
यह एक विरोधाभास ही है कि एक तरफ तो लोग स्वास्थ्य को लेकर ज्यादा सचेत हो रहे हैं। दूसरी तरफ ई डी यानी कि ईटिंग डिस्आर्डर की समस्या भी बढ़ने लगी है।
शुरूआती दौर में ये मामूली तौर से भूख से थोड़ा ज्यादा या कम खाने से होती है जो कि धीरे-धीरे एक्सट्रीम होने लगती है।
ई.डी मुख्यतः तीन श्रेणी में बांटे जा सकते हैं पहला एनोरेक्सिया, दूसरा बुलिमिया और तीसरा है बिंज ईटिंग।
एनोरेक्सिया:- कई लड़कियां जीरो फिगर के क्रेज में जरा भी वजन बढ़ने नहीं देना चाहती। मोटी लड़कियों के लिए तो ठीक है कि वे वजन घटाकर सामान्य वजन कर लें लेकिन सामान्य से 15 फीसदी वजन कम होने पर भी वजन कम करने की झख सवार हो तो हम कह सकते हैं कि वह एनोरेक्सिया से पीड़ित है। ऐसे में भूखे रहकर वजन कम करने के फेर में पीड़िता अपने स्वास्थ्य से खिलवाड़ कर बीमारियों को आमंत्राण दे देती है। कमजोरी से इम्यून सिस्टम पर बुरा असर पड़ता है। शरीर की ऊर्जा घटती है, चेहरे की रौनक गायब हो जाने से पीड़िता टी. बी. की मरीज नजर आने लगती है।
पतली कमर वाली माडल जैसी बनने के लिए वो जरूरत से ज्यादा एक्सरसाइज कर खुद को भूखा रख संतुष्ट नहीं होती बल्कि वजन कम करने की नुकसानदेह गोलियां गटकती है या फिर खाया पिया ही उलटने का नियम बना लेती है।
दुबलेपन की सनक के चलते वे डायरी में कैलोरीज नोट करती हैं, इंटरनेट पर वजन घटाने के उपाय सर्च करती हैं और उस विषय से संबंधित तमाम किताबें खंगालती रहती हैं।
इसका न केवल उनके शरीर पर बुरा असर पड़ता है बल्कि मानसिक रूप से भी वे अवसाद और तनाव से घिर जाती हैं । नींद ठीक से नहीं आती, मिजाज में चिड़चिड़ापन और धैर्य की कमी आ जाती है।
परामर्श:- पीड़िता को साइकोलाजिकल ट्रीटमेंट दिलवाएं। उसके मन से मोटे होने का वहम निकालने की कोशिश करें। वहम निकलने पर ही घर वाले उसे पौष्टिक भोजन करने के लिए मना सकेंगे। डिप्रेशन के लिए मनो चिकित्सक मूड स्टेबलाइजर या ऐंटीडिप्रेसेंट दवाएं देते हैं। वे जैसा भी उचित समझेंगे, वही ट्रीटमेंट देंगे।
बुलिमिया:- विलपावर के न होने से मरीज का ‘क्या करें, कंट्रोल ही नहीं होता’ की तर्ज पर ओवर ईटिंग का कार्यक्रम चलता रहता है, फिर गलती महसूस होने पर वो उसे उलट देता है। यह उसका सेकंड नेचर बन जाता है। शुक्र है कि यह दौर लंबे समय तक नहीं रहता लेकिन जब तक यह समस्या रहती है मरीज का हाल बुरा रहता है।
गला सूखना तथा खराब रहना, दांतों का पीलापन, पेट में एसिडिटी रहना। डिहाइडेªशन तथा मूडी होना साथ ही वजन ज्यादा बढ़ना, ये सब प्राब्लम्स आने लगती हैं।
परामर्श:- क्योंकि यह खाते रहने का रोग है, रोग बढ़ने की स्थिति में भूख कम करने की दवा का इसमें फिर प्रयोग होता है लेकिन यह बाद की बात है। इनिशियल स्टेज में सलाह से भी काम चल जाता है। यह एनोरेक्सिया के मुकाबले जल्दी क्योर हो जाता है। इससे संबंधित लक्षण जैसे बाल झड़ना, कब्ज, दांतों में प्राॅब्लम होने पर उसी के अनुसार इलाज किया जाता है।
बिंज ईटिंग:- तरह-तरह की चीजें खाने के शौकीन लोगों में बिंज ईटिंग समस्या बन जाती है। वे पेट भरने के लिये नहीं बल्कि स्वाद और मजे के लिए छिटुर-पुटर चीजें खाते रहते हैं। टी वी के आगे बैठ गए तब कुछ स्नैक्स आदि रख लिए। फ्रिज खोला तो सामने कुछ टेस्टी सी चीज दिखी तो वो खा ली। खा पीकर कहीं सोशल विजिट पर गए। सामने जो स्नैक्स रखे गए, उन पर हाथ साफ किया। इस तरह पेट पर लगातार अत्याचार करते रहने पर उन में अपराध बोध भी रहने लगता है। क्योंकि वे जानते हैं कि ऐसा करना बीमारियों को बुलाना है जैसे ब्लडप्रेशर और कोलेस्ट्राल बढ़ना, जोड़ों में दर्द सूजन, सांस की तकलीफ और वजन बढ़ना इत्यादि।
परामर्श:- यह प्राॅब्लम मनोवैज्ञानिक है इसलिए इसका उपचार भी मन से जुड़ा है। कई लोग तनाव के चलते ऐसा करते हैं। खाते रहने से उनका डायवर्जन होता है वो संतुष्ट महसूस करते हैं। कुछ देर के लिये ही सही वे अपनी परेशानियां तकलीफें भूल जाते हैं। इसे इमोशनल ईटिंग कह सकते हैं।
इस तरह की ईटिंग में इनडल्ज करने के पहले खाने वाले को इसके बुरे परिणाम पर भी ध्यान देना चाहिए। आत्मनियंत्राण ही ऐसे में काम आ सकता है।
घर में तरह-तरह के स्नैक्स लाएं ही नहीं, ऐसे में न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी।
यह आदत की बात है। अगर बैलेंस्ड डायट लेंगे और जबर्दस्ती की भूख को समझ कर उसे मारना सीख लेंगे जैसे पानी पीकर या सेलड, फल इत्यादि लो कैलोरी चीजों का सेवन कर तो ईटिंग डिस्आॅर्डर से होने वाले नुकसान से बच सकेंगे।
शुरूआती दौर में ये मामूली तौर से भूख से थोड़ा ज्यादा या कम खाने से होती है जो कि धीरे-धीरे एक्सट्रीम होने लगती है।
ई.डी मुख्यतः तीन श्रेणी में बांटे जा सकते हैं पहला एनोरेक्सिया, दूसरा बुलिमिया और तीसरा है बिंज ईटिंग।
एनोरेक्सिया:- कई लड़कियां जीरो फिगर के क्रेज में जरा भी वजन बढ़ने नहीं देना चाहती। मोटी लड़कियों के लिए तो ठीक है कि वे वजन घटाकर सामान्य वजन कर लें लेकिन सामान्य से 15 फीसदी वजन कम होने पर भी वजन कम करने की झख सवार हो तो हम कह सकते हैं कि वह एनोरेक्सिया से पीड़ित है। ऐसे में भूखे रहकर वजन कम करने के फेर में पीड़िता अपने स्वास्थ्य से खिलवाड़ कर बीमारियों को आमंत्राण दे देती है। कमजोरी से इम्यून सिस्टम पर बुरा असर पड़ता है। शरीर की ऊर्जा घटती है, चेहरे की रौनक गायब हो जाने से पीड़िता टी. बी. की मरीज नजर आने लगती है।
पतली कमर वाली माडल जैसी बनने के लिए वो जरूरत से ज्यादा एक्सरसाइज कर खुद को भूखा रख संतुष्ट नहीं होती बल्कि वजन कम करने की नुकसानदेह गोलियां गटकती है या फिर खाया पिया ही उलटने का नियम बना लेती है।
दुबलेपन की सनक के चलते वे डायरी में कैलोरीज नोट करती हैं, इंटरनेट पर वजन घटाने के उपाय सर्च करती हैं और उस विषय से संबंधित तमाम किताबें खंगालती रहती हैं।
इसका न केवल उनके शरीर पर बुरा असर पड़ता है बल्कि मानसिक रूप से भी वे अवसाद और तनाव से घिर जाती हैं । नींद ठीक से नहीं आती, मिजाज में चिड़चिड़ापन और धैर्य की कमी आ जाती है।
परामर्श:- पीड़िता को साइकोलाजिकल ट्रीटमेंट दिलवाएं। उसके मन से मोटे होने का वहम निकालने की कोशिश करें। वहम निकलने पर ही घर वाले उसे पौष्टिक भोजन करने के लिए मना सकेंगे। डिप्रेशन के लिए मनो चिकित्सक मूड स्टेबलाइजर या ऐंटीडिप्रेसेंट दवाएं देते हैं। वे जैसा भी उचित समझेंगे, वही ट्रीटमेंट देंगे।
बुलिमिया:- विलपावर के न होने से मरीज का ‘क्या करें, कंट्रोल ही नहीं होता’ की तर्ज पर ओवर ईटिंग का कार्यक्रम चलता रहता है, फिर गलती महसूस होने पर वो उसे उलट देता है। यह उसका सेकंड नेचर बन जाता है। शुक्र है कि यह दौर लंबे समय तक नहीं रहता लेकिन जब तक यह समस्या रहती है मरीज का हाल बुरा रहता है।
गला सूखना तथा खराब रहना, दांतों का पीलापन, पेट में एसिडिटी रहना। डिहाइडेªशन तथा मूडी होना साथ ही वजन ज्यादा बढ़ना, ये सब प्राब्लम्स आने लगती हैं।
परामर्श:- क्योंकि यह खाते रहने का रोग है, रोग बढ़ने की स्थिति में भूख कम करने की दवा का इसमें फिर प्रयोग होता है लेकिन यह बाद की बात है। इनिशियल स्टेज में सलाह से भी काम चल जाता है। यह एनोरेक्सिया के मुकाबले जल्दी क्योर हो जाता है। इससे संबंधित लक्षण जैसे बाल झड़ना, कब्ज, दांतों में प्राॅब्लम होने पर उसी के अनुसार इलाज किया जाता है।
बिंज ईटिंग:- तरह-तरह की चीजें खाने के शौकीन लोगों में बिंज ईटिंग समस्या बन जाती है। वे पेट भरने के लिये नहीं बल्कि स्वाद और मजे के लिए छिटुर-पुटर चीजें खाते रहते हैं। टी वी के आगे बैठ गए तब कुछ स्नैक्स आदि रख लिए। फ्रिज खोला तो सामने कुछ टेस्टी सी चीज दिखी तो वो खा ली। खा पीकर कहीं सोशल विजिट पर गए। सामने जो स्नैक्स रखे गए, उन पर हाथ साफ किया। इस तरह पेट पर लगातार अत्याचार करते रहने पर उन में अपराध बोध भी रहने लगता है। क्योंकि वे जानते हैं कि ऐसा करना बीमारियों को बुलाना है जैसे ब्लडप्रेशर और कोलेस्ट्राल बढ़ना, जोड़ों में दर्द सूजन, सांस की तकलीफ और वजन बढ़ना इत्यादि।
परामर्श:- यह प्राॅब्लम मनोवैज्ञानिक है इसलिए इसका उपचार भी मन से जुड़ा है। कई लोग तनाव के चलते ऐसा करते हैं। खाते रहने से उनका डायवर्जन होता है वो संतुष्ट महसूस करते हैं। कुछ देर के लिये ही सही वे अपनी परेशानियां तकलीफें भूल जाते हैं। इसे इमोशनल ईटिंग कह सकते हैं।
इस तरह की ईटिंग में इनडल्ज करने के पहले खाने वाले को इसके बुरे परिणाम पर भी ध्यान देना चाहिए। आत्मनियंत्राण ही ऐसे में काम आ सकता है।
घर में तरह-तरह के स्नैक्स लाएं ही नहीं, ऐसे में न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी।
यह आदत की बात है। अगर बैलेंस्ड डायट लेंगे और जबर्दस्ती की भूख को समझ कर उसे मारना सीख लेंगे जैसे पानी पीकर या सेलड, फल इत्यादि लो कैलोरी चीजों का सेवन कर तो ईटिंग डिस्आॅर्डर से होने वाले नुकसान से बच सकेंगे।