
प्राय: योग, धर्म और अध्यात्म को अलग-अलग माना जाता है। योग का संबंध भौतिक शरीर को पुष्ट करने अथवा शारीरिक व्याधियों के उपचार तक सीमित मान लिया जाता है। वहीं धर्म को किसी विशेष पद्धति से पूजा-पाठ अथवा कर्मकाण्ड मान लिया गया है तथा अध्यात्म को दूसरे लोक की रहस्यात्मक वस्तु लेकिन वास्तव में धर्म, अध्यात्म तथा योग अभिन्न रूप से जुड़े हुए हैं।
मोटे तौर पर शरीर को तीन भागों में बाँटा गया है : स्थूल शरीर अथवा भौतिक शरीर मानसिक शरीर अथवा मन या कारण शरीर तथा सूक्ष्म शरीर यानि चेतना अथवा आत्मा। इन तीनों शरीरों को जानना तथा मन के माध्यम से चेतना में स्थित होना आध्यात्मिकता है। इसके लिए चित्त की शुद्धता अनिवार्य है। चित्त की शुद्धता योग द्वारा ही संभव है अत: योग धर्म और आध्यात्मिकता से पृथक नहीं कहा जा सकता है ।
योग शरीर और मन के बीच सेतु है, श्वास तथा मन और चेतना के मध्य सेतु है ध्यान एवं एकाग्रता। श्वास का सही अभ्यास और ध्यान योग के ही अंग हैं। अत: योग ही आध्यात्मिकता है योग ही शुद्ध धर्म है।
योगसूत्र में योग की परिभाषा शुद्ध धर्म की परिभाषा से मिलती है। ”योग: चित्तवृत्ति निरोध:” चित्तवृत्तियों का निरोध अर्थात् मन को स्थिर करना ही योग है।
गीता में कहा गया है, ”समत्वं योग उच्यते” अर्थात् मन का समता में स्थित होना ही योग है। कुछ व्यक्ति मात्र योगासन तथा प्राणायाम को ही योग समझ लेते हैं। वास्तव में अष्टांग योग के आठों अंगों तथा सभी उपांगों का अभ्यास ही सम्पूर्ण योग है। यम-नियम से लेकर ध्यान और समाधि तक की यात्रा ही पूर्ण योग है।
धर्म के सभी लक्षण यम और नियम में आ जाते हैं। इनको धारण करने के लिए ध्यान की आवश्यकता पड़ती है। ध्यानावस्था में पहुँचने के लिए आसन और प्राणायाम सहायक होते हैं। इस प्रकार अष्टांग योग का अभ्यास धर्म की ओर ले जाता है, यही मानव धर्म है। इसके उपरांत किसी धर्म की आवश्यकता नहीं रह जाती।
योग का इतिहास
आदिदेव शिव और गुरु दत्तात्रेय को योग का जनक माना गया है। पर, अधिकतर विद्वान मानते हैं कि योग के जनक महर्षि पतंजलि पहले ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने योग को सुव्यवस्थित रूप दिया । गीता में श्रीकृष्ण ने कहा है ‘योगक्षेमवहाम्यहं’ ।
200 ई.पू. पातंजलि ने वेदों में बिखरी योग विद्या का वर्गीकरण किया। पातंजलि के बाद योग का प्रचलन बढ़ा और यौगिक संस्थानों, पीठों तथा आश्रमों का निर्माण होने लगा, जिसमें केवल राजयोग की शिक्षा-दीक्षा दी जाती थी।
योग और आध्यात्म
भारत में योग एक आध्यात्मिक प्रक्रिया है, जिसमें शरीर, मन और आत्मा को एक साथ लाने का काम किया जाता है । ईश्वर की आराधना से लेकर गीता के उपदेश तक, शरीर को स्वस्थ और स्फूर्तिवान रखने से लेकर तमाम बीमारियों के समाधान तक, आत्मा से लेकर शरीर और मस्तिष्क की शुद्धि तक हर जगह योग है। ।
योग के लाभ
योग क्रियाओं का मूल उद्देश्य है लोगों को प्रकृति से जोड़ना, ध्यान की आदत बनाना ,स्वास्थ्य के लिए चुनौती बन रही बीमारियों को घटाना। लोगों को शारीरिक और मानसिक बीमारियों से बचाना और स्वस्थ जीवन-शैली के द्वारा लोगों के बेहतर मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य प्रदान करना ।
विविध योग
गीता में कृष्ण ने योग के तीन प्रकार बताए हैं- ज्ञान योग, कर्म योग और भक्ति योग जबकि योग प्रदीप में इसके दस प्रकार बताए गए हैं राज योग, अष्टांग योग, हठ योग, लय योग, ध्यान योग, भक्ति योग, क्रिया योग, मंत्र योग, कर्म योग और ज्ञान योग। इसके अलावा धर्म योग, तंत्र योग, नाद योग का भी जिक्र कई ग्रन्थों में आता है। अब आज के संदर्भ में हम जिस योग की बात करते हैं उसे अष्टांग योग कहा जाता है। अष्टांग योग अर्थात योग के आठ अंग सभी धर्मों का सार माने जाते हैं। ये आठ अंग हैं यम , नियम , आसन , प्राणायम , प्रत्याहार, धारणा ,ध्यान और समाधि।
योग किसके लिए
योगाभ्यास केवल वयस्कों के लिए ही नही बल्कि युवा वृद्ध , किशोर और बच्चों सबके के लिए है। विद्यार्थियों के लिए योग सर्वाधिक लाभदायक है इससे बच्चों के मन-मस्तिष्क में स्थिरता आती है और ध्यान केंद्रित करने में भी सहायता मिलती है। इसी वजह से दुनिया के अधिकांश देशों में योग शिक्षा को अनिवार्य किया जा रहा है। योग शिक्षा जितनी कम उम्र से ली जाये, उतना ही शरीर को ज्यादा लाभ मिलता है। बच्चों का शरीर बड़ों की तुलना में ज्यादा लचकदार होता है इसलिए बच्चे चीजों को जल्दी और आसानी से सीख जाते हैं। योग से शरीर को रोगों से मुक्ति मिलती है और मन को शक्ति देता है।
विद्यार्थी और योग
जिन विद्यार्थियों में पढ़ाई के प्रति अरुचि जैसी समस्या होती है उनके लिए योगक्रिया चमत्कार जैसा काम करती है। सुबह के वक्त योग करने से विद्यार्थियों में एकाग्रता और दृढ़ता बेहतर होती है। इससे तन-मन स्वस्थ और निरोग रहता है और बच्चे सभी क्षेत्र में अव्वल रहते हैं। योग के निरंतर अभ्यास से विद्यार्थियों में अध्ययन की इच्छा प्रबल होती है । जिन विद्यार्थियों को ड्रग्स आदि की लत लग जाती है, योग का नियमित अभ्यास से इन व्यसनों से छुटकारा दिलाने में सक्षम है ।
अंतर्शक्ति जागरण
योग का अभ्यास व्यक्तियों में छुपी हुई शक्तियों को जागृत करता है इसलिए वर्तमान परिवेश में शिक्षा जगत में योग की शिक्षा आवश्यक है। छात्र योग के बल पर अपने मस्तिष्क को शुद्ध करके विचार शक्ति को बढ़ा सकते है जिससे छात्रों को लक्ष्य प्राप्ति में सहायता मिलती है। जो बच्चे शुरू से ही योग करते है वे अपने लक्ष्य को जल्दी भेद पाते हैं ।