
जीवन में हर कोई मधुरता चाहता है। मधुर वचन, मधुर वाणी, मधुर स्वभाव, शहद सी मीठी बातें सब को पसन्द हैं। पूजा में भी मधु, मिश्री, दूध, दही व घी मिला कर पंचामृत बनाया जाता है। मधु केवल खाने में ही मधुर नहीं, इसके गुण भी मधुर हैं।
मधु अर्थात शहद। मधु वास्तव में पुष्परसों की चीनी है। यह कई बीमारियों को ठीक करता है जैसे कब्ज, फेफड़ों के रोग, पेट के कीड़े, दिमागी कमजोरी, खून की कमी आदि परन्तु हृदय रोगों में इसका विशेष महत्त्व है। दिल की बीमारियों का खास दुश्मन है। दिल के रोगियों का मददगार व मित्र है।
आजकल की जिन्दगी बहुत व्यस्त व भागम भाग की है। व्यापार, सांसारिक चिंताएं, दुख और तनाव का प्रभाव शरीर पर बहुत अधिक पड़ता है जिसके कारण उच्च रक्तचाप हो जाता है। क्रोध, ईर्ष्या, अधिक मानसिक कार्य, रक्त संचार में दोष, हृदय गति बढ़ जाना, पिट्यूटरी ग्रंथि, थॉयराइड, एड्रीनल ग्रंथियों में खराबी मक्खन, घी मांस, चर्बी, अण्डे आदि अधिक खाते रहने के कारण धमनियों में चर्बी की तह जमती चली जाती है जिसे कोलेस्ट्राल कहते हैं।
धमनियों में कोलेस्ट्राल जमने के कारण रक्तवाहिनियां अंदर से तंग व कठोर हो जाती हैं और उनकी लोच कम हो जाती है। जब हृदय धक्का देकर रक्त पहुंचाता है तो रक्तवाहिनियां कठोर होने के कारण रक्त आगे नहीं बढ़ पाता, इसलिए हृदय को बहुत अधिक जोर लगाना पड़ता है। इसी कारण उच्च रक्तचाप होता है। थोड़ा काम करने पर थक जाना, हृदय में दर्द, धड़कन बढ़ जाना, बहुत सिरदर्द, चक्कर आना, चिड़चिड़ापन, चेहरे पर गर्मी की लहरें, चिन्ता, तन्द्रा, अनिद्रा, हाथ पैरों में झुनझुनी, रात को मूत्रा बार-बार होना आदि हो जाता है।
ऐसे में हृदय को शक्ति देने के लिए मधु ही विश्व की समस्त औषधियों में सर्वोत्तम है। ’मधु‘ के प्रयोग से हृदय को बहुत बल मिलता है। मधु को गरम करके नहीं लेना चाहिए। शहद और घी बराबर मात्रा में नहीं मिलाना चाहिए क्योंकि वह विकार करता है, जहर हो जाता है इसलिये ये सावधानियां जरूरी हैं।
एक चम्मच मधु प्रतिदिन लेने से हृदय सबल बनता है । उच्च रक्तचाप होने पर मधु शामक प्रभाव डालता है। मनुष्य का हृदय काम करना बन्द कर दे तो मृत्यु हो जाती है। हृदय की मांसपेशियों को अधिक काम करते रहने के कारण ग्लूकोज की अत्यधिक आवश्यकता होती है। मधु का ग्लूकोज हृदय को बहुत ही शक्ति देता है।
मधु पिलाते ही रक्त वाहिनियां फैल जाती हैं जिससे रक्त संचार तेजी से होने लगता है। मधु के सेवन से रक्त में हीमोग्लोबिन की मात्रा लालकण आदि बढ़ते हैं। मधु के प्रयोग से रक्त के सभी घटक सामान्य होते हैं। जब जी घबराना, चक्कर आना, दिल में दर्द आदि मालूम हो तो एक चम्मच मधु गुनगुने पानी में दिन में 3 बार सेवन करने से हृदय को बल मिलता है और राहत महसूस होती है। (स्वास्थ्य दर्पण)
कोष्ठबद्धता-कारण व निवारण
/नवरतन शर्मा
दैनिक समय पर आसानी से मल त्याग न हो या कष्ट से, विलम्ब से मल त्याग हो तो वह कोष्ठबद्धता कहलाता है। पूर्ण स्वस्थ व्यक्ति को कोष्ठबद्धता हो ही नहीं सकती। कोष्ठबद्ध (कब्ज) अपने में कोई बीमारी नहीं है लेकिन एक परिणाम है। फिर भी कब्ज ही एक ऐसी चीज है जो कई बीमारियों की जननी है।
कोष्ठबद्धता के कारण सिरदर्द, थकान, दमा, मिरगी, नींद का न आना, क्षुधालोप, अफरा, उदरशूल, मधुमेह, मुंह का बेस्वादापन, स्वप्नदोष, पाचनशक्ति का नाश, रक्तहीनता और चिड़चिड़ापन आदि भयानक व्याधियां घेर लेती हैं। भयंकर कब्ज के कारण मलद्वार पर दर्दनाक दरारें पड़ने की संभावना रहती है जिससे गुदा में घाव हो जाते हैं और बवासीर की शिकायत हो जाती है।
कोष्ठबद्धता के कई कारण हैं। कभी कभी मात्र आहार दोष से, सर्दी से, जुकाम, ज्वर आदि की अवस्था में पाखाना साफ नहीं होता। भोजन समय पर न करना, प्रातः उठते ही शौच न जाना, दस्त लाने वाली दवाइयों का आदी होना, अधिक उपवास करना, अफीम आदि नशीली चीजों का सेवन करना, शरीर का क्षीण या रूग्ण होना, गरिष्ठ भोजन करना और अधिक बैठने की प्रवृत्ति ही कोष्ठबद्धता के मुख्य कारण हैं।
कोष्ठबद्धता को दूर करने के लिए आहार की सुव्यवस्था पर विशेष ध्यान रखना चाहिए। नियमित, सामान्य व संतुलित आहार किया जाये तो कब्ज से बचाव किया जा सकता है। हरी तरकारी फल और दूध का सेवन भी लाभप्रद है। समय से शौच जाने की आदत भी इसमें सहायक है। सवेरे शाम खुली हवा में थोड़ा तेजी से टहलना भी इस बीमारी से बचाव करता है।
पालक, बथुआ का रस पीना, त्रिफला का सेवन करना भी उपयोगी है। अधिक कब्ज में तो कभी-कभी एनिमा लेना भी हितकारी है। एनिमा लेने से 12 घण्टे पहले यदि 4 चम्मच एरण्ड तेल ले लें तो मल की गांठें नर्म होकर उदर शुद्धि हो जाती है। व्यायाम व योग से भी कब्ज दूर किया जा सकता है तथा मानसिक तनाव से हमेशा दूर रहना चाहिए।
छिलकों सहित दाल व चोकर सहित आटे की रोटी खाएं। इससे भी कब्ज होने की आंशका नहीं रहती। चाय, काफी, शराब, अफीम आदि नशीली चीजों का सेवन न करें। रात्रि को दूध के साथ ईसबगोल का सेवन लाभप्रद है। इसके अलावा एक तोला सौंफ पानी में डालकर उबालकर पीने से कब्ज नहीं रहती।
एक दर्जन मुनक्का दूध में उबालकर खाने से और ऊपर से वह दूध पीने से भी प्रातः दस्त साफ हो जाता है।
सनाय, सौंफ, सौंठ, बड़ी हरड़ का छिलका दो दो तोले तथा सेन्धा व काला नमक एक एक तोले लेकर कूट पीसकर छान लें। इस चूर्ण में से दो चम्मच चूर्ण रात को सोते समय गर्म जल से सेवन करें।
रात को हरड़ का मुरब्बा गुठली निकालकर एक से तीन फल खाकर, गर्म दूध पीने से भी प्रातः पाखाना साफ हो जाता है।
कोष्ठबद्धता का मुख्य कारण असंतुलित भोजन है, इसलिए अपने भोजन पर विशेष ध्यान देकर इसे होने ही न दें।