विश्व तम्बाकू निषेध दिवस (31/05/2025) पर विशेष लेख

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विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा विश्व तम्बाकू निषेध दिवस की शुरूआत सन् 1988 से की गयी थी। यह तम्बाकू निषेध दिवस प्रतिवर्ष 31 मई को मनाया जाता है। जिसका मुख्य उद्देश्य लोगों को तम्बाकू जैसे हानिकारक पदार्थो से बचाना एवं इसकी वजह से होने वाली मृत्यु के आंकड़ों को कम करना है। साथ ही साथ लोगों को उनके स्वास्थ्य के प्रति जागरूक करना, तम्बाकू के दुष्प्रभावों से अवगत कराना भी इसका मुख्य उद्देश्य है। इस दिन जन जागरूकता अभियान कार्यक्रम, कैम्प एवं अन्य माध्यमों से तम्बाकू से होने वाले दुष्प्रभावों के बारे में लोगों को जागरूक किया जाता है। विश्व तम्बाकू निषेध दिवस वर्ष 2025 की थीम है- “अनमास्किंग दी अपील: एक्सपोजिंग इंडस्ट्री टैक्टिस ऑन टोबैको एंड निकोटीन प्रोडक्ट्स।” अर्थात “अपील का पर्दाफाश: तंबाकू और निकोटीन उत्पादों पर उद्योग की चालों को उजागर करना”। इस वर्ष इस दिवस के आयोजन का केंद्र उन हथकंडों का खुलासा करना है जो तम्बाकू और निकोटीन उद्योग अपने हानिकारक उत्पादों को आकर्षक बनाने के लिये उपयोग करते हैं। वर्तमान में प्राथमिक सार्वजनिक स्वास्थ्य में सबसे बड़ी समस्या युवाओं में तम्बाकू और निकोटिन उत्पादों के प्रति आकर्षण है। उद्योग इन उत्पादों को आकर्षक बनाने के लिए लगातार नए हथकंडे अपनाते हैं। जैसे – इन उत्पादों में स्वाद, महक आदि के लिए बाहरी तत्व एड करते हैं कि जो कि देखने में आकर्षक हो जाते हैं और युवाओं में इसका स्वाद बढ़ जाता है। उत्पादों में एडिटिव्स को एड करते हैं जिससे कि एक युवा इसके आदी हो जाते हैं।  इसके साथ ही बाजार को भी ग्लेमराइज्ड किया गया तथा सोशल और डिजिटल मीडिया का  भी सहारा ले रहे हैं।

विश्वभर में तम्बाकू के उत्पाद एवम् उपयोग के संबंध में भारत दूसरे स्थान पर है। तम्बाकू, आज के समय में फैल रही अधिकांश बीमारियों के पीछे एक बड़ी वजह है, इसकी लत का प्रसार एक दुर्दम महामारी का रूप ले चुका है। ऐसे हालात में तम्बाकू से निर्मित उत्पादों के सेवन से न सिर्फ व्यक्तिगत, शारीरिक, एवं बौद्धिक ह्रास हो रहा है अपितु समाज पर भी इसके दूरगामी, व्यक्तिगत, सामाजिक, आर्थिक दुष्प्रभाव दिखाई देने लगे हैं। भारत में तम्बाकू का आगमन 16वीं शताब्दी में अकबर के शासन में पुर्तगाली व्यापारी इसे अपने साथ लेकर भारत आए। प्रारंभ में तम्बाकू को एक औषधीय वस्तु और विलासिता की चीज़ के रूप में प्रस्तुत किया गया, और शीघ्र ही यह मुगलों के दरबार में लोकप्रिय हो गया। जहाँगीर के शासनकाल में तंबाकू का उपयोग बहुत अधिक फैल चुका था। तंबाकू के बढ़ते दुष्प्रभावों को समझते हुए उन्होंने इसके उपयोग पर नियंत्रण लगाने के उद्देश्य से इस पर भारी कर लगाया। यह प्रयास तंबाकू पर शासन स्तर से पहला औपचारिक प्रतिबंध था, परन्तु इसकी लत, सामाजिक आकर्षण और व्यापारिक लाभ के कारण यह प्रतिबंध ज्यादा प्रभावी सिद्ध नहीं हुआ। समय के साथ अंग्रेजों का शासन शुरू हुआ। अंग्रेजों ने तंबाकू को एक लाभदायक कृषि और व्यापारिक वस्तु के रूप में बढ़ावा दिया। परिणामस्वरूप बीड़ी, सिगरेट, हुक्का, गुटखा, खैनी जैसे तंबाकू उत्पादों का उपयोग समाज के हर वर्ग में फैल गया। आज भी तंबाकू का उपभोग एक गंभीर समस्या बना हुआ है। सरकार द्वारा कर, चेतावनी और प्रचार के माध्यम से रोक लगाने के प्रयास किए जाते हैं, परंतु इसका उपयोग जारी है। सदियां बीत गयी तम्बाकू व्यापार और उपभोग पर लेश मात्र भी अंकुश न लगा।

दुनिया भर में 1.1 अरब तम्बाकू–धूम्रपान (टोबैको स्मोकिंग) करने वाले और लगभग 3.5 करोड़ धूम्रपान रहित तम्बाकू उपयोगकर्ता हैं।  ग्लोबल एडल्ट टोबैको सर्वे 2016-2017 के अनुसार हमारे देश में लगभग 27 करोड़ लोग तम्बाकू का सेवन करते है। भारत में तम्बाकू और धूम्रपान के कारण प्रतिवर्ष लगभग 14 लाख लोगों की मृत्यु होती है। तम्बाकू के कारण 25 तरह बीमारियां तथा लगभग 40 तरह के कैंसर हो सकते हैं जिसमें प्रमुख हैं: मुँह का कैंसर, गले का कैंसर, फेफडे का कैंसर, प्रोस्टेट का कैंसर, पेट का कैंसर, ब्रेन ट्यूमर आदि।

धूम्रपान से होने वाले स्वास्थ्य पर प्रभाव

भारत में लगभग 12 करोड़ लोग धूम्रपान करते हैं। तम्बाकू के धुएं से 500 हानिकारक गैसे एवं 7000 अन्य रासायनिक पदार्थ निकलते है, जिनमें निकोटीन और टार प्रमुख हैं। शोध द्वारा 70 रासायनिक पदार्थ कैंसरकारी पाये गये हैं। सिगरेट की तुलना में बीड़ी पीना ज्यादा नुकसानदायक होता हैं। बीड़ी में निकोटीन की मात्रा कम होने के कारण निकोटीन की लत के शिकार लोगों को इसकी आवश्यकता बार-बार पड़ती है। हमारे देश में महिलाओं की अपेक्षा पुरूष अधिक धूम्रपान करते हैं। जब कोई धूम्रपान करता हैं तो बीड़ी या सिगरेट का धुआं उसको पीने वाले के फेफडे़ में 30 प्रतिशत जाता हैं व आस-पास के वातावरण में 70 प्रतिशत रह जाता हैं, जिससे परिवार के लोग और उसके मित्र प्रभावित होते हैं, जिसको हम परोक्ष धूम्रपान कहते हैं। सेन्टर फार डिजीज कंट्रोल एण्ड प्रिवेंशन के अनुसार सामान्यतः स्मोकर्स की मृत्यु नान-स्मोकर्स की तुलना में दस साल पहले ही हो जाती है। विश्व भर में होने वाली मृत्यु में 50 प्रतिशत मौतों का कारण धूम्रपान है। धूम्रपान के परिणामस्वरूप रक्त का संचरण प्रभावित  हो जाता हे, ब्लड प्रेशर की समस्या हो जाती है, सांस फूलने लगती है और नित्य क्रियाओं में भी अवरोध आने लगता हे। धूम्रपान से होने वाली प्रमुख बीमारियां हैं:- ब्रॉन्काइटिस, एसिडिटी, टीबी, ब्लडप्रेशर, हार्ट-अटैक, फॉलिज, नपुंसकता, माइग्रेन, सिरदर्द, बालों का जल्दी सफेद होना आदि। यदि महिलायें गर्भावस्था के दौरान परोक्ष या अपरोक्ष रुप से धूम्रपान करती हैं तो उनके होने वाले नवजात शिशु का वजन कम होना, गर्भाशय में ही या पैदा होने के बाद मृत्यु हो जाना व पैदाइशी बीमारियाँ होने आदि का खतरा बना रहता हैं।

धूम्रपान की लत के कारण

बीड़ी या सिगरेट के धुए में मौजूद निकोटिन व अन्य विषैले तत्व हमारे मस्तिष्क में लगभग 10 से 19 सेकेंड में पहुंच जाते हैं। निकोटिन सर्वप्रथम मस्तिष्क के मध्य भाग को प्रभावित करता हैं। जिसके कारण निकोटिन के अभिग्राहक (रिसेप्टर) सक्रिय हो जाते हैं तथा न्यूरोट्रांसमीटर्स का अधिक स्राव होने लगता हैं जो कि हमारे लिए हानिकारक हैं।

इसके कारण हमारी सोच तथा, हमारे कार्य प्रणाली में बदलाव होने लगता हैं। जैसेः चेतना के स्तर में परिवर्तन, जल्दी उत्तर देना, सूचनाओ को जल्द मस्तिष्क तक पहुंचाना, यादाश्त का तेज होना इत्यादि। यह सब केवल कुछ समय के लिए ही होता हैं क्योंकि निकोटिन का कार्यकाल आधे घंटे से दो घंटे के बीच का होता हैं। इसके बाद आपको पुनः इसकी जरूरत महसूस होने लगती हैं। लोगो में धूम्रपान करने के बहुत से कारण हैं जैसे कि उत्तेजना, इसका स्वाद जानने की इच्छा व चिंता से मुक्ति आदि हैं, ऐसा मानना है कि इससे तनाव भी कम होता हैं। इसका लोगां तक पहुचाने का सबसे बडा कारण हैं प्रचार तथा कुछ लोग इसे वैभव प्रतीक मानते हैं। युवा वर्ग में तो यह इस कदर हावी होता जा रहा हैं कि युवा वर्ग इसके बिना अपना जीवन बेकार मानते हैं और जब एक बार आप धूम्रपान करने लगते हैं तो आपको इसकी लत लग जाती हैं तब आप महसूस करते हैं कि यह आपके जीवन में बहुत खास और महत्वपूर्ण हैं। इसकी लत ब्राउन शुगर, अफीम व हिरोइन जैसे नशों से भी ज्यादा होती हैं।

रोकथाम

तम्बाकू सेवन से हो रहे दुष्प्रभावों को देखते हुए भारत सरकार ने कुछ व्यापक कदम उठाए। इस श्रंखला में (सिगरेटस एण्ड अदर टोबैको प्रोडक्ट एक्ट) सीओटीपीए एक्ट 2003 के अंतर्गत तम्बाकू या उससे बने पदार्थो का प्रचार प्रसार खरीद फरोख्त (बिक्री) एवं वितरण पर सख्ती से रोक लगाने की बात कही गई थी। तंबाकू सेवन से जुड़े अधिनियम (COTPA 2003) जनता को स्वास्थ्य खतरों से बचाने के लिए तंबाकू उत्पादों के सेवन को हतोत्साहित करना। धारा 77 – किशोर न्याय अधिनियम (2015) जो भी किसी बच्चे को किसी भी प्रकार की मादक शराब, मादक द्रव्य, तंबाकू उत्पाद या मनोवैज्ञानिक उत्पाद देता है या देने का कारण बनता है, उसे 7 साल तक की सजा और 11 लाख रुपये तक के जुर्माने से दंडित किये जाने का प्रावधान है। 31 मई 2004 विश्व तम्बाकू निषेध दिवस पर इस कानून को कार्यान्वित किया गया।

तम्बाकू व धूम्रपान छोड़ने के बाद शरीर में होने वाले फायदे

8 घंटे बाद– धूम्रपान छोड़ने के केवल 8 घंटे के भीतर शरीर में मौजूद निकोटीन और कार्बन मोनोऑक्साइड का स्तर आधा हो जाता है। कार्बन मोनोऑक्साइड एक जहरीली गैस है जो हीमोग्लोबिन से जुड़कर ऑक्सीजन को शरीर के अंगों तक पहुँचने से रोकती है। इसका स्तर घटने से रक्त में ऑक्सीजन का प्रवाह सामान्य हो जाता है। निकोटीन, जो धूम्रपान की लत के लिए जिम्मेदार है, कम होते ही शरीर हल्कापन महसूस करने लगता है। व्यक्ति को सांस लेने में थोड़ी आसानी महसूस होती है और थकावट कम लगती है।

24 घंटे बाद- केवल एक दिन के भीतर कार्बन मोनोऑक्साइड पूरी तरह शरीर से बाहर निकल जाती है। रक्त में ऑक्सीजन का स्तर पूर्णतः सामान्य हो जाता है। हृदय और मस्तिष्क को ऑक्सीजन की पर्याप्त आपूर्ति मिलने लगती है, जिससे दिल का कार्य बेहतर होता है। हार्ट अटैक या स्ट्रोक का खतरा घटने लगता है।

48 घंटे बाद- शरीर से निकोटीन पूरी तरह समाप्त हो जाता है। स्वाद कलिकाएं (टेस्ट बड्स) फिर से सक्रिय होने लगती हैं, जिससे भोजन का स्वाद बेहतर महसूस होता है। सूँघने की शक्ति (स्मेल सेंस) भी धीरे-धीरे तेज होती है। इस चरण में कुछ लोगों को निकोटीन की तलब महसूस हो सकती है, लेकिन यह तलब अस्थायी होती है।

1 महीने बाद- चेहरे की रंगत में स्पष्ट सुधार दिखने लगता है। त्वचा की भूरी पीलापन और धूम्रपान से उत्पन्न झुर्रियाँ कम होने लगती हैं। व्यक्ति पहले से अधिक ताजा और स्वस्थ दिखने लगता है। श्वसन तंत्र की सिलिया— जो फेफड़ों को साफ रखने में मदद करती हैं — पुनः विकसित होने लगती हैं। खांसी और कफ धीरे-धीरे कम होने लगता है। वापसी के लक्षण जो शुरुआत में होते हैं, अब काफी हद तक कम हो जाते हैं।

3 से 9 महीने बाद- व्यक्ति की खांसी, घरघराहट और सांस लेने में तकलीफ में उल्लेखनीय सुधार होता है। फेफड़ों की क्षमता बढ़ती है, जिससे दौड़ने, सीढ़ियाँ चढ़ने जैसी गतिविधियाँ आसान लगने लगती हैं। इम्यून सिस्टम मजबूत होता है और संक्रमण से लड़ने की शक्ति बढ़ती है। बार-बार होने वाले सर्दी, खांसी और ब्रोंकाइटिस जैसी बीमारियाँ कम हो जाती हैं।

5 वर्ष बाद- दिल के दौरे (हार्ट अटैक) का खतरा अब लगभग आधा रह जाता है, एक ऐसे व्यक्ति की तुलना में जो अब भी धूम्रपान करता है। रक्त धमनियों की कार्यप्रणाली सामान्य होने लगती है। शरीर में रक्त का थक्का बनने की प्रवृत्ति कम हो जाती है, जिससे स्ट्रोक का खतरा भी घटता है।

10 वर्ष बाद- अब तक फेफड़ों के कैंसर का खतरा आधा हो चुका होता है। मुंह, गला, ग्रासनली, मूत्राशय और अग्न्याशय के कैंसर का जोखिम भी उल्लेखनीय रूप से घट जाता है। व्यक्ति का संपूर्ण स्वास्थ्य एक धूम्रपान न करने वाले व्यक्ति के बराबर पहुँचने लगता है, बशर्ते वह निरंतर स्वस्थ जीवनशैली अपनाए रखे।

धूम्रपान छोड़ना केवल एक आदत का परित्याग नहीं है, बल्कि यह स्वास्थ्य, दीर्घायु और जीवन की गुणवत्ता को सुधारने की दिशा में एक महान कदम है।

तम्बाकू पर प्रतिबन्ध के लिए लेखक की प्रधानमंत्री से अपील

तम्बाकू के दूष्प्रभावों को देखते हुए लेखक वर्ष 2018 से भारत के प्रधानमंत्री एवं स्वास्थ्यमंत्री को पत्र लिख कर तम्बाकू के उत्पादन, भण्डारण तथा ब्रिकी पर रोक लगाने की मुहिम चला रहें हैं। लेकिन इसके लिए दो कुतर्क दिये जाते है कि तम्बाकू उत्पाद से करोड़ों लोगों को रोजगार मिलता है तथा इससे काफी राजस्व की प्राप्ति होती है। राजस्व की प्राप्ति एक मिथक ही है क्योंकि भारतीय वित्त मंत्रालय भारत सरकार 2015-2016 के आंकड़ों के अनुसार तम्बाकू के उत्पादों से प्रतिवर्ष 31,000 करोड़ रूपये अर्जित होते हैं जबकि हम 10,4500 करोड़ रूपये तम्बाकू के दुष्प्रभावों से हो रही प्रमुख बीमारियों पर ही खर्च कर देते हैं जैसे- फेफड़े का कैंसर, मुहँ का कैंसर आदि। जहां तक रोजगार की बात है तो जैसा कि एक बार भारत के पूर्व प्रधानमंत्री स्व0 श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी ने तम्बाकू की खेती करने वाले किसानों से कहा था कि आप लोग अपने खेतों में तम्बाकू जैसे जहर की खेती बंद करिये व इसके स्थान पर फूलों की खेती करिये और दुनियां को महका दीजिये। इसी सिद्धान्त को हमें अपनाना पडे़गा और तम्बाकू से रोजगार में लगे लोग फूलों के रोजगार में लग जायेंगे।

डॉ0 सूर्य कान्त
प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष,
रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग,
किंग जॅार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय, लखनऊ.
पूर्व महासचिव, इंडियन सोसाइटी अगेंस्ट स्मोकिंग.
सदस्य, राष्ट्रीय कोर कमेटी, डॉक्टर्स फॉर क्लीन एयर एंड क्लाइमेट एक्शन.

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