
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वितीय सरसंघचालक माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर ने एक मंत्र दिया- इदं राष्ट्राय इदं न मम् अर्थात् मेरा कुछ भी नहीं है, मेरा सब कुछ राष्ट्र के लिए है अथवा राष्ट्र को समर्पित है। क्या आज जब भारत सशक्त, समृद्ध , आत्मनिर्भर और विकसित भारत का संकल्प लेकर आगे बढ़ रहा है और जब पड़ोसी देशों के साथ आतंकवाद जैसे गंभीर मुद्दों पर संघर्ष भी लगातार बढ़ रहा है, क्या तब यह मंत्र सभी को आत्मसात नहीं करना चाहिए? क्या यह समय जाति, संप्रदाय, भाषा अथवा क्षेत्रीयता के आधार पर आपसी वैमनस्य फैलाने का है? क्या ऐसे में देव भक्ति अपनी-अपनी और राष्ट्रभक्ति मिलकर करने की आवश्यकता नहीं है? क्या भारतवर्ष के स्वतंत्रता संग्राम में अनेक बलिदानी राष्ट्र रक्षा को ही अपना धर्म बनाकर बलिवेदी पर नहीं चढ़े?
भूमि,जन, संस्कृति, प्रकृति-पर्यावरण, आचार और व्यवहार की विविधता मिलकर राष्ट्र की संकल्पना को आकार देते हैं। जन के लिए यह आवश्यक है कि वह भूमि को माता मानकर मानवता के कल्याण की संस्कृति का पालन और निर्माण करें। प्रकृति-पर्यावरण के बिना किसी भी जीवधारी का जीवन संभव नहीं है इसलिए इनके संरक्षण-संवर्धन हेतु भी कार्य करें। साथ ही वे ऐसे आचार और व्यवहारों का अनुसरण करें जिनमें सर्वे भवंतु सुखिन: की कामना निहित हो।
विश्व ज्ञान के आदि ग्रंथ ऋग्वेद में इसी जन को केंद्र में रखकर सबसे पहले उसे मनुर्भव… अर्थात मनुष्य बनने का उपदेश है। तदुपरांत उसे वसुधैव कुटुंबकम का मंत्र देते हुए सर्वे भवंतु के सुख की कामना की गई है। ध्यान रहे भारतीय चिंतन में जन का आह्वान है- माताभूमि: पुत्रोअहं…अर्थात यह भूमि मेरी माता है और मैं इसका पुत्र हूं। क्या इसके मूल में मातृभूमि की रक्षा का संकल्प और संदेश निहित नहीं है? आज यह समझने की आवश्यकता है कि राष्ट्र रक्षा स्वयं के अस्तित्वबोध व आत्मबोध का भी विषय है। हमारी धार्मिक मान्यताएं, पूजा पद्धतियां और उनका पालन हम अपने राष्ट्र की सीमाओं में रहकर ही सहजता से कर पाते हैं, इसलिए यदि राष्ट्र सुरक्षित होगा तो ही हम सुरक्षित रह सकते हैं, राष्ट्र के बिना हमारा कोई अस्तित्व नहीं है। सर्वविदित है कि अतीत में भारतवर्ष ने भिन्न-भिन्न कारणों से लंबे समय तक विदेशी दासता और अत्याचार झेले हैं। इस लंबे कालखंड में विदेशी आक्रांताओं एवं शासकों से अनेक युद्ध और संघर्षों से भी गुजरना पड़ा। अनेक कष्ट सहकर और अनेकानेक बलिदानों के बाद भी राष्ट्र रक्षा के लिए यहां का जन जन सर्वस्व अर्पण करता रहा है। सैनिक सीमा पर केवल वेतन के लिए नहीं खड़ा होता अपितु वह वतन और उसकी रक्षा को धर्म मानकर लड़ता है।
स्वतंत्रता के बाद औपनिवेशिक विचारों की व्यापकता, राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं एवं विभिन्न स्वार्थों के कारण कुछ कथित संगठन बनाकर और व्यक्तिगत रूप से समाज और राष्ट्र को कमजोर करने हेतु प्रयास करते रहे हैं। जन भागीदारी का संबल पाकर यह राष्ट्र विकसित भारत का संकल्प लेकर जैसे-जैसे आगे बढ़ रहा है वैसे-वैसे कथित बुद्धिजीवी भारत विरोध हेतु एकजुट होकर इकोसिस्टम में काम करने लगते हैं। ऐसे लोग कभी जाति,संप्रदाय अथवा भाषा के विवाद खड़े करते हैं तो कभी सोशल मीडिया में सेना, सरकार और सकारात्मकता के विरुद्ध झूठा प्रोपेगेंडा चलते हैं। ये कभी प्रधानमंत्री को तानाशाह बताते हैं तो कभी आरएसएस पर इस देश और शिक्षण संस्थानों के भगवाकरण का दोष लगाते हैं। ये कभी अल्पसंख्यकों को दमित बताते हैं तो कभी किसानों को। नए कृषि कानून, तीन तलाक कानून, कश्मीर से धारा 370 हटाने का कानून और हाल ही में वक्फ संशोधन कानून आदि ऐसे अनेक महत्वपूर्ण कानूनों के विरोध में कथितों का यह इकोसिस्टम लगातार सक्रिय रहा है।
हाल ही में पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच सैन्य कारवाई हुई। सीमा पर लंबे समय तक तनाव बना रहा। कई सैनिकों और नागरिकों का बलिदान हुआ। सारा देश सेना और सरकार के साथ खड़ा रहा लेकिन कुछ कथित वामपंथी- दामपंथी और भारत विरोधी तरह-तरह के झूठे प्रोपेगेंडा बनाकर सेना और सरकार का मनोबल गिराते रहे। व्हाट्सएप और फेसबुक जैसे प्लेटफार्म पर ऑपरेशन सिंदूर को लेकर विरोध में लिखते रहे। ये गिरगिट हैं, रंग बदलते रहते हैं। कभी ये युद्ध करने के लिए आदेशात्मक प्रचार चलते हैं तो कभी शांति दूत बन जाते हैं। कभी ये फिलिस्तीन की तरफदारी करते हैं तो कभी पाकिस्तान और चीन का गुणगान करते हैं, क्या ऐसे लोग सामाजिक समरसता और राष्ट्र की सुरक्षा के लिए खतरा नहीं हैं?
ऐसे लोग सोशल मीडिया के जरिए एक ऐसे उन्मादी वर्ग को तैयार कर रहे हैं जो राष्ट्र भाव के विरुद्ध काम करता है। भारत में धरने-प्रदर्शन और रैलियों में पाकिस्तान और फिलिस्तीन का झंडा लहराने वाले और उनके समर्थन में नारे लगाने वाले ये उन्मादी राजनीतिक संरक्षण और विदेशी चंदे से पल रहे हैं। हाल ही में बंगाल,बिहार और राजस्थान आदि कई प्रदेशों से देश और सेना के विरोध में काम करने वाले व सोशल मीडिया पर भारत के खिलाफ दुष्प्रचार करने वाले सैकड़ों लोगों को गिरफ्तार किया गया है। इनका काम केवल दुष्प्रचार और वैमनस्य का प्रचार करना है।
राजनीति में विपक्ष की भूमिका सरकार पर जन कल्याणकारी कार्यों के लिए दबाव बनाने और सकारात्मक वातावरण बनाने की होती है लेकिन भारत में यह उल्टा है। विभिन्न जन कल्याणकारी योजनाओं और संसद में बने संविधान सम्मत कानूनों को विपक्ष झूठ और भ्रम के सहारे गलत ठहराने का प्रयास करता है। विपक्ष के छोटे बड़े अनेक दल एयर स्ट्राइक और सैन्य अभियानों के प्रमाण मांगते हैं। हाल ही में कांग्रेस नेता राहुल गांधी एवं मल्लिकार्जुन खड़गे ने ऑपरेशन सिंदूर के तहत पाकिस्तान के खिलाफ कार्रवाई रोके जाने पर अलग-अलग तरह के सवाल उठाए हैं। कभी वे संसद का विशेष सत्र बुलाने की मांग करते हैं तो कभी सरकार से स्पष्टीकरण मांगते हैं, क्या यह जिम्मेदार विपक्ष की भूमिका है? ध्यान रहे एकजुट होकर राष्ट्र रक्षा के संकल्प से ही सीमा सुरक्षित रह सकती हैं। पड़ोसी देशों के साथ किसी भी प्रकार के संघर्ष अथवा युद्ध जैसी स्थिति में जहां सैनिक सीमा पर रहकर अपने राष्ट्र रक्षा धर्म का पालन करते हैं वहीं यह आवश्यक है कि एक नागरिक के नाते समाज में रहते हुए हम सभी राष्ट्र की रक्षा हेतु एकजुट रहें। झूठे प्रोपेगेंडा चलाकर भ्रम और भय न फैलाएं।
संविधान की उद्देशिका में राष्ट्र की एकता और अखंडता के लिए सभी को दृढ़ संकल्पित होने की बात है तो संविधान के मूल कर्तव्य (51ए) सभी को संविधान का पालन करने, स्वतंत्रता के लिए हमारे राष्ट्रीय आंदोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शो को हृदय में संजोए रखने, भारत की प्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा और उसे अक्षुण्ण रखने व देश की रक्षा करने और आवाह्न किए जाने पर राष्ट्र की सेवा करने हेतु उल्लेख करता है। क्या देश के विरुद्ध झूठा प्रचार करने और देश की सुरक्षा से संबंधित गोपनीय जानकारियां साझा करके कुछ लोग संविधान के विपरीत काम नहीं कर रहे हैं? ध्यान रहे यदि हम अपने अधिकारों के प्रति सचेत रहते हैं तो हमें राष्ट्रहित में संविधान सम्मत कर्तव्यों का भी पालन करना चाहिए।
धर्म पूछकर निर्दोष लोगों की हत्या धर्म नहीं हो सकता बल्कि राष्ट्र रक्षा और मानवता के कल्याण हेतु तत्पर रहना सभी का धर्म बनना चाहिए।
डा.वेदप्रकाश
असिस्टेंट प्रोफेसर,
किरोड़ीमल कालेज,दिल्ली विश्वविद्यालय
भूमि,जन, संस्कृति, प्रकृति-पर्यावरण, आचार और व्यवहार की विविधता मिलकर राष्ट्र की संकल्पना को आकार देते हैं। जन के लिए यह आवश्यक है कि वह भूमि को माता मानकर मानवता के कल्याण की संस्कृति का पालन और निर्माण करें। प्रकृति-पर्यावरण के बिना किसी भी जीवधारी का जीवन संभव नहीं है इसलिए इनके संरक्षण-संवर्धन हेतु भी कार्य करें। साथ ही वे ऐसे आचार और व्यवहारों का अनुसरण करें जिनमें सर्वे भवंतु सुखिन: की कामना निहित हो।
विश्व ज्ञान के आदि ग्रंथ ऋग्वेद में इसी जन को केंद्र में रखकर सबसे पहले उसे मनुर्भव… अर्थात मनुष्य बनने का उपदेश है। तदुपरांत उसे वसुधैव कुटुंबकम का मंत्र देते हुए सर्वे भवंतु के सुख की कामना की गई है। ध्यान रहे भारतीय चिंतन में जन का आह्वान है- माताभूमि: पुत्रोअहं…अर्थात यह भूमि मेरी माता है और मैं इसका पुत्र हूं। क्या इसके मूल में मातृभूमि की रक्षा का संकल्प और संदेश निहित नहीं है? आज यह समझने की आवश्यकता है कि राष्ट्र रक्षा स्वयं के अस्तित्वबोध व आत्मबोध का भी विषय है। हमारी धार्मिक मान्यताएं, पूजा पद्धतियां और उनका पालन हम अपने राष्ट्र की सीमाओं में रहकर ही सहजता से कर पाते हैं, इसलिए यदि राष्ट्र सुरक्षित होगा तो ही हम सुरक्षित रह सकते हैं, राष्ट्र के बिना हमारा कोई अस्तित्व नहीं है। सर्वविदित है कि अतीत में भारतवर्ष ने भिन्न-भिन्न कारणों से लंबे समय तक विदेशी दासता और अत्याचार झेले हैं। इस लंबे कालखंड में विदेशी आक्रांताओं एवं शासकों से अनेक युद्ध और संघर्षों से भी गुजरना पड़ा। अनेक कष्ट सहकर और अनेकानेक बलिदानों के बाद भी राष्ट्र रक्षा के लिए यहां का जन जन सर्वस्व अर्पण करता रहा है। सैनिक सीमा पर केवल वेतन के लिए नहीं खड़ा होता अपितु वह वतन और उसकी रक्षा को धर्म मानकर लड़ता है।
स्वतंत्रता के बाद औपनिवेशिक विचारों की व्यापकता, राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं एवं विभिन्न स्वार्थों के कारण कुछ कथित संगठन बनाकर और व्यक्तिगत रूप से समाज और राष्ट्र को कमजोर करने हेतु प्रयास करते रहे हैं। जन भागीदारी का संबल पाकर यह राष्ट्र विकसित भारत का संकल्प लेकर जैसे-जैसे आगे बढ़ रहा है वैसे-वैसे कथित बुद्धिजीवी भारत विरोध हेतु एकजुट होकर इकोसिस्टम में काम करने लगते हैं। ऐसे लोग कभी जाति,संप्रदाय अथवा भाषा के विवाद खड़े करते हैं तो कभी सोशल मीडिया में सेना, सरकार और सकारात्मकता के विरुद्ध झूठा प्रोपेगेंडा चलते हैं। ये कभी प्रधानमंत्री को तानाशाह बताते हैं तो कभी आरएसएस पर इस देश और शिक्षण संस्थानों के भगवाकरण का दोष लगाते हैं। ये कभी अल्पसंख्यकों को दमित बताते हैं तो कभी किसानों को। नए कृषि कानून, तीन तलाक कानून, कश्मीर से धारा 370 हटाने का कानून और हाल ही में वक्फ संशोधन कानून आदि ऐसे अनेक महत्वपूर्ण कानूनों के विरोध में कथितों का यह इकोसिस्टम लगातार सक्रिय रहा है।
हाल ही में पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच सैन्य कारवाई हुई। सीमा पर लंबे समय तक तनाव बना रहा। कई सैनिकों और नागरिकों का बलिदान हुआ। सारा देश सेना और सरकार के साथ खड़ा रहा लेकिन कुछ कथित वामपंथी- दामपंथी और भारत विरोधी तरह-तरह के झूठे प्रोपेगेंडा बनाकर सेना और सरकार का मनोबल गिराते रहे। व्हाट्सएप और फेसबुक जैसे प्लेटफार्म पर ऑपरेशन सिंदूर को लेकर विरोध में लिखते रहे। ये गिरगिट हैं, रंग बदलते रहते हैं। कभी ये युद्ध करने के लिए आदेशात्मक प्रचार चलते हैं तो कभी शांति दूत बन जाते हैं। कभी ये फिलिस्तीन की तरफदारी करते हैं तो कभी पाकिस्तान और चीन का गुणगान करते हैं, क्या ऐसे लोग सामाजिक समरसता और राष्ट्र की सुरक्षा के लिए खतरा नहीं हैं?
ऐसे लोग सोशल मीडिया के जरिए एक ऐसे उन्मादी वर्ग को तैयार कर रहे हैं जो राष्ट्र भाव के विरुद्ध काम करता है। भारत में धरने-प्रदर्शन और रैलियों में पाकिस्तान और फिलिस्तीन का झंडा लहराने वाले और उनके समर्थन में नारे लगाने वाले ये उन्मादी राजनीतिक संरक्षण और विदेशी चंदे से पल रहे हैं। हाल ही में बंगाल,बिहार और राजस्थान आदि कई प्रदेशों से देश और सेना के विरोध में काम करने वाले व सोशल मीडिया पर भारत के खिलाफ दुष्प्रचार करने वाले सैकड़ों लोगों को गिरफ्तार किया गया है। इनका काम केवल दुष्प्रचार और वैमनस्य का प्रचार करना है।
राजनीति में विपक्ष की भूमिका सरकार पर जन कल्याणकारी कार्यों के लिए दबाव बनाने और सकारात्मक वातावरण बनाने की होती है लेकिन भारत में यह उल्टा है। विभिन्न जन कल्याणकारी योजनाओं और संसद में बने संविधान सम्मत कानूनों को विपक्ष झूठ और भ्रम के सहारे गलत ठहराने का प्रयास करता है। विपक्ष के छोटे बड़े अनेक दल एयर स्ट्राइक और सैन्य अभियानों के प्रमाण मांगते हैं। हाल ही में कांग्रेस नेता राहुल गांधी एवं मल्लिकार्जुन खड़गे ने ऑपरेशन सिंदूर के तहत पाकिस्तान के खिलाफ कार्रवाई रोके जाने पर अलग-अलग तरह के सवाल उठाए हैं। कभी वे संसद का विशेष सत्र बुलाने की मांग करते हैं तो कभी सरकार से स्पष्टीकरण मांगते हैं, क्या यह जिम्मेदार विपक्ष की भूमिका है? ध्यान रहे एकजुट होकर राष्ट्र रक्षा के संकल्प से ही सीमा सुरक्षित रह सकती हैं। पड़ोसी देशों के साथ किसी भी प्रकार के संघर्ष अथवा युद्ध जैसी स्थिति में जहां सैनिक सीमा पर रहकर अपने राष्ट्र रक्षा धर्म का पालन करते हैं वहीं यह आवश्यक है कि एक नागरिक के नाते समाज में रहते हुए हम सभी राष्ट्र की रक्षा हेतु एकजुट रहें। झूठे प्रोपेगेंडा चलाकर भ्रम और भय न फैलाएं।
संविधान की उद्देशिका में राष्ट्र की एकता और अखंडता के लिए सभी को दृढ़ संकल्पित होने की बात है तो संविधान के मूल कर्तव्य (51ए) सभी को संविधान का पालन करने, स्वतंत्रता के लिए हमारे राष्ट्रीय आंदोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शो को हृदय में संजोए रखने, भारत की प्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा और उसे अक्षुण्ण रखने व देश की रक्षा करने और आवाह्न किए जाने पर राष्ट्र की सेवा करने हेतु उल्लेख करता है। क्या देश के विरुद्ध झूठा प्रचार करने और देश की सुरक्षा से संबंधित गोपनीय जानकारियां साझा करके कुछ लोग संविधान के विपरीत काम नहीं कर रहे हैं? ध्यान रहे यदि हम अपने अधिकारों के प्रति सचेत रहते हैं तो हमें राष्ट्रहित में संविधान सम्मत कर्तव्यों का भी पालन करना चाहिए।
धर्म पूछकर निर्दोष लोगों की हत्या धर्म नहीं हो सकता बल्कि राष्ट्र रक्षा और मानवता के कल्याण हेतु तत्पर रहना सभी का धर्म बनना चाहिए।
डा.वेदप्रकाश
असिस्टेंट प्रोफेसर,
किरोड़ीमल कालेज,दिल्ली विश्वविद्यालय