
सपने वे नहीं होते, जो आपको रात में सोते समय नींद में आए बल्कि सपने वे होते हैं, जो रात में सोने ही न दें।’ यह कथन है महान वैज्ञानिक एवं देश के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम का। उन्हें मिसाइल मैन, भारतीय अंतरिक्ष प्रोग्राम का जनक तथा पीपुल्स प्रेसिडेंट भी कहा जाता है। यही नहीं विद्यार्थियों के प्रति विशेष प्रेम को देखते हुए देश और दुनिया में उनके जन्मदिन को ‘विद्यार्थी दिवस’ के रूप में भी मनाया जाता है। राष्ट्र की सेवा एवं ज्ञान विज्ञान के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए डॉ. अब्दुल कलाम को वर्ष 1981 में पद्म भूषण, वर्ष 1990 में पद्म विभूषण तथा वर्ष 1997 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया। डॉ. कलाम ने देश के अंतरिक्ष कार्यक्रम को गति दी। इसके साथ ही मिसाइल तकनीक में विकास के नए आयाम गढ़े जिससे देश सुरक्षा और अंतरिक्ष के मामले में आत्मनिर्भर होने की राह पर चल पड़ा। भारत के 11वें राष्ट्रपति और वैज्ञानिक रहे एपीजे अब्दुल कलाम का आज पुण्यतिथि है। डॉ. कलाम का 27 जुलाई 2015 को आईआईएम शिलांग में लेक्चर देते समय दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया था।
डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम का जन्म 15 अक्टूबर 1931 को तमिलनाडु के रामेश्वरम के धनुषकोटि में एक मध्यमवर्ग मुस्लिम अंसार परिवार
में हुआ था। उनके पिता का नाम जैनुलाब्दीन और मां का नाम आशियम्मा था। उनका बचपन काफी संघर्षों में बीता और उन्हें आर्थिक परेशानियों को दूर करने के लिए अखबार भी बांटना पड़ा। उनकी बचपन की पढ़ाई रामेश्वर में ही हुई। इसके बाद उन्होंने 1954 में त्रिची के सेंट जोसेफ कॉलेज से साइंस की डिग्री हासिल की। वर्ष 1957 में उन्होंने मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की। डॉ. कलाम ने भारतीय रक्षा अनुसंधान एवं विकास संस्थान और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन में भी काम किया। वह रक्षा मंत्री के वैज्ञानिक सलाहकार भी रहे। डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम के संबंध में प्रचलित मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक डॉ. कलाम बचपन में पायलट बनना चाहते थे लेकिन ऐसा नहीं हो सका लेकिन डॉ. कलाम ने शुद्ध राजनीति के जरिए राष्ट्रपति पद को शोभित किया और इसके बाद आमजन के लिए भी राष्ट्रपति भवन के दरवाजे खुल गए।
अपने जीवन काल में डॉ. कलाम एयरोस्पेस टेक्नोलॉजी में आए, तो इसके पीछे उनके 5वीं कक्षा के अध्यापक सुब्रह्मण्यम अय्यर की प्रेरणा थी। अपने अध्यापक की बातों ने उन्हें जीवन के लिए ना केवल एक मंजिल,बल्कि एक उद्देश्य भी प्रदान किया। अभियांत्रिकी की शिक्षा के लिए उन्होंने मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में दाखिला लिया। वहां इन्होंने एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग में अध्ययन किया। और इस प्रकार डॉ. कलाम वैज्ञानिक बने। वर्ष1958 में डॉ. कलाम ने रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) में एक वैज्ञानिक के रूप में अपना करियर शुरू किया। इसके बाद में डॉ.कलाम भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) में काम किया। जहां,उन्होंने भारत के पहले उपग्रह प्रक्षेपण यान (एसएलवी-III) के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। जिससे जुलाई 1982 में रोहिणी उपग्रह सफलतापूर्वक अंतरिक्ष में प्रक्षेपित किया गया था। कलाम ने स्वदेशी लक्ष्य भेदी नियंत्रित प्रक्षेपास्त्र (गाइडेड मिसाइल्स) को डिजाइन किया।
डॉ. कलाम ने अग्नि एवं पृथ्वी जैसे प्रक्षेपास्त्रों को स्वदेशी तकनीक से बनाया था। यही नहीं डॉ. कलाम जुलाई 1992 से दिसम्बर 1999 तक रक्षा मंत्री के विज्ञान सलाहकार तथा सुरक्षा शोध और विकास विभाग के सचिव थे। डॉ. कलाम को भारत के मिसाइल कार्यक्रम के विकास में उनके योगदान के लिए “मिसाइल मैन” के रूप में भी जाना जाता है। उन्होंने 1998 में पोखरण-द्वितीय परमाणु परीक्षणों में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई जिससे भारत एक परमाणु शक्ति संपन्न देश बना। देश को मिसाइल तकनीक देने तथा विज्ञान के क्षेत्र में भारत को प्रगति के रास्ते पर पहुंचने वाले डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम 18 जुलाई 2002 को कलाम भारत के 11वें राष्ट्रपति निर्वाचित हुए थे। इन्हें भारतीय जनता पार्टी समर्थित एनडीए घटक दलों ने अपना उम्मीदवार बनाया था जिसका वामदलों के अलावा समस्त दलों ने समर्थन किया था। इसी क्रम में 25 जुलाई 2002 को उन्होंने संसद भवन के अशोक कक्ष में राष्ट्रपति पद की शपथ ली थी। 5 साल तक देश के राष्ट्रपति के पद को सुशोभित करने वाले डॉकलाम का कार्यकाल 25 जुलाई 2007 को उनका कार्यकाल समाप्त हो गया था।
डॉ. कलाम ने वैज्ञानिक रहते हुए जितनी ख्याति हासिल की, उससे कहीं ज्यादा राष्ट्रपति रहते हुए मशहूर हुए। उन्होंने राष्ट्रपति भवन के दरवाजे आम लोगों के लिए खुलवाए। अपने 5 साल के कार्यकाल में डॉ. कलाम ने महज 2 बार ही छुट्टी ली थी। ज्ञान-विज्ञान और पठन- पाठन के प्रति उनका संपूर्ण जीवन समर्पित रहा। यह भी एक सुखद संयोग ही रहा कि अपने निधन के दिन भी वे देश की भावी पीढ़ी को ज्ञान-विज्ञान का संदेश देते हुए इस दुनिया से रुखसत हुए। पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम का आज ही के दिन 27 जुलाई 2015 को शिलांग के आईआईएम में एक व्याख्यान देने के दौरान गिरने के बाद निधन हो गया। उनकी पुस्तकें इंडिया 2020, विंग्स ऑफ फायर, इग्नाइटेड माइंड, माय जर्नी आदि काफी प्रेरक हैं।
जीवन भर सादगी के “प्रतीक” ही रहे डॉ. कलाम जब राष्ट्रपति भवन से विदा हुए तो उनके पास सिर्फ सूटकेस था, जिसमें उनके कुल जमा दो जोड़ी कपड़े और कुछ किताबें थी। इस दुनिया से जाने के बाद भी डॉ.कलाम वैज्ञानिकों और युवाओं के लिए प्रेरणा के स्रोत बने हुए हैं। इसके साथ ही उन्होंने राजनीतिक शुचिता की एक ऐसी लकीर खींच दी है जो अन्य राजनेताओं के लिए एक बेमिसाल “नजीर” है।
डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम का जन्म 15 अक्टूबर 1931 को तमिलनाडु के रामेश्वरम के धनुषकोटि में एक मध्यमवर्ग मुस्लिम अंसार परिवार
में हुआ था। उनके पिता का नाम जैनुलाब्दीन और मां का नाम आशियम्मा था। उनका बचपन काफी संघर्षों में बीता और उन्हें आर्थिक परेशानियों को दूर करने के लिए अखबार भी बांटना पड़ा। उनकी बचपन की पढ़ाई रामेश्वर में ही हुई। इसके बाद उन्होंने 1954 में त्रिची के सेंट जोसेफ कॉलेज से साइंस की डिग्री हासिल की। वर्ष 1957 में उन्होंने मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की। डॉ. कलाम ने भारतीय रक्षा अनुसंधान एवं विकास संस्थान और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन में भी काम किया। वह रक्षा मंत्री के वैज्ञानिक सलाहकार भी रहे। डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम के संबंध में प्रचलित मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक डॉ. कलाम बचपन में पायलट बनना चाहते थे लेकिन ऐसा नहीं हो सका लेकिन डॉ. कलाम ने शुद्ध राजनीति के जरिए राष्ट्रपति पद को शोभित किया और इसके बाद आमजन के लिए भी राष्ट्रपति भवन के दरवाजे खुल गए।
अपने जीवन काल में डॉ. कलाम एयरोस्पेस टेक्नोलॉजी में आए, तो इसके पीछे उनके 5वीं कक्षा के अध्यापक सुब्रह्मण्यम अय्यर की प्रेरणा थी। अपने अध्यापक की बातों ने उन्हें जीवन के लिए ना केवल एक मंजिल,बल्कि एक उद्देश्य भी प्रदान किया। अभियांत्रिकी की शिक्षा के लिए उन्होंने मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में दाखिला लिया। वहां इन्होंने एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग में अध्ययन किया। और इस प्रकार डॉ. कलाम वैज्ञानिक बने। वर्ष1958 में डॉ. कलाम ने रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) में एक वैज्ञानिक के रूप में अपना करियर शुरू किया। इसके बाद में डॉ.कलाम भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) में काम किया। जहां,उन्होंने भारत के पहले उपग्रह प्रक्षेपण यान (एसएलवी-III) के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। जिससे जुलाई 1982 में रोहिणी उपग्रह सफलतापूर्वक अंतरिक्ष में प्रक्षेपित किया गया था। कलाम ने स्वदेशी लक्ष्य भेदी नियंत्रित प्रक्षेपास्त्र (गाइडेड मिसाइल्स) को डिजाइन किया।
डॉ. कलाम ने अग्नि एवं पृथ्वी जैसे प्रक्षेपास्त्रों को स्वदेशी तकनीक से बनाया था। यही नहीं डॉ. कलाम जुलाई 1992 से दिसम्बर 1999 तक रक्षा मंत्री के विज्ञान सलाहकार तथा सुरक्षा शोध और विकास विभाग के सचिव थे। डॉ. कलाम को भारत के मिसाइल कार्यक्रम के विकास में उनके योगदान के लिए “मिसाइल मैन” के रूप में भी जाना जाता है। उन्होंने 1998 में पोखरण-द्वितीय परमाणु परीक्षणों में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई जिससे भारत एक परमाणु शक्ति संपन्न देश बना। देश को मिसाइल तकनीक देने तथा विज्ञान के क्षेत्र में भारत को प्रगति के रास्ते पर पहुंचने वाले डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम 18 जुलाई 2002 को कलाम भारत के 11वें राष्ट्रपति निर्वाचित हुए थे। इन्हें भारतीय जनता पार्टी समर्थित एनडीए घटक दलों ने अपना उम्मीदवार बनाया था जिसका वामदलों के अलावा समस्त दलों ने समर्थन किया था। इसी क्रम में 25 जुलाई 2002 को उन्होंने संसद भवन के अशोक कक्ष में राष्ट्रपति पद की शपथ ली थी। 5 साल तक देश के राष्ट्रपति के पद को सुशोभित करने वाले डॉकलाम का कार्यकाल 25 जुलाई 2007 को उनका कार्यकाल समाप्त हो गया था।
डॉ. कलाम ने वैज्ञानिक रहते हुए जितनी ख्याति हासिल की, उससे कहीं ज्यादा राष्ट्रपति रहते हुए मशहूर हुए। उन्होंने राष्ट्रपति भवन के दरवाजे आम लोगों के लिए खुलवाए। अपने 5 साल के कार्यकाल में डॉ. कलाम ने महज 2 बार ही छुट्टी ली थी। ज्ञान-विज्ञान और पठन- पाठन के प्रति उनका संपूर्ण जीवन समर्पित रहा। यह भी एक सुखद संयोग ही रहा कि अपने निधन के दिन भी वे देश की भावी पीढ़ी को ज्ञान-विज्ञान का संदेश देते हुए इस दुनिया से रुखसत हुए। पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम का आज ही के दिन 27 जुलाई 2015 को शिलांग के आईआईएम में एक व्याख्यान देने के दौरान गिरने के बाद निधन हो गया। उनकी पुस्तकें इंडिया 2020, विंग्स ऑफ फायर, इग्नाइटेड माइंड, माय जर्नी आदि काफी प्रेरक हैं।
जीवन भर सादगी के “प्रतीक” ही रहे डॉ. कलाम जब राष्ट्रपति भवन से विदा हुए तो उनके पास सिर्फ सूटकेस था, जिसमें उनके कुल जमा दो जोड़ी कपड़े और कुछ किताबें थी। इस दुनिया से जाने के बाद भी डॉ.कलाम वैज्ञानिकों और युवाओं के लिए प्रेरणा के स्रोत बने हुए हैं। इसके साथ ही उन्होंने राजनीतिक शुचिता की एक ऐसी लकीर खींच दी है जो अन्य राजनेताओं के लिए एक बेमिसाल “नजीर” है।