अहंकार छोड़कर कन्नड़ बोलें, स्थानीय समुदाय का सम्मान करें : मोहनदास पई

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नयी दिल्ली, छह जून (भाषा) प्रौद्योगिकी निवेशक मोहनदास पई ने भाषा को लेकर जारी विवाद में शामिल होते हुए कहा कि कर्नाटक जैसे राज्य में काम करने वाले पेशेवरों को स्थानीय भाषा सीखनी चाहिए और खासकर सार्वजनिक व्यवहार में इसका इस्तेमाल करना चाहिए।

उन्होंने सार्वजनिक कार्यों से जुड़े कुछ अधिकारियों द्वारा कन्नड़ सीखने से इनकार करने को “अहंकार” करार देते हुए कहा कि इससे अनावश्यक तनाव पैदा होता है, जिसे आसानी से टाला जा सकता है।

हाल के महीनों में बेंगलुरु में कन्नड़ भाषा का मुद्दा चर्चा का विषय बन गया है। पिछले कुछ वर्षों में विभिन्न राज्यों से बेंगलुरु में कामगारों की संख्या में वृद्धि के साथ, स्थानीय लोगों के बीच सार्वजनिक जीवन में भाषा के इस्तेमाल में कमी को लेकर चिंता बढ़ रही है।

पई ने कहा, “बेंगलुरु ऐसी जगह है जहां सबसे ज्यादा स्वागत किया जाता है। स्थानीय आबादी में कन्नड़ बोलने वालों की संख्या केवल 33 प्रतिशत है। बहुत से लोग आए हैं, उन्हें लाभ हुआ है, वे बहुत अच्छा कर रहे हैं…।”

आरिन कैपिटल के चेयरमैन पई ने ‘पीटीआई-भाषा’ को दिए साक्षात्कार में कहा, “अब हमारे सामने छोटी-छोटी समस्याएं हैं, क्योंकि जो लोग बाहर से आते हैं, उनमें से कई अहंकारी हो जाते हैं और कन्नड़ के कुछ शब्द बोलने से इनकार कर देते हैं। कन्नड़ के कुछ शब्द बोलें, स्थानीय समुदाय के प्रति सम्मान दिखाएं। हमें किसी भी समुदाय के प्रति सम्मान दिखाना चाहिए।”

पई ने कहा कि यह दृष्टिकोण हर जगह लागू होता है। चाहे कोई बंगाल जा रहा हो या महाराष्ट्र, स्थानीय भाषा के कुछ शब्द सीखने से बाहरी लोगों को समुदाय से जुड़ने में मदद मिलेगी।

उन्होंने हाल ही में एसबीआई विवाद का जिक्र किया, जिसमें एक बैंक मैनेजर ने कथित तौर पर एक ग्राहक से कन्नड़ में बात करने से इनकार कर दिया था। इस प्रकरण के कारण जनाआक्रोश फैल गया, कन्नड़ समर्थक समूहों ने विरोध प्रदर्शन किया और अंततः बैंक ने आधिकारिक तौर पर माफी मांगी।

इस विवाद पर पई ने कहा कि इस स्थिति से बचा जा सकता था।

उन्होंने कहा, “वह (बैंक प्रबंधक) सेवा क्षेत्र में है, इसलिए वह कहती, सर, मुझे खेद है, मैं भाषा नहीं बोल सकती, मैं सीख रही हूं। मैं अपने सहकर्मी से मदद मांगूंगी और सम्मानपूर्वक व्यवहार करूंगी। बस इतना ही चाहिए था। इसके अलावा और कुछ नहीं।”

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