आदि और आधुनिक मानव

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व्यक्ति समाज की इकाई है. ऐसा भी कहा जा सकता है कि व्यक्तियों के एक साथ रहने से समाज बना है। कई बार मन-मस्तिष्क में मानवीय संरचना के प्रश्न-उत्तर होते रहते हैं और आदिकालीन तथा आधुनिक मानव पर बहुत बात होती रहती है। कहा यह भी जाता है कि आदिमानव से आधुनिक मानव का सफर बहुत लंबा रहा है, यह बात तो सत्य है कि आधुनिक मानव ने सुख-सुविधाओं का एक अंबार खड़ा कर दिया है, हर वस्तु को बाजार में ला दिया है परंतु आधुनिक जीवन शैली आज भी आदिम युग जैसी ही दिखाइए देती है। इसके कई सारे प्रमाण हमें इन बातों से मिल जाते हैं।

आदिमानव जंगलों में अपने ठिकानों को बदलता रहा है अर्थात खान-पान और मौसम के हिसाब से रहन-सहन के चलते स्थान बदलता रहा। आज का आधुनिक मानव अपने काम-धंधे के चलते अपने नए-नए पते बनाता चल रहा है। गांव से शहर, शहर से महानगर, महानगर से विदेश आदि अपनी यात्रा रोक नहीं रहा है। रिश्ते-नातों से दूर एकल जीवन जीना चाहता है। स्थिति ठीक वैसे ही है, जो हजारों वर्ष पहले थी।

दूसरी ओर ध्यान दे तो आदिमानव नंगे बदन घूमता रहता था क्योंकि उसे अभी बहुत सारी चीजों का ज्ञान नहीं था। वह केवल मौसम के हिसाब से अपने ठिकाने बदल रहा था। फिर धीरे-धीरे उसने अपने शरीर के कुछ अंगों को वृक्ष की छाल-पत्तों आदि से ढक लेना सीखा और मौसम चक्र के प्रभाव से भी बचाना सीखा। आधुनिक मानव सभी कुछ होते हुए भी अपने शरीर को दिखाने में लगा हुआ है। वह भी कपड़ा शरीर पर नाम मात्र का पहन रहा है या कहें कि शरीर पर लगता है। कितनी ही फिल्में और अन्य फैशन डिजाइन इसका उदाहरण हो सकते हैं।

आदिमानव प्रकृति की गोद में वन, पर्वत, नदी, झरनों आदि में अपना जीवन बसर करता था। प्रकृति ही उसका गहना रही। आज का मानव भी इस चकाचौंध भरी जिंदगी से जब ऊब जाता है तो वह सीधे प्रकृति की गोद में जाता है। पर्वतों, वनों, पवित्र नदियों में स्नान करना, झरनों और प्रकृति का दर्शन करने महानगर से बाहर भागता है। वहीं पर अपने को तरोताजा समझ कर आता है। टूरिज्म एक व्यापार बन चुका है।

आदिमानव को पशु-पक्षियों से प्रेम रहा। सुरक्षा की दृष्टि से भी उसने पशु-पक्षियों को पाला। उनसे मिलने वाले दूध से खान-पान, भरण-पोषण हुआ। एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने के लिए प्रयोग में लाया गया। आज भी कितने ही व्यक्ति अपने घरों में पालतू पशु-पक्षियों को रखते हैं, उनका पालन-पोषण करते हैं। उनसे अपना व्यापार भी जमाए हुए हैं। आदिमानव ने जब तक आग के बारे में नहीं जाना था, तब तक वह कच्चा ही खाते रहे। आज भी कितने ही नवयुवक जिम में अपने शरीर को बनाने के लिए कच्चा मांस खाते हैं, कुछ आग पर पाकर खाते हैं, स्थिति ज्यों की त्यों दिखाई देती है।

विचार करें तो आज हमने सुख-सुविधाओं का एक बाजार खड़ा कर दिया है, लेकिन हम वर्षों पुराने ज्यों के त्यों ही हैं। ऐसे कितने ही उदाहरण और भी हमें मिल सकते हैं। पूजा पाठ से दूर आज का युवा खानाबदोश जीवन जीना चाह रहा है। किसी प्रकार का कोई दबाव नहीं, केवल स्वयं के जीवन को जीना उनका उद्देश्य रह गया है। उपर्युक्त बातें सभी लोगों पर लागू नहीं होती। लेकिन एक बात तो अवश्य समझ आती है कि समाज का एक बड़ा भाग ऐसा अवश्य कर रहा है। इस पर भी हमें सोचने की जरूरत है।

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