महादेव का महापर्व : कावड़ यात्रा

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भारतवर्ष देवताओं की भूमि है, यहां देवताओं ने मानव देह में जन्म लिया है। यह सभी कुछ हमारे वेदों, शास्त्रों में बताया गया है। हमारे वेद, शास्त्र, पुराण, उपनिषद आदि सभी ज्ञान के विपुल भंडार हैं। इनमें जो लिखा है उसी के आधार पर समाज, पर्यावरण, चिकित्सा, शिक्षा आदि सभी को अच्छे से जाना-समझा जा सकता है। भारतीय और वैश्विक समाज हमारे ग्रंथो के ज्ञान की ताकत को जानते-समझते रहे हैं। हमारे ग्रंथो को कितने ही आक्रमणकारी यहां से अपने देश ले गए, फिर उनका अनुवाद कर अपने अनुसंधान और शोध को आगे बढ़ाया। अपनी भाषा में प्रकाशित कर उसे अपना बना लिया। आक्रमणकारियों ने हमारे ग्रंथो को जला दिया, उसे फाड़कर बहा दिया। इस देश की पावन पुनीत भूमि में ज्ञानियों की कमी नहीं रही है। हमारे संतों, महात्माओं, मनीषियों ने अपने तपोबल और व्रत से ज्ञान की उस धारा को फिर से प्रबल रूप से जीवित कर दिया। समय के साथ-साथ एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को देने में कुछ कमियां भी रह गई होगी, लेकिन ज्ञान का प्रवाह जीवित है और आगे भी रहेगा।

हमारे शास्त्र हमारे आदर्श हैं।

उन्हीं के आधार पर हम अपने तीज, त्योहार, व्रत, पावन बेला आदि को मनाते हैं। हमारे शास्त्रों में लिखा एक-एक शब्द सत्य है, उसे कोई काट नहीं सकता । हमारे शास्त्रों में देव पूजा के बारे में भी बताया-समझाया गया है। हमारे देवों के देव हैं- महादेव अर्थात भोले शंकर। महादेव को कितने ही अन्य नामों से भी जाना जाता है- चंद्रशेखर, त्रिलोचन, नीलकंठ आदि। हर एक नाम के पीछे एक लंबी कथा है। मां गंगा और गंगाजल की सभी कथाएँ महादेव से जुड़ी हैं। हम यहां गंगाजल की पावन यात्रा अर्थात कावड़ यात्रा पर बात कर हैं।

हरिद्वार और गोमुख के पावन तट से करोड़ों श्रद्धालु गंगाजल लेकर अपनी कावड़ यात्रा अपने-अपने ग्राम देवता, इष्ट देवता आदि पवित्र स्थानों पर ले जाकर करते हैं। कुछ युवा तो हरिद्वार से रामेश्वरम तक कावड़ लेकर जाते हैं। कावड़ यात्रा के पवित्र गंगाजल को भक्त भगवान शिव को अर्पित करते हैं। कावड़ यात्रा में पवित्र गंगाजल को भक्त अपने अलग-अलग अंदाज में लेकर आते हैं- झूला कावड़, खड़ी कावड़, डाक कावड़ आदि। इस कावड़ यात्रा में गाते-बजाते-नाचते भोले मस्त होकर चलते हैं। अब तो कावड़ यात्रा में झांकी रूपी कावड़ भी आने लगी हैं। भोले शंकर की झांकियां हरिद्वार से दिल्ली और अन्य स्थानों तक दिखाई दे जाती हैं। महंगे गाजे-बाजे, डीजे, नाचते-गाते भक्त रास्ते भर दिखाई दे जाते हैं। भगवान शंकर की अलग-अलग मुद्राओं की झांकियां देखते ही बनती हैं। मनमोहक दृश्य किसी में भी रोमांच भर देता है।

कावड़ यात्रा में हर आयु, वर्ग, लिंग का व्यक्तित्व मिल जाता है। छोटे-छोटे बच्चे, युवा, वृद्ध, माताएं-बहनें आदि अपने-अपने समूह में चलते दिखाई दे जाते हैं। कोई युवा साथी तो अपने माता-पिता को ही तराजू रूपी झूले में बैठकार चल रहा है तो कोई सेना की मिसाइल का मॉडल कावड़ रूप में लेकर चल रहा है। कावड़ यात्रा का यह पर्व सावन महीने से आरंभ होता है। भारतवर्ष के किसी क्षेत्र में यह कावड़ यात्रा आधे महीने तक चलती है तो कहीं पूरे सावन महीने तक चलती है। कहीं सावन के हर सोमवार को भोलेनाथ पर पवित्र कावड़ से जल चढ़ाया जाता है। भगवान भोलेनाथ सभी भक्तों में ऐसे ही प्रेम, भक्ति, शक्ति, योग, सेवा भाव आदि गुण भरते रहें। एक अनुमान यह भी बताता है कि इस वर्ष हरिद्वार और गोमुख से पाँच करोड लोग कावड़ उठाकर अपनी यात्रा पूरा करने वाले हैं।