि बिना देखे, बिना परखे, बस ‘डर या जोश’ के बहाव में शेयर कर देते हैं। किसी ने भी नहीं पूछा कि “क्या सच में फेसबुक आपकी फोटो चोरी कर लेगा?”, “क्या महादेवी वर्मा जी को इंस्टाग्राम की जानकारी थी?”, “क्या किसी स्टेटस से कोई लीगल इफेक्ट होता है?” क्या मेटा को ए आई के जमाने में भी आपकी फोटो के कथित उपयोग की जरूरत आन पड़ी है?
इन सबके बीच, सोशल मीडिया का एक नियम है “अगर किसी बात को दस लोगों ने शेयर कर दिया, तो वह खुद-ब-खुद सत्य हो जाती है!” और यही सत्य हमारे समाज का सबसे बड़ा मज़ाक बन चुका है।
अगर ये ट्रेंड इतिहास में होता तो? अकबर की आत्मकथा में लिखा होता “यह ताम्रपत्र वाट्सऐप से प्राप्त हुआ, आगे फॉरवर्ड न करने पर सल्तनत संकट में आ जाएगी।” ताजमहल की दीवार पर लिखा होता “मुमताज़ का ये मकबरा गूगल मैप के सुझाव पर बनवाया गया।” और तुलसीदास की रामचरितमानस में अंत में एक नोट जुड़ा होता “इस रचना को 5 मित्रों को भेजें, नहीं तो रावण का प्रकोप आएगा!”
अब वक्त आ गया है कि हम ये समझें कि सोशल मीडिया पर ‘सतर्कता’ एक जिम्मेदारी है, फॉरवर्ड करना विद्वता नहीं है। किसी भी कविता, खबर, चेतावनी या ज्ञानवर्धक नोट को आंख मूंदकर कॉपी-पेस्ट करना ज्ञान नहीं, आलस्य है।
हमारी पीढ़ी के पास जो सबसे बड़ी ताकत है, वह है , हँसने की शक्ति और सोचने की स्वतंत्रता। तो अगली बार जब कोई बोले, “आज ही फेसबुक को चेतावनी दो”, तो मुस्कराकर कहिए “पहले ज़रा चेतावनी खुद को दे लूं कि अगली बार कुछ भी आंख मूंदकर न शेयर करूं।”
और हाँ, फेसबुक वाले अगर आपकी तस्वीरें चुराकर कुछ करना चाहें तो कम से कम दाढ़ी बनाकर ढंग से फोटो खिंचवाइए… क्या पता “मेटा” में भी स्टाइल का चलन हो ।