
मानवीय क्रिया कलापों और व्यवसायीकरण ने जहां एक ओर उसके लिए सुख सुविधाओं के साधनों में आशातीत वृद्धि की है, वहीं दूसरी ओर यह उसके पतन और विनाश का कारण भी बना है। आज सम्पूर्ण पृथ्वी के जैविक और भौतिक तत्व पर्यावरण प्रदूषण के गहराते प्रभाव से संत्रस्त हैं। वायुमंडल में व्याप्त विजातीय कारकों की अधिकता के कारण पृथ्वी का तापमान तेजी से बढ़ रहा है।
वायुमंडल तथा मनुष्य को क्षति पहुंचाने वाले इन्हीं घटकों में से एक है- ध्वनि प्रदूषण का बढ़ता दुष्प्रभाव। ध्वनि प्रदूषण के कारण जानमाल की हर रोज अपूरणीय क्षति हो रही है। ध्वनि प्रदूषण एक ऐसा मीठा जहर है, जो धीरे-घीरे खतरनाक रूप से हमारे मन मस्तिष्क को निष्क्रिय करता जाता है।
हालांकि इसका असर हम रोजाना अपने शरीर और मन पर महसूस तो करते हैं किंतु उसकी उपेक्षा करते जाते हैं। बाद में एक स्थिति ऐसी आती है, जब वह हमारे शरीर को नष्ट कर चुका होता है अतः यह नितांत आवश्यक है कि हम ध्वनि प्रदूषण के बढ़ते प्रकोप से अपने आपको कम से कम प्रभावित होने दें।
ध्वनि ऊर्जा का स्थानांतरण तरंगों से होता है। शोर (ध्वनि) की तीव्रता मापने की इकाई का नाम ’डेसिबल‘ है। एक ध्वनि का स्वरूप ’शोर‘ प्रदूषण के स्तर पर कब पहुंच जाता है, यह एक सापेक्ष धारणा है। एक व्यक्ति को कोई ध्वनि शोर प्रतीत होता है तो वही ध्वनि किसी दूसरे व्यक्ति को सामान्य ध्वनि लगती है।
यद्यपि किसी व्यक्ति के लिए कोई ध्वनि शोर कब बन जाती है, इसके बारे में निश्चित तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता। एक हल्की फुसफुसाहट 10 डेसिबल की होती है। विभिन्न स्रोतों से उत्पन्न ध्वनि की प्रबलता डेसीबल माप के अनुसार संलग्न तालिका में दर्शाई गई है।
एक सर्वेक्षण के अनुसार आमतौर पर 45 से 60 डेसिबल की ध्वनि का व्यवहार हम अपने दैनिक जीवन में करते हैं। इस सीमा के भीतर की ध्वनि आमतौर पर मानवीय स्वास्थ्य के लिए हानिकारक नहीं मानी जाती किंतु 65 डेसिबल से अधिक की ध्वनि मनुष्य के लिए यंत्राणादायक सिद्ध हो सकती है। सर्वेक्षण के अनुसार 85 डेसिबल से अधिक ध्वनि का लगातार श्रवण बहरेपन का कारण हो सकता है। 130 से 150 डेसिबल ध्वनि का श्रवण करने वाले व्यक्ति के कान के पर्दे भी फट सकते हैं।
हाल के वर्षों में बड़े महानगरों में ध्वनि प्रदूषण के कारण लोगों में बहरेपन की समस्या में काफी तेजी से वृद्धि हुई है। अधिक शोर-शराबे में जन्म लेने वाले और पलने वाले बच्चों के स्वास्थ्य पर भी इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। यह ऐसे बच्चों की अपंगता, बहरेपन अथवा उनकी असमय मृत्यु का कारण भी बन सकता है।
ध्वनि प्रदूषण हमारे जनजीवन में महामारी का रूप लेता जा रहा है इसलिए यदि इसे रोकने के लिए तत्काल प्रभावकारी कदम न उठाए गए तो इसका प्रकोप काफी भयंकर हो सकता है इसलिए यह आवश्यक है कि ध्वनि प्रदूषण को रोकने के लिए सरकारी तथा गैर सरकारी दोनों ही स्तरों पर सम्मिलित रूप से प्रयास किए जाएं।
वायुमंडल तथा मनुष्य को क्षति पहुंचाने वाले इन्हीं घटकों में से एक है- ध्वनि प्रदूषण का बढ़ता दुष्प्रभाव। ध्वनि प्रदूषण के कारण जानमाल की हर रोज अपूरणीय क्षति हो रही है। ध्वनि प्रदूषण एक ऐसा मीठा जहर है, जो धीरे-घीरे खतरनाक रूप से हमारे मन मस्तिष्क को निष्क्रिय करता जाता है।
हालांकि इसका असर हम रोजाना अपने शरीर और मन पर महसूस तो करते हैं किंतु उसकी उपेक्षा करते जाते हैं। बाद में एक स्थिति ऐसी आती है, जब वह हमारे शरीर को नष्ट कर चुका होता है अतः यह नितांत आवश्यक है कि हम ध्वनि प्रदूषण के बढ़ते प्रकोप से अपने आपको कम से कम प्रभावित होने दें।
ध्वनि ऊर्जा का स्थानांतरण तरंगों से होता है। शोर (ध्वनि) की तीव्रता मापने की इकाई का नाम ’डेसिबल‘ है। एक ध्वनि का स्वरूप ’शोर‘ प्रदूषण के स्तर पर कब पहुंच जाता है, यह एक सापेक्ष धारणा है। एक व्यक्ति को कोई ध्वनि शोर प्रतीत होता है तो वही ध्वनि किसी दूसरे व्यक्ति को सामान्य ध्वनि लगती है।
यद्यपि किसी व्यक्ति के लिए कोई ध्वनि शोर कब बन जाती है, इसके बारे में निश्चित तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता। एक हल्की फुसफुसाहट 10 डेसिबल की होती है। विभिन्न स्रोतों से उत्पन्न ध्वनि की प्रबलता डेसीबल माप के अनुसार संलग्न तालिका में दर्शाई गई है।
एक सर्वेक्षण के अनुसार आमतौर पर 45 से 60 डेसिबल की ध्वनि का व्यवहार हम अपने दैनिक जीवन में करते हैं। इस सीमा के भीतर की ध्वनि आमतौर पर मानवीय स्वास्थ्य के लिए हानिकारक नहीं मानी जाती किंतु 65 डेसिबल से अधिक की ध्वनि मनुष्य के लिए यंत्राणादायक सिद्ध हो सकती है। सर्वेक्षण के अनुसार 85 डेसिबल से अधिक ध्वनि का लगातार श्रवण बहरेपन का कारण हो सकता है। 130 से 150 डेसिबल ध्वनि का श्रवण करने वाले व्यक्ति के कान के पर्दे भी फट सकते हैं।
हाल के वर्षों में बड़े महानगरों में ध्वनि प्रदूषण के कारण लोगों में बहरेपन की समस्या में काफी तेजी से वृद्धि हुई है। अधिक शोर-शराबे में जन्म लेने वाले और पलने वाले बच्चों के स्वास्थ्य पर भी इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। यह ऐसे बच्चों की अपंगता, बहरेपन अथवा उनकी असमय मृत्यु का कारण भी बन सकता है।
ध्वनि प्रदूषण हमारे जनजीवन में महामारी का रूप लेता जा रहा है इसलिए यदि इसे रोकने के लिए तत्काल प्रभावकारी कदम न उठाए गए तो इसका प्रकोप काफी भयंकर हो सकता है इसलिए यह आवश्यक है कि ध्वनि प्रदूषण को रोकने के लिए सरकारी तथा गैर सरकारी दोनों ही स्तरों पर सम्मिलित रूप से प्रयास किए जाएं।