
जीवन की अनिवार्य आवश्यकताओं को देखते हुए जल को “जीवन” माना गया है। सदियों से जल की उपलब्धता और उपयोग मानव सभ्यता के अस्तित्व और विकास के क्रम से जुड़ा हुआ है। ‘जल है तो कल है’- इस कथन का महत्व सबसे अधिक राजस्थानवासी समझते हैं। क्योंकि बूंद-बूंद का संचय और संरक्षण यहां की धरोहर भी है, और जरूरत भी। मरुधरा कहे जाने वाले राजस्थान में रेगिस्तान सहित अन्य भौगोलिक परिस्थितियों के कारणवश प्रदेश के कई क्षेत्रों में जल की कमी की समस्या बनी रहती है। भू-जल स्तर के तेजी से घटने के साथ ही जलवायु परिवर्तन ने इस समस्या को और जटिल बना दिया है। इस पानी की कमी को दूर करने के लिए राजस्थान में जल संरक्षण की प्राचीन संस्कृति रही है।
राजस्थान की ऐतिहासिक जल संस्कृति की इस विरासत को आगे बढ़ाने का जिम्मा लेकर आधुनिक भगीरथ बने मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने प्रदेशभर में “वंदे गंगा जल संरक्षण-जन अभियान” की महत्वपूर्ण पहल की है। देश और दुनिया में जल की आवश्यकता पर गौर करें तो मानव ही नहीं अपितु समस्तजीव-जगत का अस्तित्व जल पर ही निर्भर है। राजस्थान के लिए जल का महत्व और भी बढ़ जाता है क्योंकि इसका आधे से अधिक भू-भाग शुष्क एवं अर्द्धशुष्क है। राजस्थान देश में जल संसाधनों की सबसे बड़ी कमी का सामना करता है। यहाँ भारत का 13.88 प्रतिशत कृषि योग्य क्षेत्र, 5.67 प्रतिशत जनसंख्या और देश के लगभग 11 प्रतिशत पशुधन है, लेकिन यहाँ सतही जल का केवल 1.16 प्रतिशत और भूजल का 1.70 प्रतिशत ही उपलब्ध है।
इस प्रकार लगभग 10 प्रतिशत भूमि क्षेत्र वाले राज्य राजस्थान के पास देश के जल संसाधनों का केवल लगभग 1प्रतिशत ही उपलब्ध है। राज्य में वर्षा की नियमितता, असमान वितरण एवं जनसंख्या के बढ़ते दबाव के साथ ही नगरीकरण, औद्योगीकरण की बढ़ती प्रवृत्ति से जल संकट की समस्या गंभीर हो गई है। राजस्थान में जल संचय की परम्परा सामाजिक ढाँचे से जुड़ी हुई हैं तथा जल स्रोतों को पूजा जाता है। कुँओं, बावड़ियों, तालाबों, झीलों के पुनरूद्धार के साथ-साथ पश्चिमी राजस्थान में प्रचलित जल संरक्षण की विधियों जैसे नाड़ी, टाबा, खड़ीन, टांका या कुण्डी, कुँई आदि को पुनर्जीवित एवं सुरक्षित करना आवश्यक है। राजस्थान सरकार ने पुराने जल स्रोतों को फिर से जीवंत करने के लिए वंदे गंगा जल संरक्षण जन अभियान शुरू किया है।
इसकी शुरुआत जयपुर के ऐतिहासिक रामगढ़ बांध से हुई। सूबे के मुखिया मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने खुद श्रमदान कर इस अभियान को गति दी। उनका लक्ष्य है कि सूख चुके जल स्रोतों को पुनर्जनन कर भूजल स्तर को बढ़ाया जाए और स्थानीय लोगों को लाभ पहुंचाया जाए। इस अभियान का उद्देश्य पारंपरिक जल स्रोतों को उनके मूल रूप में लाना है। इससे भूजल स्तर बढ़ेगा और पर्यावरण को भी लाभ होगा। रामगढ़ बांध से शुरू हुआ यह अभियान राजस्थान के अन्य सूखे बांधों के लिए भी प्रेरणा बनेगा। यह पहल न केवल जल संरक्षण को बढ़ावा देगी, बल्कि स्थानीय समुदायों के लिए आर्थिक और सामाजिक विकास का मार्ग भी प्रशस्त करेगी। विश्व पर्यावरण दिवस एवं गंगा दशहरा के पावन पर्व तथा शुभ संयोग पर 5 जून से यह अभियान शुरू हुआ।
इस अभियान के अंतर्गत 20 जून तक विभिन्न विभागों द्वारा प्रदेश भर में जल संरक्षण के व्यापक कार्य किए जा रहे हैं। इन कार्यों के माध्यम से आमजन को जल संरक्षण की महत्ता के प्रति जागरूक किया जा रहा है,जिससे यह अभियान जन आंदोलन बन रहा है। अभियान के पहले दिन प्रदेशभर में विभिन्न विभागों द्वारा नर्सरियों में विशेष स्वच्छता कार्यक्रम, तुलसी पौध वितरण, प्लास्टिक का उपयोग कम करने की शपथ, श्रमदान, जल स्रोतों की साफ-सफाई व मरम्मत, वंदे गंगा कलश यात्रा, नदी-बांध-सरोवर का पूजन एवं हरियालो राजस्थान के अंतर्गत पौधरोपण की तैयारी के साथ-साथ कर्मभूमि से मातृभूमि अभियान के तहत कार्यों का अवलोकन एवं स्वीकृति जैसे प्रमुख कार्य किए जा रहे हैं।
मुख्यमंत्री के विजन से ‘वंदे गंगा’ जल संरक्षण-जन अभियान के जरिये सभी प्रदेश के सभी 41 जिलों में 5 जून से 20 जून तक जल संचय संरचनाओं का निर्माणजल स्रोतों की सफाईपरंपरागत जलाशयों के पुनरूद्धार के कार्यों की शुरूआत हुई है। वहीं, इसे जन-अभियान बनाने के लिए वंदे गंगा कलश यात्रा तथा जलाशय पूजन कार्यक्रम का आयोजन हो रहा है। इसमें आमजन को जल संरक्षण का महत्व बताकर जागरूक किया जा रहा है। यह अभियान प्रदेश के भूजल स्तर को बढ़ाने में और बारिश में व्यर्थ बहकर जाने वाले पानी के संचय में मददगार साबित होगा। राजस्थान में औसत वार्षिक वर्षा में बहुत अधिक भिन्नता है क्योंकि जैसलमेर जिले के सुदूर पश्चिमी भागों में 100 मिमी से भी कम वर्षा होती है जबकि झालावाड़ और बांसवाड़ा के पूर्वी भागों में 900 मिमी से भी अधिक वर्षा होती है। पूर्वी और पश्चिमी राजस्थान में औसत वार्षिक वर्षा क्रमशः लगभग 64.9 सेमी और 32.7 सेमी है। बताते चलें कि प्रदेश में जल संरक्षण की दिशा में पहले भी महत्वपूर्ण निर्णय लिए गये हैं। कर्मभूमि से मातृभूमि अभियान के माध्यम से चार साल में लगभग 45 हजार जल संरक्षण संरचनाओं का निर्माण करवाने का लक्ष्य रखा गया है। जानकारों का मानना है कि वंदे गंगा जल संरक्षण अभियान के माध्यम से मरुधरा के परंपरागत जल स्रोतों की सार-संभाल होगी जिसके बाद आने वाले मानसून में जल स्रोत पूरी तरह से लबालब होकर वर्ष पर्यंत लोगों को जल उपलब्ध कराएंगे। इस अभियान से मरुधरा को जल संसाधनों में “जलराशि” की बढ़ोतरी के बाद संजीवनी मिलेगी।