क्यूं होते हैं आप तनावग्रस्त?

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कई बार इंसान की जि़ंदगी में ऐसे क्षण आ जाते हैं जिनका वह सामना नहीं कर पाता। वह टूट जाता है और परिस्थितियों से हार मान लेता है। उसे ऐसा लगने लगता है जैसे उसकी दुनियां बिखर गई है, सपने टूट गये हैं और यह संसार उसके लिये अंधकारमय है। ऐसी स्थिति में व्यक्ति तनावग्रस्त हो जाता है। वह चुप्पी की चादर ओढ़ लेता है अथवा डिप्रेशन की कगार तक पहुंच जाता है।
जिस शरीर में जरा सी चोट लगते ही वह कराह उठता था, उसी तन की वह सुध-बुध भूले रहता है और कई बार उसे खत्म करने पर भी आमादा हो जाता है।
तनावग्रस्त होने पर व्यक्ति कई प्रकार की मानसिक बीमारियों का शिकार हो जाता है जो उसका तनाव बढ़ाने में और भी सहायक होती है।  कई बार देखा गया है कि लोगों में तनाव इस हद तक बढ़ जाता है कि वे पागल हो जाते हैं।
मुख्यतः तनाव के कारण-अनुकूल वातावरण न मिलना, हमारी इच्छाएं पूरी न होना अथवा हमसे लोगों की इतनी अपेक्षाएं रखना है कि हम उन्हें पूरा करने में स्वयं को सक्षम महसूस न कर सकें। पैसे की कमी, लड़ाई-झगड़ा इत्यादि न जाने कितनी बातें हैं जो व्यक्ति में टेंशन पैदा करती हैं।
आमतौर पर यही माना जाता है कि दुःख और परेशानियां ही व्यक्ति में तनाव उत्पन्न करती हैं परंतु कई बार अत्यधिक खुशी भी इंसान में तनाव पैदा कर देती है जैसे शादी, ब्याह, बच्चे पैदा होना या अन्य कोई भी बेहद खुशनुमा बात। ऐसे में व्यक्ति की दिमागी नसें उस खुशी को इतनी तीव्रता से महसूस करती हैं कि वे तनावग्रस्त हो जाती हैं और व्यक्ति डिप्रेशन में पहुंच जाता है।
किसी भी इंसान के तनावग्रस्त होने का असर उसके सारे परिवार पर पड़ता है। उसकी गतिविधियां, क्रियाकलाप आदि को सम्पूर्ण परिवार को भुगतना पड़ता है।
व्यक्ति सदैव खुशगवार बना रहे, उसकी दुनियां रंगीन बनी रहे और वह जीवन को भरपूर आनंद व मस्ती के साथ जी सके, इसके लिये आवश्यक है कि वह परिस्थितियों को अपने अनुरूप ढालने की कोशिश करें। यदि वह वातावरण बदलने में असमर्थ है तो खुद को ही उस माहौल में ढालने का प्रयास करे। यह मानकर चलें कि तकलीफें,दुःख, आहें, परेशानियां न सिर्फ उसकी बल्कि हर इंसान की जि़ंदगी का एक हिस्सा हैं। अपने मन को इतना मजबूत बना लें कि उस पर किसी भी प्रतिकूल बात का असर न हो।
हर बात को हल्केपन से लें। अधिक भावनात्मक रूप से ग्रहण की गई बात आपको तनावग्रस्त बना देगी। जीवन की छोटी-छोटी बातों को सहजता से लेना सीखें। आपके दिमाग में इतनी ही क्षमता होती है कि वह किसी भी टेंशन को एक सीमा तक ही सहन कर सकता है। अधिक सोचने विचारने से उसकी सहनशक्ति चुक जाती है और वह डिप्रेशन तक पहुंच जाता है।
जि़ंदगी के सफर में हर इंसान को चाहे-अनचाहे लड़ना ही पड़ता है। भले ही वह परिस्थितियों से कितना भी दूर भागे परंतु वक्त उसका पीछा नहीं छोड़ता, इसलिये कायरों की तरह हताश हो जाने से बेहतर है कि हर स्थिति का डटकर मुकाबला करें और खुद को तनावग्रस्त होने से बचायें।
खुशी के क्षणों में भी अधिक उत्तेजित होने से बचना चाहिये। कहीं आपकी अत्यधिक प्रसन्नता आपको तनावग्रस्त न कर दे।
यदि इन बातों को ध्यान में रखकर स्वयं को ढाला जाये तो निश्चित ही आप एक स्वस्थ, सुंदर, आत्मविश्वास से परिपूर्ण, खुशनुमा और मस्त-मस्त जीवन बिताने में कामयाब हो सकेंगे व अपनी जि़ंदगी प्रफुल्लित, सुगंधित एवं पल्लवित महसूस कर सकेंगे। 
 

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