मनोविकारों से बाहर निकलो

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गुरु पूर्णिमा के दिन संत नगरी ऋषिकेश में पूज्य संतों की शरण में बैठे कर ध्यान लगाने का अवसर प्राप्त हुआ। संतों के प्रवचनों को सुनने का बहुत ही सुखद अनुभव मिला। विचारणीय है कि भारतीय ज्ञान परंपरा में साधुसंतोंमहात्माओं आदि की बड़ी भूमिका रही है और संत समाज के मार्गदर्शक हैं। संत समाज के मार्गदर्शक होने के साथसाथ मनुष्य के अंदर की बुराइयों को दूर करते हैं। व्यक्ति के अंदर बैठे अंधकार को मिटाकर उसे शुद्धस्वच्छ कर देते हैं। व्यक्ति के मानसिक विकारों को दूर कर पावन पवित्र कर देते हैं। मनुष्य में मनुष्यता का गुण भर देते हैं।

आज भारतीय जनमानस के एक बहुत बड़े वर्ग को मानसिक द्वंद से बाहर निकलना होगा। कितने ही लोग हर दृष्टि से समर्थ होने के बाद भी अपने को असमर्थ कह रहे हैं। विचार किया जाए तो मानव की क्या आवश्यकता हैइसका उत्तर है रोटीकपड़ा और मकान। जब व्यक्ति को खाने को दो जून रोटी मिल गई हैशरीर ढकने के लिए कपड़ा है और सिर पर छत भी आ गई है। व्यक्ति अपनी जिज्ञासों का फलक क्यों फैला रहा है। सरकार गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों को फ्री में राशन दे रही है। फिर भी व्यक्ति क्यों भीख मांग रहा हैवह बारबार भिक्षुक क्यों बन रहा हैजिसके चलते विश्व मानचित्र पर भारत की छवि खराब होती है। कितनी ही फिल्मों दिखाया गया है कि विदेशी लोग भारत में घूमने के लिए आते हैं और अपने कैमरे में दर्शनीय स्थलों के फोटो लेने के साथसाथ भीख मांगते लोगों के भी फोटो खींच लेते हैं। कई पुरानी फिल्मों में तो भीख मांगने को व्यापार के रूप में दिखाया है। किसी भी तीर्थ स्थल पर चले जाओभिक्षुक सामान्य जन को घेर लेते हैं। अमर्यादित यह जन समूह अव्यवस्था का बड़ा हिस्सा है। भीख मांगने वालो ने अपनेअपने क्षेत्र बांट रखे हैं। महानगरीय जीवन में लाल बत्ती पर कितने ही भीख मांगने वाले खड़े रहते हैं। कई बार तो यह लोग गाड़ियों से कीमती सामान भी निकाल लेते हैं। छोटेछोटे बच्चों को इस काम में लगाया जाता है जबकि भारत सरकार ने फ्री शिक्षा और मिड डे मील की व्यवस्था कर रखी है। प्रशासन भी मौन दिखाई देता है।

यह देश मांगने वालों का देश नहीं हैयह देश विश्व का भरण पोषण करने वालों का है। रामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदास लिखते हैं कि विश्व भरन पोषण पर जोई। ताकर नाम भारत अस होई।। श्रीभरत जी का चरित्र विश्व के भरण पोषण की बात करता है। भगवान श्रीराम तो स्वयं ही विश्व को चलाने वाले हैं। रामचरितमानस में लिखा है कि बिनु सत्संग विवेक न होई। राम कृपा बिनु सुलभ न सोई। हमारे संतों ने हमारे शास्त्रों के विषय में बड़ा ही सुंदर बतायासुनाया और लिखा है। लोगों की बुद्धि से अज्ञान का पर्दा हटाया हैफिर भी लोग अंधकार में क्यों भटक रहे हैं?

हमारे संतमहात्मायोगीविद्वाना आदि बतातेसमझाते हैं कि ऐसे व्यक्तियों का साथ करें जिससे कि आपका विवेक और ज्ञान क्षमता दोनों ही बढ़ जाएं। जब आपका विवेक और ज्ञान क्षमता बढ़ती है तो आपके अंदर के मनोविकार दूर होते हैं। भारतीय समाज में भी हमें इस दृष्टि और दृष्टिकोण को आगे बढ़ना होगासाथ ही समाज को नई दिशा देनी होगी। मानसिक मनोरोगों से घिरे लोगों को बाहर निकलना होगा। लोगों को राष्ट्र चिंतन करना होगा। जब हम शिक्षा की बात करते हैं तो उसमें बच्चे के बौद्धिकशारीरिकमानसिक आदि विकास की बात करते हैं। शारीरिक रूप से तो बच्चा मजबूत हो ही जाता हैउसके शरीर के अंगों में परिवर्तन प्राकृतिक रूप से होता ही है लेकिन क्या वह मानसिक रूप से भी मजबूत बन पाया या नहीं बन पाया हैयह बात सोचने की है। हमारे पुराणशास्त्रग्रंथ आदि हमें मानसिक द्वंद्व से बाहर निकाल कर मनुष्य के अंदर नव चेतना और नव ऊर्जा का संचार भर देते हैं।

हमें अपनी ज्ञान परंपरा को पढ़नासमझनाजानना होगा। आने वाली पीढियों को उसके बारे में सही से बताना होगा। ज्ञान परंपरा की धारा अविरल हैइसे बहते रहने की जरूरत हैइसे रोकने की जरूरत नहीं है।