
सूरज की कोमल धूप के माध्यम से हमें विटामिन डी मिलता है जिसके द्वारा शरीर भोजन से प्राप्त कैल्शियम एवं अन्य खनिज तत्वों को ग्रहण करता है। इससे हड्डियां एवं मांसपेशियां मजबूत होती हैं। सूर्य की धूप की सम्पूर्ण जीवन हमें जरूरत पड़ती है। यह बच्चे बड़े सभी के लिए जरूरी है। विटामिन डी एक प्रकार का हार्मोन है जो सूर्य धूप पड़ने पर हमारे शरीर में बनता है। ये कैल्शियम एवं फास्फोरस को पचाकर हमारे शरीर के लिए उपयोगी बनाता है। सूर्य धूप से तपेदिक से राहत मिलती है।
यह कोलेस्ट्राल एवं बीपी नियंत्रित करता है। यह टाइप टू प्रकार की शुगर कम करने में भी मददगार सिद्ध होता है। कैंसर से बचाता है। सूर्य धूप भी रोगों से लड़ने की क्षमता बढ़ाती है। जो सांवले हैं, मोटे हैं, धूप में कम निकलते हैं एवं सनस्क्रीन लोशन का उपयोग करते हैं, उन्हें इसकी अधिक जरूरत पड़ती है। विटामिन डी पेट में जलन, डायरिया, पाचन की कमजोरी को भी दूर करता है। विटामिन डी को सूर्य के अलावा टेबलेट एवं कैप्सूल के रूप में भी ले सकते हैं।
सेहत से जुड़े उत्पादों का वैज्ञानिक आधार नहीं
बाजार में सेहत के लिए फायदेमंद बताकर अनेक उत्पाद बिकते हैं। इन उत्पादों को बड़े से बड़े सेलिब्रिटीज पर्सन प्रचार माध्यमों में विज्ञापन करते हैं। इनके आकर्षक विज्ञापनों से सभी सम्मोहित हो जाते हैं। इनका प्रभाव बच्चे बड़ों सभी पर पड़ता है जबकि ये सेहत उत्पाद पूरी तरह व्यर्थ एवं थोथे होते हैं।
लाभ की दृष्टि से ये उत्पाद शून्य होते हैं। ये एनर्जी ड्रिंक, ओरल सप्लिमेंट्स और फिटनेस प्रोडक्ट हैं। अमेरिका और इंग्लैंड में ऐसे 235 बड़े ऐसे उत्पादों का विस्तृत अध्ययन किया गया। इनमें से 45 को सबने आजमा कर देखा। ऐसे उत्पादों में से किसी की वैज्ञानिक ढंग से पुष्टि नहीं हुई। सभी बेकार निकले। इनके उत्पादक भी ऐसे उत्पादों का वैज्ञानिक आधार नहीं बता पाए। सेवनकर्ता विज्ञापनों से प्रभावित होकर इन्हें खरीदता एवं उपयोग करता है। यह मन का संतोष एवं धन की बर्बादी के अलावा कुछ नहीं है।
मोटापा बिगाड़ देता है बच्चों की सेहत
युवक प्रायः नौकरी मिलने या विवाह हो जाने के बाद मोटे होते हैं। विवाहित युवती भी नौकरी मिलने या बच्चों के हो जाने के बाद मोटी होती है किंतु बच्चे अब कम आयु में बचपन में ही मोटे होते जा रहे हैं। ऐसे मोटे होते एवं मुटियाते बच्चों को देखकर माता-पिता खुश होते हैं किंतु वे इस धोखे में रहते हैं कि ऐसे बच्चे खाते-पीते घर या बच्चे के स्वस्थ होने की पहचान है।
ऐसे मोटे बच्चों का शरीर जल्द ही गंभीर बीमारियों की चपेट में आ जाता है। उन्हें कम उम्र में (मात्रा 10 से 12 की) बी.पी. एवं हृदयरोग की बीमारी हो जाती है। वै दैनिक जरूरत से अधिक खाते हैं और टाइप टू डायबिटिज की चपेट में आ जाते हैं। इनका गुड कोलेस्ट्राल कम होकर बैड कोलेस्ट्राॅल बढ़ जाता है। ऐसे बच्चे कम आयु में ऐसी बीमारियों की चपेट में आने के कारण अल्पायु वाले हो जाते हैं। इनकी औसत जीवन आयु घट जाती है।
इन्हें आहार में जरूर शामिल करें
हम दैनिक आहार में अनेक प्रकार की चीजें लेते हैं किंतु इनमें मिर्च, काली मिर्च, पीपर, दालचीनी, अदरक सोंठ, नींबू प्रजाति, बेर, सेब, लहसुन, हरी चाय, बादाम, मूंगफली आदि को भी शामिल करें। मिर्च, काली मिर्च, पीपर कफ एवं मोटापा को बढ़ने से रोकते हों। दालचीनी से स्वाद बढ़ता है किंतु यह शुगर नियंत्रित भी करता है। अदरक या सोंठ कफ रोधी हैं और पाचन तंत्रा सुधारता है।
नींबू प्रजाति के फलों से विटामिन सी मिलता है। ये फल रोगों से लड़ने की क्षमता देते हैं। इससे मोटापा दूर होता है। अतिरिक्त ऊर्जा की खपत होती है। शुगर भी नियंत्रित होती है। बेर, बेरी एवं सेब से अनेक जरूरी तत्वों की पूर्ति होती है। इनके सेवन से संतुष्टि मिलती है। लहसुन कोलेस्ट्राल कंट्रोल कर हृदय को लाभ पहुंचाता है। यह शुगर भी नियंत्रित करता है। मेथी भी यही काम करती है। हरी चाय से दिल को लाभ मिलता है। शुगर लेवल सुधरता है। बादाम, मूंगफली से दिल एवं दिमाग को लाभ मिलता है।
हल्के तनाव से बढ़ती है एकाग्रता
तनाव मुक्त एवं निश्चित रहने वाले व्यक्ति का मन भटकता है। वह इससे लापरवाह होकर गलती करता है जबकि अधिक तनाव नुकसान पहुंचाता है और कम तनाव लाभ दिलाता है। व्यक्ति का हल्का फुल्का तनाव में रहना लाभदायी होता है। हल्के तनाव की स्थिति में व्यक्ति की एकाग्रता बढ़ जाती है। ऐसी हालत में वह हर कदम सावधानी से उठाता है। उसका हर काम में प्रदर्शन अच्छा रहता है। शोध के मुताबिक हल्के तनाव में व्यक्ति ज्यादा सुरक्षित ढंग से वाहन चलाता है। उसकी वाहन चालन क्षमता में सुधार आता है।
दिल के रोगी प्रदूषण से बचें
प्रदूषण सभी के लिए खतरनाक होता है। वायु प्रदूषण दिल एवं श्वांस के रोगियों के लिए बहुत खतरनाक होता है। यह रोग की तीव्रता को बढ़ा देता है। इसकी अधिकता जानलेवा भी सिद्ध हो सकती है। वायु प्रदूषण से दिल या श्वांस के रोगियों के सम्मुख और अन्य खतरे भी बढ़ जाते हैं।
स्वस्थ होती हैं कामकाजी महिलाएं
वर्किंग मदर या कामकाजी माता पर भले ही घर एवं बाहर का दोहरा कार्यभार हो तथा इसका उस पर दबाव हो किंतु तनाव के बाद भी सेहत की दृष्टि से वह स्वस्थ होती है। वह घरेलू महिला की तुलना में हर काम को बेहतर अंजाम देती हैं। दोहरी चुनौती के कारण सभी परिस्थितियों से उबरने की क्षमता रखती हैं। छोटी-छोटी बातों से खुश रहना सीख जाती है। बाहर की दुनियांदारी की समझ रखती है। इसलिए वह शारीरिक मानसिक रूप से स्वस्थ रहती है। घर एवं बाहर के दोनों समाज से जुड़े होने के कारण वह तनाव से मुक्त व सेहतमंद रहती है।
अकेले सोने से लाभ
अकेले सोकर अधिक स्वस्थ रहा जा सकता है। शोधकर्ताओं के मुताबिक यह बात अजीब जरूर किंतु सच है। हाल ही में हुए एक शोध के मुताबिक अकेले सोने वालों की नींद बाधित नहीं होती जबकि पार्टनर के कारण पचास प्रतिशत की नींद टूटती है एवं पूरी नहीं हो पाती। परिणामतः आगे ऐसे में तनाव, सिरदर्द, हृदय रोग एवं शुगर होने का खतरा बढ़ जाता है। शोध के मुताबिक अधिक आयु के 40 प्रतिशत दंपति अकेले सोना पसंद करते हैं। बच्चे के अकेले सोने पर उसका आत्मविश्वास बढ़ता है।
पसीना ऐसे कम होगा
गर्मी में, श्रम करने पर एवं खाने के बाद, चाय, काफी सिगरेट पीने के बाद अनेक लोगों को पसीने की शिकायत होती है। ये लोग तनाव, अवसाद एवं अधिक श्रम से बचें। शारीरिक मानसिक रूप से शांत रहें। ढीले कपड़े पहनें। खूब पानी पिएं। सूती कपड़े पहनें। धूम्रपान, मदिरापान, चाय काफी को सीमित या बंद कर दें।