यह एक बेल है जो हमें जीवन प्रदान करने की क्षमता रखती हैं। यदि इस का सेवन चलता रहे तो व्याधियां स्वयं भाग खड़ी होती हैं। विद्वान कहते हैं कि गिलोय को किसी न किसी रूप में लेते रहने वाले व्यक्ति की अकाल मृत्यु नहीं होती। रोगों से बचाए रखती है यह बेल। यह ऐसी आरोही बेल है जो लम्बे समय तक जीवित रहती है ताकि मनुष्य जाति को भी जीवित रख सके। इस बेल पर फूल आने का समय है अप्रैल, मई तथा फल आने का समय है मई। गिलोय का काढ़ा/रस कड़वा होता है, इतना भी कड़वा नहीं कि पीने में कठिनाई हो। विभिन्न रोगों में गिलोय का प्रयोग विभिन्न विधियों से करना होता है। फिर भी यदि इस का चूर्ण, क्वाथ, स्वरस तथा सत्व में से जो सुलभ हो पाएं, वह भी फायदा देता है। कुछ उपचार आप भी जानिए गिलोय से। . कामला रोग में गिलोय का स्वरस लेना बेहतर रहता है। . वात ज्वर की शिकायत होने पर गिलोय का काढ़ा लें। . वातरक्त में भी गिलोय का चूर्ण, काढ़ा या सत्व लें। औषधीय गुण जरूरी प्रभाव दिखाएगा। . यदि किसी को विषम ज्वर हो तो वह इस का स्वरस लेना शुरू करें। . कुष्ठ रोग में इस की जड़ को प्रयोग में लाएं। . जीर्ण ज्वर में इस बेल की जड़ का काढ़ा दें। . प्रमेह में इस बेल की उपयोगिता सराहनीय रहती है। स्वरस लें या काढ़ा। . मात्राएं चूर्ण 1 से 3 ग्राम, क्वाथ 3 से 8 तोला, भार कम करने के लिए इस बेल के छोटे-छोटे टुकड़ों का काढ़ा बना कर लें। बेल को काट कर टुकड़े सुखा लें तथा जब तक चाहें प्रयोग करते रहें। . जोड़ों के दर्द में इस बेल का काढ़ा फायदा करता है। . मधुमेह में भी गिलोय का सेवन करना ठीक रहता है। चाहे किसी रूप में लें, फायदा करता है।