रामायण कथा- रानी सुमित्रा का त्याग

0
5pm-thumbnail-10

अयोध्या नरेश दशरथ की तीन रानियां थीं पर संतान एक भी न हुई। एक दिन दशरथ श्रृंगी ऋषि के आश्रम में उनसे संतान की याचना करने गये। ऋषि श्रृंगी दशरथ और उनके पुरखों के त्याग, बलिदान, संघर्ष और समर्पण से प्रभावित थे। उन्होंने प्रसन्नता से कहा, ’राजन, आप चिंतित न हों। आप संतान का सुख अवश्य पाएंगे। बस, एक यज्ञ करना होगा।‘
ऋषि ने उन्हें दिन-तिथि बताकर यज्ञ की तैयारियां करने का निर्देश देकर आश्रम से विदा किया। निर्धारित तिथि को ऋषि अयोध्या गये और विधि विधान से यज्ञ किया। यज्ञ के बाद श्रृंगी ऋषि ने दो खीर के पात्रा अयोध्या नरेश को दिए और कहा, ‘एक-एक रानी को एक-एक पात्रा दे दें।
उनसे आपको एक-एक पुत्रा रत्न प्राप्त होगा।’
उस समय तीनों रानियां, दरबारी और अन्य विशिष्टजन उपस्थित थे। राजा के समक्ष कठिन समस्या उत्पन्न हो गई बोले, ’एक समस्या पैदा हो गई ऋषिवर। रानियां हैं तीन और प्रसाद के पात्रा दो। अब किस एक रानी को न दूं, यह मैं तय नहीं कर पा रहा हूं। मेरे लिए तो तीनों ही रानियां बराबर हैं। हम चारों को एक दूसरे से असीम लगाव है।‘
सचमुच यह कठिन परीक्षा की घड़ी थी। लोग कभी ऋषि को देखते तो कभी दशरथ को। कुछ क्षण सन्नाटे की सी स्थिति रही। सन्नाटे को तोड़ा वरिष्ठता क्रम में सबसे छोटी रानी सुमित्रा ने। उन्होंने कहा, ’राजन, यह तो कोई समस्या नहीं है। रानी कौशल्या सबसे बड़ी हैं। एक पात्रा उनका और दूसरा मंझली रानी कैकेई का होता है। आप एक-एक प्रसाद पात्रा दोनों को दे दें।
सुमित्रा के इस कथन पर सभी चौंके। दशरथ बोले-पर सुमित्रा तुम्हारा क्या होगा? तुम्हारा भी तो बराबर का हक है। मैं तुम्हें भी तो इन्हीं के समान चाहता हूं।
सुमित्रा ने कहा, ‘जानती हूं महाराज, लेकिन मुझे इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि संतान को जन्म मैं देती हूं या मुझसे बड़ी रानियां। मेरा उन संतानों से उतना ही स्नेह होगा जितना मुझे अपनी से होता। मुझे कभी इस बात का दुख न होगा कि संतान को जन्म मैंने न दिया।‘
सुमित्रा की बात पर सभी वाह-वाह कर उठे। श्रृंगी ऋषि इतने प्रभावित हुए कि बोले, ’मैं रानी सुमित्रा के त्याग से आश्चर्यचकित हूं। इस त्याग के फलस्वरूप उन्हें एक नहीं, दो-दो संतानें होंगी। महाराज आप दोनों पात्रों से थोड़ा-थोड़ा प्रसाद रानी सुमित्रा को दें।
रानी कौशल्या और कैकेयी सुमित्रा के त्याग पर अभिभूत हुईं पर उन्हें यह भी दुख हुआ कि सुमित्रा जैसे त्याग का विचार उनके मन में क्यों नहीं आया। सुमित्रा ने त्याग कर महानता प्राप्त की मगर वे दोनों उससे वंचित रह गयीं। 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *