
चिकित्सा-विज्ञान के क्षेत्र में वैज्ञानिकों ने असाध्य रोगों के इलाज ढूंढ लिए हैं पर अभी भी कुछ रोग ऐसे हैं जिनके इलाज ढूंढने में वैज्ञानिक प्रयासरत हैं। इन्हीं रोगों में एक रोग है ’मधुमेह‘ जिससे शायद ही कोई व्यक्ति हो जो परिचित न हो।
आज करोड़ों की संख्या में व्यक्ति इस रोग से पीडि़त हैं और कितने व्यक्तियों को यह रोग होने पर भी इसका ज्ञान नहीं है। इस रोग पर नियंत्राण पाने के लिए दवाएं हैं पर इस रोग को खत्म करने के लिए कोई दवा उपलब्ध नहीं है। विशेषज्ञों का मानना है कि इस रोग से सुरक्षा पाने के लिए व्यक्ति सिर्फ सावधानियां बरत सकता है और ये सावधानियां रोग की संभावना को कम करने में मददगार हो सकती हैं।
इस जानलेवा रोग के बारे में ज्ञान प्राप्त कर व सही समय पर इलाज प्रारंभ कर इस रोग के भयंकर परिणामों को रोका जा सकता है। मधुमेह के कारण व्यक्ति को गुर्दा संबंधी रोग, रेटिनोपेथी, पक्षाघात, हृदयाघात, गैंगरीन आदि गम्भीर समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। आइए जानते हैं इस रोग के बारे में।
पेनक्रियास ग्लैण्ड के बैटा सेल्स एक हार्मोन स्रावित करते हैं जिसे इन्सुलिन कहा जाता है। मधुमेह के कारण इन्सुलिन का स्तर कम हो जाता है और इस हार्मोन की अनुपस्थिति में ग्लूकोज शरीर के सेल्स में प्रवेश नहीं कर पाता और रक्त में अधिक मात्रा में रहता है जिसके कारण रक्त-शर्करा के स्तर में अधिकता आने लगती है और यह शर्करा मूत्रा में चली जाती है। सेल्स को जब शर्करा नहीं मिलती तो उन्हें एनर्जी नहीं मिलती जिसके कारण व्यक्ति कमजोर होने लगता है इसीलिए मधुमेह के रोगियों में वजन कम होना सामान्यतः देखने को मिलता है।
मधुमेह इन्सुलिन की स्थिति के आधार पर दो प्रकार का होता है, एक जिसे टाइप-1 डायबिटिज कहा जाता है तथा दूसरा टाइप- 2 डायबिटिज। अगर व्यक्ति के शरीर में इन्सुलिन नहीं है या बहुत कम मात्रा में है तो वह टाइप 1-डायबिटिज से पीडि़त है। इस अवस्था में व्यक्ति को इन्सुलिन के इंजेक्शन लेने पड़ते हैं। यह अवस्था अधिकतर छोटी आयु में देखने को मिलती है और इसमें व्यक्ति को नियमित इंजेक्शन लेने पड़ते हैं। नियमित इंजेक्शन न लेने की स्थिति में मूत्रा में कीटोन विकसित होने लगते हैं जो हानिकारक होते हैं।
टाइप-टू डायबिटिज में भी इन्सुलिन की कमी या शरीर में इन्सुलिन के सामान्य कार्य में बाधा आ जाती है। टाइप-टू के रोगी अधिकतर मोटापे पीडि़त व 40 वर्ष की आयु से अधिक होते हैं। टाइप टू डायबिटिज पर नियंत्राण पाने के लिए विशेषज्ञ सही डाइट, नियमित व्यायाम, सैर और दवाई आदि पर जोर देते हैं। इन रोगियों को प्रारंभिक अवस्था में तो इन्सुलिन के इंजेक्शन की आवश्यकता नहीं होती पर बाद में कभी-कभी इसकी आवश्यकता पड़ जाती है।
मधुमेह के सामान्य लक्षणों में सबसे पहला सामान्य लक्षण देखने को मिलता है वह है थकावट। वजन कम होना, अधिक मात्रा में मूत्रा आना, अधिक भूख व प्यास लगना, फंगल इन्फेक्शन, चिड़चिड़ापन, धुंधला दिखाई देना, चक्कर या बेहोशी आना आदि भी मधुमेह के लक्षण हैं। मधुमेह के रोगियों को सामान्यतः दो विपरीत स्थितियों का सामना करना पड़ता है। एक है हाइपरग्लाइकेमिया (उच्चरक्त-शर्करा) व दूसरा हाइपोग्लाइकेमिया (निम्न रक्त-शर्करा)। दोनों ही स्थितियां जानलेवा हो सकती हैं और इसके लिए रोगी को बहुत सचेत रहने की आवश्यकता होती है।
जब रक्त शर्करा अधिक हो जाती है तो रोगी बहुत ही कमजोर हो जाता है। चक्कर आते हैं व रोगी की त्वचा में रूखापन आ जाता है। ऐसा महसूस होने पर तुरन्त विशेषज्ञ से राय लें। रक्त शर्करा का स्तर कम हो जाने पर रोगी की कार्यगति धीमी हो जाती है, उसे कुछ सूझता नहीं है, चिड़चिड़ापन आ जाता है। हृदय गति बढ़ जाना, कंपकंपी, पसीना आना, अनिद्रा, जी मिचलाना आदि स्थितियों का सामना करना पड़ता है। इन दोनों स्थितियों का सामना करने के लिए रोगी को अपने डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए।
इसके अतिरिक्त भी मधुमेह के रोगियों को कुछ बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए। अपने वजन, डाइट व जीवन शैली पर विशेष ध्यान दें। अधिक वसा व अधिक परिष्कृत खाद्य पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए। डाइट पर नियंत्राण के बिना दवाइयां व इन्सुलिन इंजेक्शन फायदेमंद नहीं हो सकते। तनावमुक्त रहने का प्रयास करें, धूम्रपान व अल्कोहल का सेवन न करें। विशेषज्ञ की सलाह के बिना दवाई बंद या दवा परिवर्तन न करें।
अनाज, दालें व हरी सब्जियों का सेवन करें। कई बार मधुमेह के रोगी अधिक वसायुक्त भोजन या मीठा भोज्य पदार्थ खाने के एवज में दवा की मात्रा अपने आप अधिक कर लेते हैं। बिना विशेषज्ञ की सलाह के स्वयं अपनी चिकित्सा आपकी जान को जोखिम में डाल सकती है।
अनियंत्रित मधुमेह के कारण आँखों को नुकसान पहुंच सकता है व अंधेपन की स्थिति भी आ सकती है।
आंखों में लाली, पानी आना, धुंधला दिखाई देना, बार-बार चश्मे का नंबर बदलना आदि होने पर आंखों के विशेषज्ञ को दिखाएं। इसके अतिरिक्त मधुमेह में प्रभावित होने वाला अंग है आपके दांत। मसूड़ों में सूजन, रक्त आना, मुंह से दुर्गध आना, दांतों का टूटना आदि होने पर डॉक्टर से सम्पर्क करें।
पैरांे की तरफ ध्यान देना मधुमेह रोगी के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है। पैरों की उंगलियों के बीच कोई जख्म, छाला आदि एडि़यों का फटना आदि होने पर डॉक्टर को बताएं व इनका सही इलाज भी कराएं। पैरों की सफाई की तरफ भी विशेष ध्यान दें।
पैरों के नाखूनों को नियमित काटें व साफ रखें। प्रतिदिन साबुन से पैर अच्छी तरह साफ करें और उस पर माइश्चराइजर लगाएं। पैरों की उंगलियों के बीच अच्छी तरह सफाई कर उनमें पाउडर लगाएं। बिना चप्पल या जूतों के न घूमें। बिना जुराबों के जूते न पहनें। सही नाप के जूते व जुराबें डालें। परफ्यूमयुक्त लोशन का प्रयोग पैरों पर न करें। यथा संभव कोशिश करें कि पैरों पर कोई चोट न लगे।
उपर्युक्त बातों को ध्यान में रखकर आप इस रोग से निपट सकते हैं। अपने विशेषज्ञ की राय अवश्य लेते रहें।