योग: शून्य से पूर्णता की ओर – भारत की आत्मा से निकली वैश्विक क्रांति

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21 जून की भोर जब सूर्य की पहली किरण धरती को छूती है तो यह सिर्फ एक नए दिन की शुरुआत नहीं होती। यह एक प्राचीन विज्ञान के पुनर्जन्म का प्रतीक है, वह विज्ञान, जिसे “योग” कहते हैं। यह विज्ञान भारत की मिट्टी में जन्मा, लेकिन अब पूरे विश्व की चेतना में बह रहा है।

 

आज जब दुनिया तकनीक, तनाव और थकावट के बीच उलझ गई है, योग उस मौन शक्ति की तरह उभरा है जो हमें फिर से अपने भीतर झांकने की प्रेरणा देता है।

 

योग : शरीर नहीं, चेतना का विस्तार

 

आज भी बहुत लोग योग को सिर्फ शरीर को लचीला बनाने वाली क्रिया समझते हैं पर असल में योग न तो केवल कसरत है, न कोई फैशन।

योग एक विज्ञान है। वह विज्ञान जो मन, शरीर और आत्मा को एक लय में लाता है।

“योग” शब्द “युज” से निकला है, जिसका अर्थ है — जोड़ना।

यह हृदय को आत्मा से जोड़ता है,

श्वास को ब्रह्मांड की ऊर्जा से जोड़ता है,

और अंततः मनुष्य को स्वयं से जोड़ता है।

 

जब भारत बोला और विश्व ने सुना

 

2014 में संयुक्त राष्ट्र महासभा में जब भारत ने विश्व योग दिवस के लिए प्रस्ताव रखा तो 193 में से 177 देशों ने समर्थन किया। यह इतिहास में अभूतपूर्व था।

कोई भी विचार तभी वैश्विक बनता है जब उसमें मानवता की गहराई हो। और योग में वह शक्ति थी।

यह भारत की सभ्यता नहीं, बल्कि सांस्कृतिक आत्मा का प्रसार था।

 

21 जून : दिन नहीं, दिशा है

 

क्या आपने सोचा है कि विश्व योग दिवस के लिए 21 जून ही क्यों?

यह दिन वर्ष का सबसे लंबा दिन होता है जब प्रकाश सबसे ज्यादा होता है।

यह प्रतीक है उस “आंतरिक प्रकाश” का, जो योग से हमें प्राप्त होता है।

जिस तरह सूरज बाहर रोशनी करता है,

वैसे ही योग भीतर रोशनी करता है।

इस दिन हम अपने भीतर के अंधकार से बाहर आने की प्रतिज्ञा करते हैं।

 

योग : आज की दुनिया की सबसे बड़ी ज़रूरत

 

विकास की दौड़ में आज मनुष्य सब कुछ पा रहा है, सिवाय शांति के।

मोबाइल में सारी दुनिया है, लेकिन मन में खालीपन है।

इंस्टाग्राम में मुस्कान है, लेकिन आंखों में थकावट है।

कॉर्पोरेट ऑफिस में पद है, लेकिन रातों में नींद नहीं है।

यहाँ योग एक “उपाय” नहीं, बल्कि “उद्धार” है।

प्राणायाम, ध्यान और योगासन सिर्फ अभ्यास नहीं,

वो जीवनशैली हैं जो व्यक्ति को टूटने से बचाती हैं।

 

कोरोना से योग तक : सांस ने दी सीख

 

जब अस्पतालों में जगह नहीं थी, लोग अपनों को खो रहे थे।

तब बहुतों ने सीखा कि सांस को संभालना ही जीवन को संभालना है।

अनुलोम-विलोम और कपालभाति जैसे अभ्यासों ने लोगों को मानसिक संतुलन, फेफड़ों की ताकत और जीवन के प्रति आस्था दी।

योग केवल शरीर नहीं बचाता, मन और आत्मा को भी थामता है।

 

भारत : योग का जनक लेकिन क्या हम खुद अभ्यास करते हैं?

 

दुखद पक्ष यह है कि जिस भारत ने योग दुनिया को दिया, वहां आज भी बहुत लोग इससे दूर हैं।

शहरों में तो योग “फैशन” बन गया, लेकिन गांवों और कस्बों में यह अभी भी उपेक्षित है।

हमें इसे धर्म, संप्रदाय या पार्टी से हटकर एक “राष्ट्रीय दायित्व” की तरह अपनाना होगा।

 

युवा और योग : खोई हुई दिशा की खोज

 

आज का युवा बेहद तेज है, लेकिन बहुत उलझा हुआ भी।

उसकी उंगलियाँ मोबाइल पर दौड़ती हैं,

लेकिन मन की दौड़ असमाप्त रहती है।

योग उन्हें वह विराम देता है, जिसमें वे फिर से स्वयं को खोज सकते हैं।

शिक्षा व्यवस्था में योग को वैकल्पिक नहीं, आवश्यक बनाना अब समय की मांग है।

 

योग पर्यटन : भारत की नई शक्ति

 

आज दुनिया भर से लोग भारत आते हैं।

ताजमहल नहीं, आत्मिक ताजगी पाने।

ऋषिकेश, केरल, काशी, मैसूर…। ये अब आध्यात्मिक पर्यटक केंद्र बन चुके हैं।

भारत के पास परमाणु बम भी है, लेकिन हमारी असली शक्ति है – “योग बम” जो बिना विनाश के, पूरी मानवता को बदल सकता है।

 

निष्कर्ष : योग केवल एक दिन नहीं, हर दिन है

 

21 जून पर योग करना अच्छा है, लेकिन उससे भी ज़्यादा ज़रूरी है – हर दिन, हर सांस में योग को जीना।

योग हमें सिखाता है कि हम शरीर नहीं, चेतना हैं।

हम संघर्ष नहीं, शांति हैं।

हम सीमित नहीं, अनंत हैं।

आइए, इस योग दिवस पर संकल्प लें – 

कि योग केवल चटाई पर नहीं, हमारे व्यवहार, रिश्तों, सोच और दृष्टिकोण में भी हो।

क्योंकि जब व्यक्ति बदलता है, तब समाज बदलता है और योग वह पहला कदम है।

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