गंगा दशहरा : मां गंगा के धरती पर “अवतरण” का पर्व

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Ganga-Dussehra-2025

मां गंगा में पवित्र स्नान का पर्व। दशों दिशाओं के शुभ होने से शुभ कार्य का पर्व। हिंदू धर्म में दान और पुण्य का पावन पर्व। और पतित पावनी मां गंगा के पृथ्वी पर अवतरण का पर्व। देश और दुनिया में हर साल ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को गंगा दशहरा के रूप में मनाया जाता है। ब्रह्म पुराण व वाराह पुराण के अनुसार ज्येष्ठ मास के दशमी तिथि को हस्त नक्षत्र में गर करण, वृष के सूर्य व कन्या के चन्द्रमा में गंगा धरती पर अवतरित हुई थी। सप्तमी को स्वर्ग से आने के बाद तेज वेग को थामने के लिए भगवान शिव ने अपनी जटाओं में मां गंगा को धारण किया। जिसके बाद ज्येष्ठ महीने की दशमी को जटाओं से पृथ्वी पर अवतरित किया था। इस मुहूर्त में स्नान, दान व मंत्र जाप का पूर्ण शुभ फल प्राप्त होता है। इस खास दिन पर मां गंगा और शिवजी की पूजा-उपासना से जाने-अनजाने में हुए कष्टों से छुटकारा मिलता है।

      पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक गंगा दशहरा मनाने की परंपरा मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम के वंशजों से जुड़ी है। राजा सगर की दो रानियां केशिनी और सुमति की कोई संतान नहीं थी। संतान प्राप्ति के लिए दोनों रानियां हिमालय में भगवान की पूजा अर्चना और तपस्या में लग गईं। तब ब्रह्मा के पुत्र महर्षि भृगु ने उन्हें वरदान दिया कि एक रानी से राजा को 60 हजार अभिमानी पुत्र की प्राप्ति होगी। जबकि, दूसरी रानी से एक पुत्र की प्राप्ति होगी। केशिनी ने एक पुत्र को जन्म दिया, जबकि सुमति के गर्भ से एक पिंड का जन्म हुआ। उसमें से 60 हजार पुत्रों का जन्म हुआ। एक बार राजा सगर ने अपने यहां पर एक अश्वमेघ यज्ञ करवाया। राजा ने अपने 60 हजार पुत्रों को यज्ञ के घोड़े को संभालने की जिम्मेदारी सौंपी। लेकिन देवराज इंद्र ने छलपूर्वक 60 हजार पुत्रों से घोड़ा चुरा लिया और कपिल मुनि के आश्रम में बांध दिया।

     सुमति के 60 हजार पुत्रों को घोड़े के चुराने की सूचना मिली तो सभी घोड़े को ढूंढने लगे।  तभी वह कपिल मुनि के आश्रम पहुंचे। कपिल मुनि के आश्रम में उन्होंने घोड़ा बंधा देखा तो आक्रोश में घोड़ा चुराने की निंदा करते हुए कपिल मुनि का अपमान किया।  यह सब देख तपस्या में बैठे कपिल मुनि ने जैसे ही आंख खोली तो आंखों से ज्वाला निकली,जिसने राजा के 60 हजार पुत्रों को भस्म कर दिया। इस तरह राजा सगर के सभी 60 हजार पुत्रों का अंत हो गया और उनकी अस्थियां कपिल मुनि के आश्रम में ही पड़ी रही। राजा सगर जानते थे कि उनके पुत्रों ने जो किया है, उसका परिणाम यही होना था। लिहाजा सभी के मोक्ष के लिए कोई उपाय खोजने बेहद जरूरी था। मोक्षदायिनी गंगा के द्वारा ही सभी पुत्रों की मुक्ति संभव थी। इसलिए राजा सागर सहित उनके वंश के अन्य राजाओं द्वारा पवित्र गंगा मैया को धरती पर लाने के प्रयास शुरू हुए।

        पौराणिक मान्यता के अनुसार राजा सगर के वंशज भगीरथ ने अपनी तपस्या से मां गंगा को धरती पर अवतरित कराया था।  गंगा जब पहली बार मैदानी क्षेत्र में दाखिल हुई, तब जाकर हजारों सालों से रखी राजा सगर के पुत्रों की अस्थियों का विसर्जन हो पाया और राजा सगर के पुत्रों को मुक्ति मिली। यही कारण है कि आज भी देश के कोने-कोने से लोग अस्थि विसर्जन और कर्मकांड करने के लिए हरिद्वार आते हैं। यही नहीं  हिंदू धर्म में गंगा दशहरा के दिन दान और गंगा स्नान का बड़ा महत्व है। शास्त्रों के अनुसार गंगा में स्नान करने से सभी प्रकार के पाप, दोष, रोग और विपत्तियों से मुक्ति मिलती है।  वहीं,  मान्यता यह भी है कि गंगा दशहरा पर अन्न, भोजन और जल समेत आदि चीजों का दान करता है तो उसे अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। दशहरा पर्व पर गंगा स्नान के माध्यम से 10 तरह के पापों की मुक्ति का विधान शास्त्रों में है।

     गंगा दशहरा पर पितरों के लिए दान का विशेष महत्व है। इस दिन पितरों के नाम से दान करने से उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है। वहीं इस दिन गरीबों और जरूरतमदों को फल, जूता, चप्पल, छाता, घड़ा और वस्त्र दान करने का भी विधान है।  आचार्य पंडित श्याम सुंदर शर्मा बताते हैं कि इस बार सबसे खास बात यह है कि गंगा दशहरा पर चार शुभ संयोग बन रहे हैँ। इस दिन गंगा स्नान, दान-पुण्य और पूजन करने से दस प्रकार के पापों से मुक्ति मिलती है। प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व उठकर गंगा या किसी पवित्र नदी में स्नान करें। यदि संभव जल तीर्थ जाना संभव न हो तो घर में गंगाजल मिलाकर स्नान करें। इसके बाद  मां गंगा का ध्यान करते हुए मंत्रों का जाप करें।

       पतित पावनी गंगा को मोक्ष दायिनी कहा गया है। इसी वजह से मान्यता है कि गंगा में डुबकी लगाने से मनुष्य को मरने के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है। वहीं, उसके पूर्वजों को भी शांति और मोक्ष की प्राप्ति होती है। गंगा दशहरा के दिन सभी गंगा मंदिरों में भगवान शिव का अभिषेक किया जाता है। वहीं,इस दिन मोक्षदायिनी गंगा मैया का विधिवत पूजन-अर्चना भी किया जाता है। गंगा दशहरे के दिन श्रद्धालु जन जिस भी वस्तु का दान करें उनकी संख्या दस होनी चाहिए और जिस वस्तु से भी पूजन करें उनकी संख्या भी दस ही होनी चाहिए। ऎसा करने से शुभ फलों में और अधिक वृद्धि होती है। गंगा दशहरे का फल ज्येष्ठ शुक्ल दशमी के दिन गंगा स्नान करने से व्यक्ति के दस प्रकार के पापों का नाश होता है। इन दस पापों में तीन पाप कायिक, चार पाप वाचिक और तीन पाप मानसिक होते हैं इन सभी से व्यक्ति को मुक्ति मिलती है।

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