ए आई का ज़माना मगर ‘पिता’ का नहीं विकल्प

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Fokus-AI-Phonlamai-Shutterstock

डॉ घनश्याम बादल 

 

बदलाव प्रकृति का नियम है. काल, पारिस्थिति, वस्तुएं, सोच, मानसिकता, उपलब्ध संसाधन और संबंध सब वक्त के साथ बदलते हैं. जो इनके साथ सामंजस्य बैठा लेता है वह सफ़ल हो जाता है और जो अपनी ज़िद पर अड़ा रहता है वह अपनी जगह खड़ा रहता है और देखते ही देखते सबसे पीछे हो जाता है। 

भारतीय समाज में पिता का स्थान सबसे ऊंचा रहा है और कई मायनों में हमारे परिवार आज भी पितृ सत्तात्मक हैं लेकिन ज़माना बदला है, सोच बदली है आज जब 21वीं सदी एक चौथाई पूरी होने जा रही है हम डिजिटल एवं कृत्रिम बुद्धि लब्धि यानी ए आई क्रांति के दौर से गुजर रहे हैं। यह केवल तकनीकी नहीं, बल्कि सामाजिक और मानवीय रिश्तों को भी प्रभावित कर रही है।

     आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का प्रभाव अब जीवन के हर क्षेत्र में देखा जा सकता है – शिक्षा, चिकित्सा, व्यापार, संचार, सोच, कार्य शैली, जीवन स्तर और पारिवारिक जीवन में भी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का दख़ल लगातार बढ़ रहा है। ऐसे में पारंपरिक भूमिका वाले ‘पिता’ की स्थिति और उनका महत्व एक नए मूल्यांकन के दौर में है।

 

ए आई के युग में, जहां मशीनें तेजी से सोचने और निर्णय लेने लगी हैं, वहां एक पिता की संवेदनशील, नैतिक और भावनात्मक भूमिका पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण हो गई है। आज इस बात पर चिंतन की जरूरत है कि तेज़ी से बदलती दुनिया में पिता की भूमिका क्या है, और वे अपने बच्चों से क्या अपेक्षा रखते हैं।

   ए आई के युग ने  परिवार और बच्चों की दुनिया को अभूतपूर्व तरीके से बदला है। अब बच्चे किताबों से कम, स्क्रीन से ज़्यादा सीखते हैं। चैटबॉट्स, वर्चुअल असिस्टेंट, और एजुकेशनल ऐप्स ने पिता की पारंपरिक भूमिका को एक बड़ी चुनौती दी है। एक ओर ये तकनीकी उपकरण बच्चों की जानकारी बढ़ा रहे हैं, वहीं संवेदनशीलता, नैतिकता, ईमानदारी, आत्म-नियंत्रण और संबंधों की गरिमा जैसी भावनात्मक समझ तेजी से कम होती जा रही है। इस स्थिति में पिता का मानवीय स्पर्श और मार्गदर्शन और भी आवश्यक हो गया है, क्योंकि वह बच्चों को मशीनों की दुनिया में इंसान बने रहने का पाठ पढ़ा सकते हैं।

 

ए आई की अपनी सीमाएँ हैं और वह पिता का स्थान किसी हाल में नहीं ले सकती,  इसीलिए पिता की अपरिहार्यता आज भी बनी हुई है।  मशीनें ज्ञान दे सकती हैं, समाधान सुझा सकती हैं लेकिन अनुभव, करुणा, सहानुभूति और नैतिक दृष्टिकोण नहीं सिखा सकती ।

   आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का तंत्र यह तो बताएगा कि कौन सा करियर फायदेमंद है, लेकिन पिता समझाएंगे कि दिल की सुनना भी ज़रूरी है। ए आई बताएगा कि किसी बहस में कौन सही है, लेकिन पिता सिखाएंगे कि सही होते हुए भी चुप रहना कभी-कभी बेहतर होता है इसलिए, कृत्रिम बुद्धिमत्ता के उन्नत समय में पिता एक भावनात्मक स्तंभ, नैतिक पथ-प्रदर्शक और चरित्र निर्माणकर्ता के रूप में और भी महत्वपूर्ण हो गए हैं।

    पिता अब केवल पालक नहीं, सहभागी हैं। आज के पिता का कार्य केवल बच्चों की ज़रूरतें पूरी करना नहीं, बल्कि उनके साथ भावनात्मक स्तर पर जुड़ना भी है। वह अब वह कैरियर काउंसलर की तरह बच्चों की रुचियों और प्रतिभा को पहचानने में मदद करते हैं, उनके मानसिक स्वास्थ्य  का ध्यान रखते हैं और बच्चों की भावनात्मक ज़रूरतों को समझते हैं। डिजिटल गाइड की तरह उन्हें तकनीक के लाभ और खतरे दोनों से परिचित कराते हैं। और सबसे जरूरी, एक मानव मूल्य संरक्षक की तरह उन्हें यह सिखाते हैं कि “इंसान बने रहना” सबसे बड़ी उपलब्धि है।

    आज के युग में पिता बच्चों से कुछ बुनियादी लेकिन गहरी अपेक्षाएँ रखते हैं, जो तकनीक से नहीं, संस्कारों और मानवीयता से जुड़ी हैं। 

    अब पिता चाहते हैं कि उनके बच्चे सिर्फ डिग्री या स्किल्स के पीछे न भागें, बल्कि आत्म-मूल्य की समझ रखें   माता-पिता परिवार देश और समाज के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी को समझें एवं पूरा करें।

अब जागरूक पिता चाहते हैं कि बच्चों को ए आई या आभासी दुनिया अथवा नए-नए यंत्रों की जानकारी हो लेकिन उनका उपयोग वें विवेक के साथ करें। पिता चाहते हैं कि बच्चे टेक्नोलॉजी के उपभोक्ता नहीं, निर्माता बनें और नैतिकता को प्राथमिकता दें।

     आभासी माध्यमों से से बातें करना आसान है, लेकिन पिता चाहते हैं कि बच्चे उनके साथ खुलकर संवाद करें बिना डर, बिना दूरी बधाई उनके साथ घुल मिलकर रहे अपनी समस्याएं उन्हें बताएं एवं उनकी समस्याएं सुनें व समझें। 

    बेशक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से भी बहुत कुछ मिल सकता है, लेकिन सम्बंधों की आत्मीयता केवल परिवार से आती है। पिता चाहते हैं कि बच्चे परिवार की गरिमा को समझें, सम्मान दें, और साथ निभाना सीखें। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के युग ने सिर्फ बच्चों को नहीं बदला है, बल्कि पिताओं को भी अभ्यस्त और उत्तरदायी बनने के लिए प्रेरित किया है।

  आज के पिता खुद डिजिटल साक्षरता सीख रहे हैं। अपने बच्चों के करियर विकल्पों को पुरानी सोच के बजाय खुली दृष्टि से देख रहे हैं। सहानुभूति और भावनात्मक बुद्धिमत्ता को अहमियत देने लगे हैं। परिवार में साझी ज़िम्मेदारियों और समान अधिकारों की भावना को बढ़ावा दे रहे हैं। इस बदलाव में एक गहरा संदेश छिपा है कि एक आधुनिक पिता वही है जो समय के साथ बदले, लेकिन अपनी आत्मा से जुड़ा रहे।

बेशक आज आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का युग, लेकिन इंसानियत का भविष्य पिता ही गढ़ते हैं। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस भले ही हमारी दुनिया को स्मार्ट बना रही हो, लेकिन वह रिश्तों की गर्मी नहीं दे सकती। वह आपको जवाब दे सकती है, लेकिन समझ नहीं सकती। ऐसे में एक पिता की भूमिका और अधिक जरूरी हो जाती है — जो न सिर्फ जानकारी दे, बल्कि समझ भी दे; जो न सिर्फ दिशा दे, बल्कि विश्वास भी दे।

 

बच्चों के लिए पिता एक जीता-जागता मार्गदर्शक हैं, जो उन्हें यह सिखाते हैं कि “सफलता तब अधूरी है जब वह संवेदनशीलता से खाली हो।” इसलिए, नए के युग में पिता की भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो गई है जहाँ वह बच्चों को सिखा सकते हैं कि मशीनों की दुनिया में भी इंसान बने रहना ही सबसे बड़ी बुद्धिमानी है।

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