कारगिल विजय दिवस : भारतीय सेना के शौर्य और पराक्रम का “उत्सव”

Kargil

प्रदीप कुमार वर्मा

कहते हैं कि युद्ध किसी समस्या का समाधान नहीं है लेकिन हर बार यह धारणा सही नहीं होती। यह बात भी सत्य है कि दुश्मन सर पर बेवजह चढ़कर आ जाए तो शास्त्रों के मुताबिक “शस्त्र” उठाना तब अवश्यम्भावी हो जाता है। कारगिल का युद्ध भी सेना के शौर्य और पराक्रम के साथ-साथ युद्ध की इसी अवधारणा की एक अनूठी दास्तान है। वर्ष 1999 में आज ही के दिन यानी 26 जुलाई को मां  भारती के वीर सपूतों इन पाकिस्तान सेना को कारगिल की पहाड़ियों से खदेड़ दिया था। पाक सेना के विरुद्ध करीब सवा दो महीने तक चले “आपरेशन विजय” को सफलतापूर्वक अंजाम देकर हमारी भारतीय सेना ने 26 जुलाई 1999 के दिन ही भारत भूमि को इन घुसपैठियों के चंगुल से मुक्त कराया था और तिरंगा फहराया था। इसीलिए प्रतिवर्ष 26 जुलाई को कारगिल विजय दिवस मनाया जाता है। आज का दिन मां भारती के वीर सपूतों को नमन करने का भी दिन है जिन्होंने देश की सुरक्षा की खातिर अपना जीवन अर्पित कर दिया।

           भारत और पाकिस्तान के बीच दुश्मनी के इतिहास पर गौर करें तो यह इतिहास काफी पुराना है। देश की आजादी के बाद वर्ष 1947 में भारत का बंटवारा हुआ और एक नया इस्लामिक देश पाकिस्तान अस्तित्व में आया। आजादी और बंटवारे के कई सालों के बाद भी भारत और पाकिस्तान के बीच बंटवारे की यह टीस आज भी जिंदा है। धर्म के आधार पर हुए बंटवारे के दौरान बड़े पैमाने पर लोगों को कत्ल किया गया और लाखों लोगों को अपना घर बार छोड़कर विस्थापित होना पड़ा। भारत और पाकिस्तान के बीच चिर-परिचित दुश्मनी का एक कारण “कश्मीर के विलय” का मसला भी रहा है। कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है, इस बात में कोई दो राय नहीं है लेकिन पाकिस्तान भी कश्मीर पर अपना हक जाताता रहा है। वर्ष 1971 में हुए युद्ध के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच दुश्मनी की यह खाई और भी चौड़ी हो गई और तब से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से पाकिस्तान अपने आतंकी भेज कर भारत को अस्थिर करने तथा यहां अशांति फैलाने की नाकाम कोशिश  करता रहा है।

      इतिहास के मुताबिक कारगिल युद्ध का बीज वर्ष 1998 के परमाणु परीक्षणों के साथ बोया गया जब भारत ने पोखरण में परमाणु परीक्षण किया। पाकिस्तान ने भी चगाई क्षेत्र में परमाणु परीक्षण के साथ भारत को इसका जबाब दिया। दोनों देशों द्वारा परमाणु परीक्षण से सैन्य संतुलन बिगड़ गया,जिससे तनाव और बढ़ गया था। इस तनाव को करने के लिए पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ और भारत के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने शिखर सम्मेलन के बाद 21 फरवरी, 1999 को लाहौर घोषणा पर हस्ताक्षर किए । इस घोषणा में दोनों देशों के बीच शांति और स्थिरता के किए यह समझौता किया गया। जिसमें कश्मीर मुद्दे को द्विपक्षीय वार्ता द्वारा शांतिपूर्ण ढंग से हल करने का वादा किया गया था। लेकिन पाकिस्तान ने शांति के इस समझौते के उलट भारत से दुश्मनी का अपना पुराना रवैया जारी रखा। इस समझौते के बाद भी पाकिस्तान ने अपने सैनिकों और अर्ध-सैनिक बलों को छिपाकर नियंत्रण रेखा के पार भेजने लगा और इस घुसपैठ का नाम “ऑपरेशन बद्र” रखा था।  

       इसका मुख्य उद्देश्य कश्मीर और लद्दाख के बीच की कड़ी को तोड़ना और भारतीय सेना को सियाचिन ग्लेशियर से हटाना था। पाकिस्तान यह भी मानता है कि इस क्षेत्र में किसी भी प्रकार के तनाव से “कश्मीर मुद्दे” को अंतरराष्ट्रीय मुद्दा बनाने में मदद मिलेगी। जम्मू कश्मीर के कारगिल क्षेत्र में पाकिस्तान सेना की घुसपैठ के बाद हुआ भीषण युद्ध में इसी नाकाम और नापाक कोशिश के रूप में सामने आया। कारगिल का युद्ध 3 मई 1999 को तब शुरू हुआ। जब भारत को पता चला कि पाकिस्तान समर्थित घुसपैठियों और सैनिकों ने कारगिल की ऊंचाइयों पर कब्जा कर लिया है। यह सभी स्थान भारतीय क्षेत्र में थे और सामरिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण थे। इन्ही महत्वपूर्ण सैनिक पोस्ट को पाक सेवा के चंगुल से मुक्त करने के लिए कारगिल युद्ध हुआ था।  प्रारम्भ में इसे घुसपैठ मान लिया था और दावा किया गया कि इन्हें कुछ ही दिनों में बाहर कर दिया जाएगा लेकिन नियंत्रण रेखा में खोज के बाद इन घुसपैठियों के नियोजित रणनीति के बारे मे पता चला   जिससे भारतीय सेना को एहसास हो गया कि हमले की योजना बहुत बड़े पैमाने पर की गयी है। इसके बाद भारत सरकार ने ऑपरेशन विजय नाम से करीब दो लाख सैनिकों को कारगिल क्षेत्र में भेजा।

 

यह युद्ध आधिकारिक रूप से 26 जुलाई 1999 को समाप्त हुआ। इस युद्ध के दौरान 527 सैनिकों ने अपने जीवन का बलिदान दिया और करीब डेढ़ हजार सैनिक घायल हुए थे।  “कारगिल विजय दिवस” के तौर पर हर साल 26 जुलाई को भारतीय सेवा के शौर्य और पराक्रम के रूप में मनाया जाता है। यह दिन उन वीर सैनिकों को श्रद्धांजलि देने का भी अवसर है जिन्होंने देश सेवा में अपनी जान की आहुति दे दी। जम्मू कश्मीर में देश के सबसे बड़े ऊंचे युद्ध क्षेत्र में हुए कारगिल युद्ध में अनेक सैनिकों ने अद्भुत साहस और वीरता का प्रदर्शन किया। इनमें से लेफ्टिनेंट मनोज कुमार पांडेय, कैप्टन विक्रम बत्रा तथा ग्रेनेडियर योगेंद्र सिंह यादव जैसे सेना के वीर जवान और अधिकारी हमेशा भारतीय इतिहास में अमर रहेंगे।

      कारगिल विजय की याद में भारतीय सेना द्वारा  द्रास में तोलोलिंग पहाड़ी की तलहटी में “कारगिल युद्ध स्मारक” बनाया गया है। टाइगर हिल के पार शहर के केंद्र से लगभग 5 किमी दूर स्थित  कारगिल युद्ध स्मारक से जुड़ा एक संग्रहालय भी है। संग्रहालय में भारतीय सैनिकों की तस्वीरें, महत्वपूर्ण युद्ध दस्तावेजों और रिकॉर्डिंग के अभिलेखागार, पाकिस्तानी युद्ध उपकरण और गियर, साथ ही कारगिल युद्ध से सेना के आधिकारिक प्रतीक रखे गए हैं। भारत और पाकिस्तान के बीच हुए कारगिल युद्ध करीब एक दर्जन फिल्म बन चुकी हैं। इसके साथी कारगिल युद्ध में गौरवशाली विजय को हर मौके पर याद भी किया जाता है । कुल मिलाकर कारगिल युद्ध की दास्तान यही है कि पाकिस्तान ने अपनी नापाक हरकत से भारत में घुसपैठ की तो भारतीय सेना ने भी जवाबी कार्रवाई में पाक सैनिकों को भारत की जमीन से खदेड़ दिया और कश्मीर की बर्फीली वादियों में विजयी तिरंगा लहरा दिया।