कर्नाटक मंत्रिमंडल ने राज्य में नए सिरे से जाति आधारित सर्वेक्षण कराने का फैसला किया : सिद्धरमैया

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बेंगलुरु, 12 जून (भाषा) कर्नाटक मंत्रिमंडल ने बृहस्पतिवार को सर्वसम्मति से नया सामाजिक-शैक्षणिक सर्वेक्षण कराने का फैसला किया जिसे राज्य में बोलचाल की भाषा में ‘जातिगत गणना’ कहा जाता है। मुख्यमंत्री सिद्धरमैया ने यह जानकारी दी।

मुख्यमंत्री ने कहा कि कर्नाटक राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग को नया सर्वेक्षण करने और रिपोर्ट सौंपने के लिए 90 दिन का समय दिया जाएगा। उन्होंने, हालांकि सर्वेक्षण की लागत पर कोई टिप्पणी नहीं की।

मुख्यमंत्री सिद्धरमैया ने मंत्रिमंडल की विशेष बैठक के बाद संवाददाताओं से कहा, ‘‘…हमने मंत्रिमंडल में फैसला लिया है। सर्वसम्मति से निर्णय लिया गया कि नया सर्वेक्षण कराया जाए।’’

उन्होंने कहा, ‘‘ सरकार कर्नाटक राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग से विचार विमर्श करेगी…हम नया सर्वेक्षण करने और रिपोर्ट देने के लिए 90 दिन का समय देने जा रहे हैं।’’

राज्य मंत्रिमंडल का यह निर्णय मंगलवार को मल्लिकार्जुन खरगे और राहुल गांधी सहित कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व द्वारा राज्य सरकार को कर्नाटक में नए सिरे से जाति आधारित सर्वेक्षण कराने के निर्देश के बाद आया है ताकि कुछ समुदायों की चिंताओं का समाधान किया जा सके। इन समुदायों ने शिकायत की थी कि 10 साल पहले किए गए सर्वेक्षण में उन्हें शामिल नहीं किया गया था।

मुख्यमंत्री ने कहा कि कर्नाटक राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग अधिनियम की धारा 11(1) के तहत राज्य सरकार को सर्वेक्षण कराना चाहिए, क्योंकि पिछले सर्वेक्षण के दस वर्ष हो चुके हैं।

उन्होंने कहा, ‘‘सभी पहलुओं और कानून पर विचार किया गया। चूंकि कर्नाटक राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग द्वारा सामाजिक-शैक्षणिक सर्वेक्षण के दस वर्ष हो चुके हैं, इसलिए मंत्रिमंडल ने नया सर्वेक्षण कराने का निर्णय लिया है; और अधिनियम की धारा 11(2) के अनुसार इस संबंध में आयोग से परामर्श करने का निर्णय लिया गया है।’’

यह निर्णय ऐसे समय में लिया गया है जब मंत्रिमंडल पहले से ही सरकार को सौंपी गई सामाजिक-शैक्षणिक सर्वेक्षण रिपोर्ट पर विचार कर रहा था, जो 2015 में किए गए सर्वेक्षण पर आधारित थी।

सर्वेक्षण रिपोर्ट पहली बार 11 अप्रैल को मंत्रिमंडल के समक्ष रखी गई थी, जिस पर तीन-चार बैठकों में चर्चा हो चुकी है।

विभिन्न समुदायों, खासकर कर्नाटक के दो प्रमुख समुदायों – वोक्कालिगा और वीरशैव-लिंगायत ने 2015 में किए गए जाति सर्वेक्षण पर कड़ी आपत्ति जताई थी। समुदायों ने इसे ‘अवैज्ञानिक’ बताते हुए, इसे खारिज करने और एक नया सर्वेक्षण कराने की मांग की थी। सत्तारूढ़ कांग्रेस के भीतर से भी इसके खिलाफ आवाजें उठ रही थीं।

सिद्धरमैया से जब पूछा गया कि क्या सरकार ने पिछली सर्वेक्षण रिपोर्ट और उसकी सिफारिशों को वापस ले लिया है, उन्होंने कहा कि (सर्वेक्षण के) दस साल हो गए हैं और कानून कहता है कि दस साल बाद नया सर्वेक्षण किया जाना चाहिए। इसी के अनुसार यह निर्णय लिया गया है।

यह पूछे जाने पर कि क्या सरकार को कानून के बारे में जानकारी नहीं थी और उसे कांग्रेस आलाकमान के निर्देशों का इंतजार करना पड़ा, सिद्धरमैया ने कहा, ‘‘जब मामला चर्चा के लिए आया तो हमने अधिनियम पर गौर किया। इस बीच, आलाकमान ने फोन करके सुझाव दिए।’’

केंद्र सरकार द्वारा अगली जनगणना में जातिगत गणना की घोषणा के बारे में पूछे गए सवाल के जवाब में मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य का सर्वेक्षण केंद्र से अलग होगा, क्योंकि उसने कहीं भी यह नहीं कहा है कि वे सामाजिक-शैक्षणिक सर्वेक्षण करेंगे।

संवाददाताओं ने जब मुख्यमंत्री से पूछा कि क्या राज्य सरकार पार्टी आलाकमान के दबाव के आगे झुक गई है, तो उन्होंने कहा, ‘‘हम आलाकमान के किसी दबाव के आगे नहीं झुके हैं। सरकार ने कानून के मुताबिक काम किया है।’’

सिद्धरमैया ने भाजपा के इस आरोप को भी खारिज कर दिया कि बेंगलुरु भगदड़ के मुद्दे से ध्यान भटकाने के लिए ताजा सर्वेक्षण का मुद्दा उठाया गया है।

मुख्यमंत्री से पूछा गया कि पहले की सर्वेक्षण रिपोर्ट में की गई सिफारिशों, जैसे मुस्लिम आरक्षण को बढ़ाकर आठ प्रतिशत करने, का क्या होगा? इसके जवाब में उन्होंने कहा, ‘‘नए सर्वेक्षण के बाद इसकी पुनः समीक्षा की जाएगी।’’

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