तन – मन और जनकल्याण का पर्व कांवड़- यात्रा

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सावन के महीने के शुरू होते ही उत्तरी भारत में कांवड़ यात्रा की गहमा-गहमी भी शुरू हो गई है।  देश भर से शिवभक्त भोले अपने-अपने स्थान से अपने निकट स्थित गंगा के जल स्रोतों से जल लेकर वापस अपने गंतव्य के और लौटते देखे जा सकते हैं।‌ खासतौर पर पश्चिम उत्तर प्रदेश एवं उत्तराखंड के हरिद्वार एवं ऋषिकेश जिलों में इस समय भारी भीड़ एवं जन सैलाब देखा जा सकता है।

सावन मास के स्वामी भगवान शिव ही माने जाते हैं इसलिए श्रद्धालुओं को सावन में भगवान शिव  की कृपा बहुत फलदाई रहती है । कांवड़ में विशेष रूप से उत्तरी भारत बम-बम भोले के उद्घोषों से गुंजायमान हो जाता है । सड़कों पर कांवड़ियों का हुजूम व आस्था का ज्वार पूरे उफान पर रहता है  । हर तरफ भगवा ही भगवा नज़र आता है। आस्था के ज्वार में भक्त तो डूबे ही रहते हैं दूसरे लोग भी कांवड़ यात्रा से आह्लादित होते हैं ।

 आइए, चिंतन करते हैं हरिद्वार की तरफ जाते और वहां से वापस अपने गंतव्यों की तरफ लौट पुण्य कमाते कांवडियों, कांवड़ और धर्म, आस्था, तर्क और पुण्य के शिव एवं कांवड़यात्रा के धार्मिक और आध्यात्मिक आयामों पर  ।

 

   मिथकों के अनुसार श्रावण कृष्ण प्रतिपदा से
शिवभक्त भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए दूर – दूर  से जलाभिषेक करने
व  जल लाने के लिये लोग कांवड़ लेकर आ़ते हैं । देश के कोने कोने से, विभिन्न,
वाहनों, गणवेश व मानेकामनाओं के साथ कांवडिएं सारी सड़कों पर कब्जा कर लेते हैं,
पूरा वातावरण  शिवमय हो जाता है । हर तरफ ‘हर-हर, बम-बम, जयशिव भोले’’
के  उद्घोष सुनाई देते हैं । कंधे पर कांवड़ टांगे  बच्चे, बूढ़े, जवान,
स्त्री, पुरुष पैदल या वाहनों पर जल लाने और इच्छित मंदिरों शिवालयों में चढ़ाते
हैं हर साल सावन में ।

 

    कहा जाता है कि एक नए युग की शुरुआत के लिए
पुराने युग को समाप्त होना पड़ता है ऐसे ही अच्छाई के वर्चस्व के लिए बुराई को
समाप्त होना पड़ता है यानी कह सकते हैं कि कांवड़यात्रा निर्माण एवं विध्वंस की एक
पावन कड़ी है । मान्यता है कि शिव बुराई के नाश के लिए अंतिम विकल्प हैं  और
कांवड़ यात्रा भी तन-मन में रमे विकारों के विनाश के लिये की जाती । शिव भक्तों का
मानना है कि जब तन और मन दोनों ही पूर्णतया शुद्ध हो जाते हैं तब भोलेनाथ आसानी से
रीझते हैं।  कांवड लाने के बहाने से ही तन के साथ साथ मन की अशुद्धियां भी
नष्ट करने के लिये भोले के भक्त इतना कष्ट उठाते हैं ।

 

   कांवड परम्परा के बारे में माना जाता है कि भगवान
शिव को रिझाने के लिये भागीरथ ने कठोर तपस्या की और शिव के आश्वासन देने के बाद
गंगा पृथ्वी पर आने को राजी हुई और शिव ने भी अपना वचन निबाहा तथा भागीरथ के
पुरखों का उद्धार हुआ। शिव अकेले ऐसे देवता हैं जो जगत्कल्याण के लिये हर कष्ट सह
लेते हैं ।

 

   समुद्र मंथन के समय भी शिव ने ही सारा जहर स्वयं
पी कर देवता व राक्षसों का विवाद तो शांत किया ही सृष्टि को भी हलाहल के प्रभाव से
बचाया था । शिव ने ज़हर से औरों तो बचा लिया पर विष के प्रभाव से वे स्वयं बेहोश
हो गए तब देवताओं ने उपलब्ध संसाधनों से शिव का उपचार किया, कहा जाता है कि
देवताओं ने उन पर पर्याप्त मात्रा में जल, दूध, दही शहद आदि शीतल पदार्थ डाले और
उससे शिव स्वस्थ हो गये. तभी से शिव को प्रसन्न करने व उनकी पूजा के लिये
गंगाजल आदि से अभिषेक करने  प्रचलन हुआ।

 

    शैव मानते हैं कि शिव बिना उपासक की भावना
जाने भी बड़ी ही आसानी से प्रसन्न हो जाते हैं तभी तो वे रावण और भस्मासुर जैसों को
भी अमर होने का वरदान दे देते हैं मगर जब भक्तों की कातर पुकार शिव तक पंहुचती हैं
तो वें विनाशकारी तत्वों का संहार भी करने में नहीं हिचकिचाते हैं । वस्तुतः शिव
विनाश के नहीं वरन् पुनर्निर्माण के देव कहे जाने चाहिएं जो कि प्रकृति व सृष्टि
में घातक तत्वों की अति हो जाने पर उसे पहले नष्ट कर उसके पुनर्निर्माण का आधार
रखते हैं । शिव कल्याण के प्रतीक हैं वें अपने भक्तों की झोलियां भरने में देर
नहीं लगाते । स्वयं अर्द्धनग्न रह दूनिया को अपने रक्षा कवच से ढकते हैं । वें
पूरी तरह काम मुक्त, वीतरागी बन सृष्टि को हरा भरा रखते हैं, वें
देव-दानव,मानव,किन्नर सबका हित करते हैं ।

 

   श्रावण में शिव की पूजा के पीछे एक धारणा यह भी है
कि श्रावण मास में कांवड़ के बहाने से शिव की उपासना होती है और वे खुश होकर सारी
मनोकामनायें पूर्ण करते हैं । एक तरह से कांवड़ यात्रा पर कल्याण व आत्मशुद्धि के
लिए किये जाने वाले यज्ञ के बराबर है ।

 

  कांवड़ यात्रा से बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार मिलता
है होटल, ढाबे वाले,  खाद्य पदार्थ व फल  विक्रेता कांवड़ बनाने वाले और
मजदूर वर्ग को अच्छा ख़ासा फ़ायदा होता है । वही निरंतर यात्रा करने से शरीर की
अशुद्धियां दूर होती हैं और शरीर अधिक क्षमतावान हो जाता है।  वहीं मन में
पवित्र भाव लेकर कल्याण की सर्व कामना से जब कांवड़ यात्रा की जाती है तो मन भी
पवित्र हो जाता है । इस तरह कह सकते हैं कि कांवड़ यात्रा तन,मन और जन कल्याण की
यात्रा है।

 

   शिव को बहुत दयालु एवं भोला होने के नाते देवों का
देव यानि महादेव कहा गया है । उनकी पूजा में तामसी चीजों का सेवन, हिंसा एवं मादक
पदार्थों का सेवन करना तथा मन में दूषित विचार रखना सारी पूजा एवं यात्रा के फल
नष्ट करने वाला है । इसलिए तन मन एवं जन कल्याण की इस यात्रा को पवित्र भाव के साथ
ही करना चाहिए तथा जहां तक हो सके, दान पुण्य आदि से जरूरतमंद लोगों की सहायता भी
करनी चाहिए।