जब सब कुछ यहीं रह जाना है, तो इतनी आपा धापी क्यों?

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रामस्वरूप रावतसरे

   हमारा शरीर पंचतत्व यानी पृथ्वी, आकाश, जल, अग्नि, वायु से बना है। इन सब से बना यह शरीर इनका ही सेवन करता है और अंत में इन्ही में समा जाता हैं। मृत्यु को प्राप्त होने तक हम जो भी करते है, वह कर्म कहलाता हैं। कर्म ही हमारे आगामी जीवन का आधार बनता है, ऐसा शास्त्र कहते है। हमारा यह जीवन भी प्रारब्ध के कर्मों के अनुसार ही है। पूर्व जन्म में हमारे किस प्रकार के कर्म थे किसे हमने दिया था और किससे लिया था। उसका ही यह जीवन लेखा जोखा बताया जाता है।

    प्रायः देखा गया है कि समृद्ध एवं धर्मपरायण घरों में ऐसे जीव जन्म लेते है कि उनके कारण परिवार दुखी ही रहता है, सब कुछ होकर भी सुख शान्ति नहीं होती। वे आने वाले जीव का ही चुकारा करते देखे जा सकते है। बताया जाता है ऐसे जीव प्रारब्ध का हिसाब करने ही आये होते हैं। एक ऐसा भी परिवार होता है जो कि बहुत ही गरीब, फटेहाल बडी मुश्किल से अपने बच्चों का पालन पोषण करते है लेकिन समय पाकर बच्चे सब कुछ बदल देते है। सब तरफ सुख ही सुख दिखाई देता है, यानी वे बच्चे प्रारब्ध का चुकाने आये होते है।

      खैर इसकी बात नहीं करें तो भी मनुष्य का जीवन क्या है? कितना है? वह जो कुछ भी प्रारब्ध के कर्मो से या इस जन्म के सतकर्मो से करता है। वह उसके साथ कितना व किस रूप में जाता है। आदमी जब तक है उसकी आभा या कर्मो का प्रकाश उसके चारों ओर है। जिस दिन ये खत्म होगा, उस दिन सबसे पहले भूमि उसे खड़ा नही रहने देगी। स्वांश यानि वायु का प्रवेश शरीर में कम होने लगेगा। अग्नि मंद पड़ने लगेगी। शरीर पर आकाश का आवरण क्षीण होने लगेगा। जल शरीर में अपनी उपस्थिति को इस रूप में ले आयेगा कि खून ही पानी बन जायेगा। कुल मिलाकर इसका निचोड़ यही है कि पंचतत्व से बना यह शरीर पंचतत्वों में ही समा जाता है।

    अपने जीवन काल में मनुष्य अपने खाते के अनुसार ही खाता है। उससे अधिक नहीं, यदि वह ऐसा करता है तो उसे उसका हिसाब भी इसी जन्म में देना होता है। पशु, पक्षी प्रकृति से उतना ही लेते है, जितना उन्हें शरीर को चलाये रखने के लिए आवश्यक होता है। मनुष्य की प्रवृति इससे उलट है लेकिन यह भी सत्य है कि मनुष्य कितना भी संग्रह कर ले, उसे उतना ही मिलेगा जो कि उसके खाते में है। मनुष्य आज को दाव पर लगाकर कल सुरक्षित रखने के लिए धन संग्रह करता है लेकिन कल तभी सुरक्षित है, जब आज का किया गया कर्म सही एवं श्रेष्ठ है। श्रेष्ठजन भी यही कहते है कि कल सुरक्षित तभी होगा जब आज श्रेष्ठ होगा। आज का दान, आज की भगवत आराधना, आज का सत्स्वाध्याय, आज की निस्वार्थ सेवा, आज का चिंतन ही कल के फल को निर्धारित करता है।

    लता मंगेशकर के अंतिम शब्द कि ’’इस दुनिया में मौत से ज्यादा वास्तविक कुछ भी नहीं है। दुनिया की सबसे महंगी ब्रांडेड कार मेरे गैरेज में खड़ी है लेकिन मुझे व्हीलचेयर पर ले जाया जाता है! इस दुनिया में हर तरह के डिजाइन और रंग के महंगे कपड़े, महंगे जूते, महंगे साजो सामान सब मेरे घर में हैं। लेकिन मैं अस्पताल द्वारा उपलब्ध कराए गए छोटे से गाउन में हूं! मेरे बैंक खाते में बहुत पैसा है लेकिन मेरे किसी काम का नहीं है। मेरा घर मेरे लिए महल जैसा है लेकिन मैं अस्पताल में एक छोटे से बिस्तर पर लेटी हूं। मैं इस दुनिया के फाइव स्टार होटलों में घूमती रही  लेकिन अब मुझे अस्पताल में एक लैब से दूसरी लैब में ट्रांसफर किया जा रहा है! एक समय था जब 7 हेयर स्टाइलिस्ट रोजाना मेरे बाल बनाते थे  लेकिन आज मेरे सिर पर बाल नहीं हैं। मैं दुनिया भर में कई तरह के मंहगें से मंहगें होटलों में भोजन करती रही हूं लेकिन आज दिन में दो गोलियां और रात में नमक की एक बूंद मेरी डाइट है। मैं दुनिया भर में अलग-अलग विमानों में उड़ रही थी।  लेकिन आज दो लोग अस्पताल के बरामदे में जाने में मेरी मदद करते हैं। किसी भी सुविधा ने मेरी मदद नहीं की। किसी भी तरह से सुकून नहीं लेकिन कुछ अपनों के चेहरे, उनकी दुआएं और इबादत मुझे जिंदा रखते हैं। यह जीवन है, कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप कितनी दौलत के मालिक है। अंत में आप खाली हाथ जाते हैं, दयालु बनें. किसी की भी मदद करें जो आप कर सकते हैं। धन और शक्ति के लिए लोगों को महत्व देने से बचें। अच्छे इंसानों से प्यार करें, जो तुम्हारे लिए हैं उन्हें संजोए रखें, किसी को दुख मत दें, अच्छे बनें, अच्छा करें क्योंकि वही तुम्हारे साथ जाएगा।’’

   हमें भी लता मंगेशकर के उपरोक्त शब्दों पर गौर करना चाहिए। यही इस जीवन की वास्तविकता है, सच्चाई है। हमें लेने के भाव के स्थान पर देने का भाव अधिक प्रभावी रखना चाहिए। इसलिए कि जो हम कल को ध्यान में रखकर इकट्ठा कर रहे है, वह इस शरीर की तरह यहीं रहेगा। हमारे साथ सिर्फ और सिर्फ देने के भाव से किए गये कर्म से मिली दुआ ही जायेगी। इस संसार में आने वाला जीव अपना भाग्य साथ लेकर आता है। इसलिए किसी के लिए भी अधिक चिंतित नहीं रहें। आज का हमारा कर्म सही और ईमानदारी से पूरा हो, इसका पूरा ध्यान रखें। हम यात्री हैं, संसार एक सराय है और कुछ नहीं। जब तक सामने है सब अपने है। उसके बाद जो सामने होंगे वे अपने होगे। ऐसे में किसी से अधिक लगाव रखना या अधिक उम्मीद रखना ही दुख का कारण बनता है।

    अंत समय में लता मंगेशकर के ना तो पैसा काम आया और ना ही प्रतिष्ठा क्योंकि हम जो कुछ भी इस संसार से लेते है या कल को ध्यान में रखकर इक्टठा करते है, उसे यहीं छोड़ कर जाना होता है। हमसे पहले भी बहुत बड़े बड़े महाबली हुए है, ज्ञानी ध्यानी हुए है लेकिन समय आने पर ना तो उनका महाबल चला और ना ही ज्ञान की तलवार। जब पंचतत्व इस शरीर से अपने को अलग कर लेते है, तब किसी भी प्रकार का बल काम नहीं करता है। जीव को सब कुछ छोड़ कर जाना पड़ा। इस संसार में स्थाई कुछ भी नहीं है। इसलिए ऐसा कुछ करें कि दूसरों को किसी प्रकार की तकलीफ ना हो और हमें आत्म संतुष्टि बनी रहे। अधिक सामान नहीं अधिक साधना की ओर ही हमारा मन चले बस.

 

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