अलौकिक सिद्वियों के स्वामी थे नीम करौली महाराज

0
Capture-12-4
मानव समाज के उत्थान के लिए योगी संतों का समय समय पर इस वसुंधरा में पर्दापण होता रहा है  इसी भूमि पर साधना करके संतों ने संसार में ज्ञान का जो प्रकाश फैलाया उसकी महत्ता समूचा विश्व जानता है,देवभूमि उत्तराखण्ड की धरती में स्थित कैंची मंदिर विराट स्वरूप के धनी विश्व प्रसिद्व संत नीम करौली महाराज की अमूल्य धरोहर है, इनकी उपमा परोपकारी संतो में अतुलनीय है  
हिमालय की गोद में बसा उत्तराखण्ड का यह क्षेत्र प्रकृति की अमूल्य अलौकिक धरोहर है। यहां की पावन रमणीक वादियों में पहुंचते ही सांसारिक मायाजाल में भटके मानव की समस्त व्याधियां यूं शांत हो जाती है, जैसे अग्नि की लौ पाते ही तिनका भस्म हो जाता है। यहां की ऐतहासिक धरोहर रूपी रमणीय गुफाएं, सुंदर मनभावन मंदिर यहां आने वाले हर एक व्यक्ति को अपनी ओर आकर्षित करने में पूर्णत: सक्षम हैं। ऋषि-मुनियों की आराधना व तप:स्थली के रूप में प्रसिद्ध इस पावन भूमि के पग-पग पर देवालयों की भरमार है। सुन्दर झरने कल-कल धुन में नृत्य करती नदियां अनायास ही पर्यटकों व श्रद्धालुओं को बरबस ही अपनी ओर आकर्षित कर लेते हैं। देवभूमि उत्तराखण्ड की अलौकिक वादियों में से एक दिव्य रमणीक लुभावना स्थल है कैंची धाम।
        कैंची धाम जिसे नीम किरौली धाम भी कहा जाता है, उत्तराखण्ड का ऐसा तीर्थस्थल है, जहां वर्ष भर श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। अपार संख्या में श्रद्धालु व भक्तजन यहां पहुंचकर अपनी आराधना व श्रद्धा के पुष्प श्री करौली महाराज के चरणों में अर्पित करते हैं। हर साल 15 जून को यहां एक विशाल मेले का आयोजन होता है। भक्तजन यहां पधारकर अपनी श्रद्धा व आस्था को व्यक्त करते हैं, कहा जाता है कि यहां पर श्रद्धा एवं विनयपूर्वक की गई पूजा कभी भी व्यर्थ नहीं जाती। यहां पर मांगी गई मनौती पूर्णतया फलदायी कही गई है। इस क्षेत्र के आस्थावन भक्त बताते है। बाबा नीम करौली महाराज महान योगीराज थे।
जनपद नैनीताल की सौन्दर्यशाली वादियों में स्थित ‘कैंची धाम का मंदिर समस्त उत्तराखण्ड सहित देश-विदेश के तमाम श्रद्धालुओं की आस्थाओं का केंद्र है।
 भवाली के समीपस्थ स्थित इस मंदिर की स्थापना को लेकर कई रोचक कथाएं जनमानस में खासी प्रसिद्ध हैं। बाबा नीम करौली महाराज की अनुपम कृपा से ही इस स्थान पर मंदिर की स्थापना की गई। कहते हैं कि 1962 के आसपास श्री महाराज जी ने यहां की भूमि पर कदम रखा तथा उनके चरणों की आभा पाकर भूमि धन्य हुई। जब वे सन् 1962 के लगभग यहां पहुंचे तो उन्होंने अनेक चमत्कारिक लीलाएं रचकर जनमानस को हतप्रभ कर दिया। एक चमत्कारिक कथा के अनुसार माता सिद्धि व तुलाराम शाह के साथ बाबा नीम करौली महाराज किसी वाहन से जनपद अल्मोड़ा के रानीखेत नामक स्थान से नैनीताल को आ रहे थे। अचानक वे कैंची धाम के पास उतर गये। इस बीच उन्होंने तुलाराम जी को बताया कि श्यामलाल अच्छा आदमी था, उन्हें यह बात अच्छी नहीं लगी, क्योंकि श्यामलाल जी उनके समधी थे। भाषा में ‘था’ के उपयोग से वे बेरूखे हो गए। खैर किसी तरह मन को काबू में रखकर वे अपने गंतव्य स्थल को चल दिये। बाद में उन्हें जानकारी मिली कि उनके समधी का हृदय गति रूकने से निधन हो गया। कितना अलौकिक दिव्य चमत्कार था बाबा नीम करौली महाराज का कि उन्होंने दूर घटित घटना को बैठे-बैठे ही जान लिया। इस तरह की अनेक चमत्कारिक घटनाएं बाबा नीम करौली महाराज से जुड़ी हैं।
 इसी तरह 15 जून, 1991 को घटी एक चमत्कारिक घटना के अनुसार कैंची धाम में आयोजित भक्तजनों की विशाल भीड़ में बाबा ने बैठे-बैठे इस तरह निदान करवाया कि जिसे यातायात पुलिसकर्मी घंटों से नहीं करवा पाए। थक हार कर उन्होंने बाबा की शरण ली। आखिरकार उनकी समस्याओं का निदान हुआ। यह घटना आज भी खासी चर्चाओं में रहती है।
 इसके अलावा एक बार यहां आयोजित भंडारे में घी की कमी पड़ गई थी। बाबा जी के आदेश पर नीचे बहती नदी से कनस्तर में जल भरकर लाया गया। उसे प्रसाद बनाने हेतु जब उपयोग में लाया गया तो वह जल  घी में परिणित हो गया। इस चमत्कार से आस्थावान भक्तजन नतमस्तक हो उठे। एक अन्य चमत्कार के अनुसार बाबा नीम करौली महाराज जी ने एक बार गर्मी की तपती धूप में एक भक्त को बादल की छतरी बनवाकर उसे उसकी मंजिल तक पहुंचाया। इस तरह एक नहीं अनेक चमत्कारों की किंवदंतियां जुड़ी हुई हैं नीम करौली महाराज से। माना जाता है, कि बाबा जी का जन्म अकबरपुर आगरा जिले के एक सामान्य ब्रह्मण परिवार में 19 वीं शताब्दी के आखिर पड़ाव में हुआ था। बचपन में माता पिता इन्हें लक्ष्मी नारायण कहकर बुलाते थे। इन्होनें हनुमान जी की साधना की थी इसी  साधना के बल पर एक बार नीम करौली गांव में इन्होनें एक बार ट्रेन की गति विराम कर दी थी। आम जनमानस में प्रचलित दंतकथा के अनुसार इन्हें टी टी ने चैकिग के दौरान नीचे उतार दिया था। लाख प्रयास के बाद भी जब गाड़ी आगे न बढ सकी तब बाबा से क्षमा याचना के बाद गाड़ी चली।  हनुमानगढी में हनुमान जी का मदिर बाबा जी की भक्ति का ही पैगाम है। यही नही देश के अनेक भागों में इन्होनें हनुमान मदिर भक्तों के कल्याण के लिए बनवाये। गरीबों की सेवा को ही मानव जीवन की सार्थकता कहने वाले संत नीम करौली महाराज की अन्तिम लीला का क्षेत्र योगेश्वर भगवान श्री कृष्ण की नगरी वृंदावन रही है। हनुमान जी की महिमा की ज्योति का प्रचार प्रसार इनके जीवन का लक्ष्य रहा। सौ से अधिक देशों में महाराज जी के आश्रम है जनश्रुति के अनुसार बाबा जी का विवाह 11 वर्ष की आयु में हो गया था और 13 साल की अवस्था में इन्होंने घर छोड दिया था। उत्तराखण्ड व देश विदेश के अनेक भागों में आपने हनुमान मंदिर बनवाये जिनमें कैेची धाम एक है, इसके अलावा बाबा जी की प्रेरणा से पिथौरागढ में गणाई से आगे हनुमान मदिर काफी प्रसिद्व है जहां इनके परम शिष्य ऋषिकेश गिरी महाराज तपस्यारत है ,साथ ही गेठिया भूमियाधार के हनुमान मदिर भी काफी प्रसिद्व है। 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *