‘न्यायमूर्ति वर्मा के पास महाभियोग से बचने का एकमात्र विकल्प इस्तीफा है’

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नयी दिल्ली, आठ जून (भाषा) न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के पास संसद द्वारा पद से हटाने के लिये चलाई जाने वाली कार्यवाही से बचने का एकमात्र विकल्प इस्तीफा है, क्योंकि सरकार कथित भ्रष्टाचार के मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को हटाने के लिए एक प्रस्ताव लाने पर जोर दे रही है।

उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति और उन्हें हटाने की प्रक्रिया से अवगत अधिकारियों ने बताया कि किसी भी सदन में सांसदों के समक्ष अपना पक्ष रखते हुए न्यायमूर्ति वर्मा यह घोषणा कर सकते हैं कि वह पद छोड़ रहे हैं और उनके मौखिक बयान को उनका इस्तीफा माना जाएगा।

अगर वह इस्तीफा देने का फैसला करते हैं, तो उन्हें सेवानिवृत्त उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के बराबर पेंशन और अन्य लाभ मिलेंगे। लेकिन अगर उन्हें संसद द्वारा हटाया जाता है, तो उन्हें पेंशन और अन्य लाभों से वंचित कर दिया जाएगा।

संविधान के अनुच्छेद 217 के अनुसार, उच्च न्यायालय का कोई न्यायाधीश, राष्ट्रप�ति को संबो�धित अपने हस्ताक्ष�र स�हित पत्र लिखकर अपना पद त्याग सकता है।

न्यायाधीश के त्यागपत्र के लिए किसी अनुमोदन की आवश्यकता नहीं होती। एक साधारण त्यागपत्र ही पर्याप्त है। न्यायाधीश पद छोड़ने के लिए संभावित तिथि बता सकता है। ऐसे मामलों में न्यायाधीश पद पर बने रहने के अंतिम दिन की तिथि के रूप में उल्लिखित दिनांक से पहले अपना त्यागपत्र वापस ले सकता है। संसद द्वारा हटाया जाना न्यायाधीश को पद से हटाने का दूसरा तरीका है।

भारत के तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना ने राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर न्यायमूर्ति वर्मा को हटाने के लिए कहा था, जो नकदी बरामदी से जुड़े विवाद में फंसे हैं।

न्यायमूर्ति खन्ना की रिपोर्ट मामले की जांच करने वाले तीन न्यायाधीशों की आंतरिक समिति के निष्कर्षों पर आधारित थी। सूत्रों ने पहले बताया था कि न्यायमूर्ति खन्ना ने वर्मा को इस्तीफा देने के लिए कहा था, लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया था।

किसी न्यायाधीश को पद से हटाने से संबंधित प्रस्ताव संसद के दोनों सदनों में से किसी में भी लाया जा सकता है। प्रस्ताव पर राज्यसभा में कम से कम 50 सदस्यों को हस्ताक्षर करने होते हैं। लोकसभा में 100 सदस्यों को इसका समर्थन करना होता है।

न्यायाधीश (जांच) अधिनियम, 1968 के अनुसार, जब किसी न्यायाधीश को हटाने का प्रस्ताव किसी भी सदन में स्वीकार कर लिया जाता है, तो अध्यक्ष या सभापति, जैसी भी स्थिति हो, तीन-सदस्यीय एक समिति का गठन करेंगे, जो उन आधारों की जांच करेगी, जिनके आधार पर उन्हें हटाने की मांग की गई है।

समिति में भारत के प्रधान न्यायाधीश या उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश, 25 उच्च न्यायालयों में से किसी एक के मुख्य न्यायाधीश और एक ‘प्रतिष्ठित न्यायविद’ शामिल होते हैं।

संसदीय कार्य मंत्री किरेन रीजीजू ने पिछले सप्ताह कहा था कि मौजूदा मामला ‘थोड़ा अलग’ है, क्योंकि तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश खन्ना द्वारा गठित आंतरिक समिति पहले ही अपनी रिपोर्ट सौंप चुकी है। उन्होंने कहा, ‘‘इसलिए इस मामले में क्या करना है, हम इस पर फैसला लेंगे।’’

मंत्री ने कहा कि प्रक्रिया का पालन किया जाना चाहिए लेकिन पहले से की गई जांच को कैसे एकीकृत किया जाए, इस पर निर्णय लेने की जरूरत है।

रीजीजू ने कहा कि नियम के अनुसार एक समिति का गठन किया जाना चाहिए और फिर समिति को एक रिपोर्ट प्रस्तुत करनी होती है, जिसे सदन में पेश किया जाएगा और न्यायाधीश को पद से हटाने के प्रस्ताव पर चर्चा शुरू होगी।

उन्होंने कहा कि इस मामले में संसद द्वारा नहीं, बल्कि पहले से ही एक समिति का गठन किया गया है। इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता, क्योंकि इसका गठन प्रधान न्यायाधीश ने किया था।

न्यायाधीश (जांच) अधिनियम के तहत एक समिति का गठन अनिवार्य रूप से किए जाने से जुड़े सवालों का जवाब देते हुए रीजीजू ने कहा कि इस संबंध में लोकसभा अध्यक्ष निर्णय लेंगे।

उन्होंने कहा कि आंतरिक समिति की रिपोर्ट और कानून के तहत रिपोर्ट का मिलान करना ‘गौण मामला’ है। प्राथमिक उद्देश्य पद से हटाने का प्रस्ताव लाना है। संसद का मानसून सत्र 21 जुलाई से शुरू होकर 12 अगस्त को समाप्त होगा।

मार्च में राष्ट्रीय राजधानी स्थित न्यायमूर्ति वर्मा के आवास पर आग लगने की घटना हुई थी, इस दौरान उनके आवासीय परिसर के बाहरी हिस्से से नकदी की कई जली हुई बोरियां पायी गई थीं। इस घटना के समय न्यायमूर्ति वर्मा दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में कार्यरत थे।

हालांकि, न्यायाधीश ने नकदी को लेकर अनभिज्ञता जाहिर की थी, लेकिन उच्चतम न्यायालय द्वारा गठित समिति ने कई गवाहों से पूछताछ और उनके बयान दर्ज करने के बाद उन्हें आरोपित किया था।

उच्चतम न्यायालय ने उन्हें उनके मूल उच्च न्यायालय, इलाहाबाद उच्च न्यायालय में स्थानांतरित कर दिया था, जहां उन्हें कोई न्यायिक कार्य नहीं सौंपा गया है।

इसके पहले, उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश वी रामास्वामी और कलकत्ता उच्च न्यायालय के न्यायाधीश सौमित्र सेन को पद से हटाने की कार्यवाही शुरू की गई थी, लेकिन उन्होंने इस्तीफा दे दिया था। न्यायमूर्ति वर्मा को पद से हटाने की कार्यवाही संसद के मानसून सत्र में शुरू की जाएगी। नए संसद भवन में किसी न्यायाधीश को पद से हटाने से जुड़ी यह पहली कार्यवाही होगी।

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