
डा.वेदप्रकाश
विगत दिनों वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने सिंगल यूज प्लास्टिक के इस्तेमाल को रोकने के लिए एक राष्ट्र-एक मिशन नाम से देशव्यापी अभियान शुरू किया है। इसमें देशभर के सभी सार्वजनिक स्थलों जैसे समुद्र और नदियों के तटों, पार्कों, पर्यटन स्थलों, रेलवे स्टेशन व ग्रामीण क्षेत्रों में स्वच्छता अभियान चलाए जाएंगे। इस अभियान के अंतर्गत सिंगल यूज प्लास्टिक के इस्तेमाल को लेकर लोगों को जागरूक किया जाएगा। जन जागरण हेतु इंटरनेट मीडिया, नुक्कड़ नाटक, सार्वजनिक संकल्प, पोस्टर और निबंध प्रतियोगिता तथा मैराथन जैसी गतिविधियां भी आयोजित की जाएंगी। सर्वविदित है कि सिंगल यूज प्लास्टिक आज जीवन के लिए खतरा बनता जा रहा है। सिंगल यूज प्लास्टिक के अंतर्गत पानी की बोतलें, डिस्पेंसिंग कंटेनर्स, बिस्कुट ट्रेज, बैग्स, कंटेनर्स, फूड पैकेजिंग फिल्म, शैंपू की बोतलें, दूध एवं विभिन्न प्रकार के जूस की बोतलें, आइसक्रीम कंटेनर्स, चिप्स के रैपर्स, पान, तंबाकू और गुटके के रैपर्स, गली गली में बिकने वाले अन्य विभिन्न प्रकार के नमकीन व उत्पाद, बोतलों के ढक्कन, नेल पॉलिश के ढक्कन, विभिन्न प्रकार के स्ट्रॉ, डिस्पोजेबल चम्मच, प्लेट, कप, फल, सब्जियां और दूसरे सामानों के लिए प्रयोग की जाने वाली थैलियां आदि सम्मिलित हैं। ये सभी उत्पाद अलग-अलग श्रेणी के प्लास्टिक से तैयार किए जाते हैं। इन्हें एक बार प्रयोग करके फेंक दिया जाता है और यह प्लास्टिक सैकड़ों वर्षों तक भी नहीं गलता।
आंकड़ों के अनुसार भारत में प्रतिदिन लगभग 26 हजार टन प्लास्टिक कचरा पैदा होता है और हजारों टन कचरा ऐसा भी है जो एकत्र ही नहीं किया जाता। खुले में पड़े और सेनेटरी लैंड फील्ड पर पहुंचे इस प्लास्टिक कचरे को अनेक बार जला दिया जाता है जो खतरनाक वायु प्रदूषण का कारण बनता है। आंकड़े बताते हैं कि पूरे विश्व में प्रतिवर्ष लगभग 40 करोड़ टन से अधिक प्लास्टिक कचरे का उत्पादन होता है जिसमें से लगभग 5.2 लाख टन कचरा या तो जला दिया जाता है या खुले में फेंक दिया जाता है। अनेक देशों में इसके एकत्रीकरण एवं निस्तारण की समुचित व्यवस्थाएं नहीं हैं। लगभग 15 प्रतिशत वैश्विक आबादी की प्लास्टिक कचरा संग्रहण तक पहुंच ही नहीं है। लीड्स यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों के वर्ष 2020 के आंकड़ों के अनुसार भारत एक वर्ष में लगभग 93 लाख टन प्लास्टिक कचरे का उत्पादन करके शीर्ष पर है। वर्ष 2023 के ग्लोबल सेंटर फॉर गुड गवर्नेंस इन टोबैको कंट्रोल के एक अध्ययन में यह सामने आया कि सिगरेट से होने वाले प्लास्टिक प्रदूषण से प्रतिवर्ष 26 अरब डॉलर का नुकसान होता है। इस प्रदूषण में 20 प्रतिशत हिस्सा अकेले चीन का है क्योंकि सिगरेट पीने वालों के वैश्विक आंकड़ों का एक तिहाई हिस्सा चीन में हैं और 98 प्रतिशत सिगरेट फिल्टर प्लास्टिक फाइबर से बने होते हैं। यह प्लास्टिक फाइबर गैर बायोडिग्रेडेबल होते हैं। अधिकांश लोग धूमपान करने के बाद उसे यहां वहां फेंक देते हैं जिससे उसमें विद्यमान प्लास्टिक व जहरीले रसायन पर्यावरण में पहुंचकर मिट्टी और पानी को प्रदूषित करते हैं।
वर्ष 2019 में छपे एक समाचार के अनुसार दुनिया की 10 बड़ी नदियों से होकर प्रतिवर्ष 80 लाख टन प्लास्टिक कचरा सीधे समुद्र में पहुंचता है। नदियों और समुद्र में मछलियां एवं अन्य जीव इन्हें खा लेते हैं और फिर उन जीवों को मनुष्य खाता है। इस प्रकार मनुष्य के शरीर में भी प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से प्लास्टिक के हजारों सूक्ष्म कण जमा होते चले जाते हैं। प्लास्टिक उत्पादों को जलाने, मिट्टी में फेंकने अथवा जल स्रोतों में जाने से प्रदूषण फैलता है जो खतरनाक बीमारियों का कारण बनता है। प्लास्टिक प्रदूषण से कैंसर, श्वास संबंधित रोग, त्वचा रोग, प्रजनन और जन्म दोष, सिर दर्द एवं स्मरण क्षमता में कमी आदि देखे जा सकते हैं। छोटे बच्चों, वृद्धों एवं बीमारों को यह प्रदूषण अधिक प्रभावित करता है।
सिंगल यूज प्लास्टिक ग्लोबल वार्मिंग का भी एक बड़ा कारक है। भारत जैसे देश में जहां जनसंख्या सर्वाधिक है अनेक स्थानों पर पॉलिथीन एवं अन्य उत्पादों की वैध एवं अवैध फैक्ट्रियां चल रही हैं। कचरा प्रबंधन भी समुचित नहीं है। सस्ते प्लास्टिक से बने खिलौने एवं अन्य उत्पाद बाजारों में खूब उपलब्ध हैं। यद्यपि सिंगल यूज प्लास्टिक के संबंध में नियम बने हैं लेकिन धरातल पर नहीं उतर पाए। भारत में वर्ष 2016 प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स के अंतर्गत राज्यों के सभी स्थानीय निकायों को ऐसी आधारभूत सुविधाएं विकसित करने पर जोर दिया गया जिससे प्लास्टिक कचरे को अलग किया जा सके, उन्हें एकत्र और प्रोसेसिंग करके खत्म किया जा सके। वर्ष 2018 में इस नियम में संशोधन हुआ और निर्माता की जवाबदेही भी तय की गई। फिर यह नियम लागू क्यों नहीं किए गए? क्या इन नियमों का उल्लंघन प्रकृति- पर्यावरण और प्रत्येक जीवधारी के जीवन से खिलवाड़ नहीं है?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विगत कई वर्षों से मन की बात एवं विभिन्न मंचों से प्लास्टिक का प्रयोग न करने का आवाह्न कर रहे हैं, फिर भी स्थिति यथावत है। ज्ञात हो कि भारत सरकार ने 01 जुलाई 2022 से सिंगल यूज प्लास्टिक से बने पान, गुटका, तंबाकू के रैपर, स्ट्रो, कप, प्लेट, चम्मच आदि 19 प्रकार की वस्तुओं पर प्रतिबंध लगा दिया है। इसके अंतर्गत इनके निर्माण, आयात, भंडारण, वितरण, बिक्री और उपयोग पर प्रतिबंध है लेकिन आज भी ऐसी अनेक वस्तुओं और उत्पादों का निर्माण और बाजार में उनकी बिक्री जारी है। ऐसे लोगों पर कार्रवाई क्यों नहीं होती अथवा कब होगी? सिंगल यूज प्लास्टिक को लेकर जन भागीदारी और जन जागरूकता बहुत आवश्यक है।
ध्यान रहे विभिन्न प्रकार की समस्याओं के समाधान भारतीय जीवन पद्धति में हैं। परंपरा से भारतीय समाज मिट्टी के बर्तन, जूट एवं कपड़े के थैलों, घर के कटोरी, प्लेट, चम्मच आदि बर्तनों का प्रयोग करता रहा है लेकिन वर्ष 1980-2000 के दशकों में प्लास्टिक उत्पादन और प्रयोग में तेजी आई। व्यावसायिक हित और अधिक लाभ की इच्छा के चलते विज्ञापनों के द्वारा प्लास्टिक उत्पादों एवं थालियों आदि का व्यापक प्रचार प्रसार होने से सामान्य व्यक्ति उसके उपयोग की ओर बढ़ने लगा। आज सिंगल यूज प्लास्टिक की थैलियां और अन्य उत्पाद बनाने वाली जो फैक्ट्रियां चल रही हैं वे सामान्य लोगों की नहीं हैं अपितु पूंजीपतियों एवं रसूखदारों की हैं। ऐसे लोगों पर कार्रवाई क्यों नहीं होती? एक राष्ट्र-एक मिशन अभियान की सार्थकता तब है जब वह बदलाव का वाहक बने। मंत्रालय दृढ़ इच्छा शक्ति से सिंगल यूज प्लास्टिक का निर्माण और बिक्री बंद करे। इसके लिए यह भी आवश्यक है कि इन उत्पादों के विकल्पों की उपलब्धता एवं योजना भी सुनिश्चित की जाए। यह अभियान प्रकृति- पर्यावरण एवं जीवन की चिंता से उपजा है इसलिए केवल फोटो प्रदर्शनी तक ही सीमित न रहे।
आज जल,थल एवं नभ सर्वत्र भिन्न-भिन्न रूपों में प्लास्टिक फैल चुका है। प्रकृति पर्यावरण एवं जीवन की रक्षा के लिए यह आवश्यक है कि सिंगल यूज प्लास्टिक का निर्माण बिक्री एवं उपयोग तत्काल रोका जाए। इसके लिए जन जागरूकता के साथ-साथ कठोर दंड का प्रविधान भी होना चाहिए।
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