
अस्पतालों में दाखिल कुछ मरीज ऐसे होते हैं जो अच्छी चिकित्सा के बावजूद भी रोगमुक्त नहीं हो पाते। ऐसे रोगियों की संख्या विश्व भर में करीब 5 प्रतिशत है। अस्पतालों में इलाज के लिए दाखिल मरीज संक्रमण का शिकार हो जाते हैं।
सेप्सिस संक्रमण के कारण होने वाली एक बीमारी है जिसके कारण शरीर में अनेकों जटिलताएं पैदा होने लगती हैं। रोगी का रक्तचाप तेजी से घटने-बढ़ने लगता है, हृदय की गति बढ़ जाती है, रक्तस्राव होने लगता है या रोगी के अन्य कई महत्त्वपूर्ण अंग अपना काम करना बंद कर देते हैं।
कई बार रोग का पता नहीं लग पाता और रोगी मौत का शिकार हो जाता है। बहुत ही कम चिकित्सकों को इसके इलाज में प्रयुक्त होने वाली दवाइयों की जानकारी होती है। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, नई दिल्ली में इस बीमारी से ग्रसित 5 रोगियों में से चार को बचा लिया गया तथा एक की मृत्यु हो गई। इस बीमारी से आपरेशन के बाद आई सी यू में भर्ती मरीज, कैंसर, जले तथा अन्य गंभीर लम्बी चलने वाली बीमारियों के रोगी ग्रसित होते हैं। आई सी यू में दाखिल वेंटिलेटर पर लम्बे समय तक रहने वाले रोगी इसका शिकार हो जाते हैं। आई.सी.यू. में हृदय रोगियों, घुटनों का प्रत्यारोपण करवा चुके रोगियों में यह बीमारी कम फैलती है लेकिन बड़ा आपरेशन करवाने के बाद सर्जिकल आई सी यू में भर्ती मरीज, कैंसर के मरीजों के इस रोग से ग्रसित होने की पूरी संभावना होती है। सर्जिकल आई सी यू में भर्ती रोगियों के प्रथम दो सप्ताह में इस बीमारी से ग्रसित होने की भी 50 प्रतिशत आशंका रहती है। कभी-कभी छोटी सी सर्जरी करवा चुका मरीज भी इस रोग का शिकार हो जाता है। मूत्रा संक्रमण के रोगी भी इससे ग्रसित हो जाते हैं।
इस बीमारी का इलाज कठिन होता है क्योंकि रोग से ग्रसित होने का पता देर से लगता है तथा इस रोग के उपचार में प्रयुक्त होने वाली अधिकांश दवाइयों का शरीर पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है क्योंकि शरीर इन दवाइयों का अभ्यस्त हो चुका होता है। इसी के कारण शरीर में कई तरह की जटिलताएं पैदा हो जाती हैं।
इस बीमारी से ग्रसित रोगियों में अधिकांश रोगियों के विभिन्न अंग एक-एक करके काम करना बंद कर देते हैं। रोगी के एक अंग के काम करना बंद कर देने से रोगी के मरने की संभावना 25 प्रतिशत, दो अंगों के काम करना बंद कर देने पर 50 प्रतिशत तथा 3 अंगों के काम करना बन्द कर देने पर 90 प्रतिशत रहती है। आंकड़े बतलाते हैं कि विश्व भर में 1400 लोग रोज इस बीमारी के कारण मरते हैं।
पहले ऐसे रोगियों को संक्रमण से बचाने के लिए एंटीबायोटिक दवाइयों का सेवन कराया जाता था। गुर्दों के काम करना बंद कर देने पर डायलिसिस पर रखा जाता था। रक्तचाप को सामान्य रखने के लिए दवाइयां खिलाई जाती थीं। इसके बावजूद भी रोगी मर जाते थे।
इस रोग की नवीन दवाइयां विकसित हो जाने पर अब सेप्सिस को पैदा करने वाले कारणों पर रोक लग गई है। आम डाॅक्टरों द्वारा इस बीमारी को एक प्रकार का संक्रमण माना जाता है जबकि ऐसा नहीं है बल्कि शरीर में होने वाले संक्रमण के परिणाम के कारण यह रोग उत्पन्न होता है।