
बैशाख पूर्णिमा को मनाये जाने वाली बुद्ध पूर्णिमा विश्वभर में फैले बौद्ध अनुयायियों के लिए विशेष महत्व रखता है। लगभग 500 ईसा पूर्व उरुवेला नामक एक छोटे से गाँव में कपिलवस्तु के राजा शुद्धोधन के पुत्र राजकुमार सिद्धार्थ ने फल्गु नदी के किनारे बोधिवृक्ष तले कठिन तपस्या की। उन्हें जिस दिन इस स्थान पर ज्ञान की प्राप्ति हुई वह बैशाख पूर्णिमा ही थी। अपने असाधारण दिव्य ज्ञान के कारण सिद्धार्थ बुद्ध कहलाये। इसी कारण विश्वभर में यह दिवस बहुत धूमधाम से मनाया जाता है।
यह अकारण नहीं कि बुद्ध सम्पूर्ण जगत के लिए जिज्ञासा का केन्द्र रहे हैं। उनका अष्टांग मार्ग अर्थात सम्यक दृष्टि, सम्यक संकल्प , सम्यक वाक, सम्यक कर्म, सम्यक जीविका, सम्यक प्रयास, सम्यक स्मृति औश्र सम्यक समाधि संसार को विवेक, वैराग्य और शांति के पथ पर अग्रसर करता है। उनका सम्पूर्ण जीवन प्रकाश स्तम्भ के समान है इसलिए यह कोई आश्चर्य नहीं कि भारत भूमि से आरंभ होकर बौद्ध दर्शन विश्व के बहुत बड़े भाग पर छा गया। कुछ विचारकों का मत है कि जिन देशों ने तथागत के मार्ग को स्वीकार किया वे आपेक्षाकृत विकास को प्राप्त हुए।
बुद्ध महान हैं लेकिन उन्हें भारत की परंपरा से भिन्न नहीं किया जा सकता। बुद्ध से अनात्मा और आत्मा के बारे में जब पूछा गया, तो वे मौन रहे। इसे अव्याकृत सत्य कहा गया है। अर्थात् आत्मा के होने, न होने के पक्ष को लेकर बुद्ध सनातन परंपरा से अलग नहीं हैं। बाकी आर्य अष्टांग और चार आर्य सत्य सनातन परंपरा में रहे ही हैं। इसी कारण सनातन ने बुद्ध को विष्णु का अवतार घोषित हैं। हालांकि कुछ बौद्ध विचारक स्वयं को सनातन से भिन्न मानते हैं।
इस तथ्य से किसी की भी असहमति नहीं हो सकती कि अपने सहज, सरल संदेशों के कारण तथागत बुद्ध भारत ही नहीं, विश्व के अनेक देशों में बहुत लोेकप्रिय हुए। उनकी सर्वकालिक शिक्षाएं आज के परिवेश में भी प्रासंगिक है। उन्होंने अपने शिष्यों को सिखाया, ‘हजारों खोखले शब्दों से अच्छा एक शब्द वह है जो आपके जीवन में शांति ले आता है। अतीत पर ध्यान मत दो, भविष्य के बारे में मत सोचो, सिर्फ अपने मन को वर्तमान क्षण पर केंद्रित रखने का प्रयास करो। जिस प्रकार मोमबत्ती बिना आग के नहीं जल सकती, ठीक उसी प्रकार मनुष्य भी आध्यात्मिक जीवन के बिना नहीं जी सकता है। तीन चीजें ज्यादा देर तक नहीं छुप सकती हैंः सूरज, चंद्रमा और सत्य। अपने मोक्ष के लिए खुद ही प्रयत्न करना चाहिए, इसके लिए दूसरों पर निर्भर नहीं रहें। आपका स्वास्थ्य ईश्वर का सबसे बड़ा उपहार है, संतोष सबसे बड़ा धन और विश्वास सबसे बेहतर उपलब्धि है। सत्य के मार्ग पर चलते हुए आप से दो ही प्रकार की गलतियां होती हैं- एक आप पूरा रास्ता न तय करें और दूसरे आप शुरुआत ही न करें। शक से भयावह कुछ भी नहीं है। शक ऐसे जहर के समान है जो मित्रता खत्म करता है और अच्छे रिश्तों को तोड़ता है। यह एक ऐसा कांटा है जो आपको ही चोट पहुंचाता है। क्रोध को पालना उसी समान है जैसे गर्म कोयले को किसी और पर फेंकने के लिए आपके हाथ पहले जख्मी होते हैं। अपने मोक्ष के लिए स्वयं प्रयत्न करें, दूसरों पर निर्भर न रहें।’
बुद्ध के जर्जर होते शरीर को देख उनका प्रिय शिष्य आंनद दुःख से बहुत अधिक भावुक हो रहा था। उसने तथागत को रुक जाने को कहा। इस पर बुद्ध बोले, ‘क्या मैंने तुम्हें नहीं सिखाया है कि पृथ्वी पर मौजूद सभी पदार्थों को वापस यहीं घुल जान है। फिर मेरे लिए ये कैसे संभव है कि मैं सदैव के लिए यहां रहूं? इसलिए अब तुम्हें अपना दीपक स्वयं बनना होगा।’
गत दिवस मुझे विश्व प्रसिद्ध बोध गया जाने का अवसर मिला तो वहाँ बुद्ध के अंतिम शब्द. जो उन्होंने आनद से कहे थे मेरे स्मृति पटल पर चलचित्र की तरह उपस्थित रहे थे। उन्ही शब्दो ने करोड़ों लोगो को अपना दीपक स्वयं बन कर सत्य को अपने अन्तस में खोजने की प्रेरणा दी।
गया से 18 किमी राष्ट्रीय राजमार्ग 83 पर स्थित बोधगया एक प्राचीन नगर है। तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में मौर्य साम्राज्य के शक्तिशाली शासक सम्राट अशोक ने बोध गया का दौरा कर महाबोधि मंदिर का निर्माण कराया। उन्हीं के प्रयासों से बोधगया प्रमुख बौद्ध तीर्थ स्थल के रूप में विकसित हुआ। आज पूरे विश्व के बौद्ध श्रद्धालु एवं पर्यटक महाबोधि मंदिर के दर्शनार्थ यहां आते हैं।
बोधगया में प्रवेश करते ही चहूं ओर देश-विदेश के श्रद्धालुओं के दर्शन होते हैं। विशेष यह कि यहां चीन, जापान, कोरिया, ताइवान आदि देशों के यात्री निवास, विश्रामगृह उनके देश की स्थापत्य शैली से साक्षात्कार कराते हैं। यहां अनेक मठों और ध्यान केंद्र हैं जहां श्रद्धालु आध्यात्मिक गतिविधियों में शामिल हो बौद्ध धर्म के बारे में जानकारी प्राप्त करते हैं। वाहनों को पुलिस पोस्ट से पूर्व ही पार्किंग करना होता है। वहां से महाबोधि मंदिर तक लगभग आधा किमी की दूरी पैदल तय करनी पड़ती है।
महाबोधि मंदिर परिसर के भव्य प्रवेशद्वार पर कड़ी जांच के बाद ही प्रवेश की अनुमति है। अंदर मोबाइल ले जाने की अनुमति नहीं है। लगभग हर बौद्ध श्रद्धालु आपने हाथ में सुंदर फूलों का महंगे गुलदस्ते लिए परिसर में प्रवेश पाता है लेकिन ये फूल तथागत तक नहीं पहुंचते। इन बहुमूल्य गुलदस्तों को श्रद्धालुजन महाबोधि मंदिर के चारो ओर इस तरह रखते हैं कि हर तरफ रंग-बिरंगें फूल की छटा और मोहक सुगंध एक अलग अनुभूति प्रदान करते हैं।
यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल के रूप में संरक्षित महाबोधि मंदिर का मनोहरम् दृश्य विश्वबंधुत्व से साक्षात्कार करता है। इस परिसर तथा बाहर भी स्थान-स्थान पर विभिन्न देशों के बौद्ध भिक्षु ध्यान मुद्रा में बैठे दिखाई देते हैं। उनकी हाथ में प्रार्थना की पुस्तकें किसी एक भाषा नहीं अपितु हर श्रद्धालु की अपनी भाषा में मिलती है।
मंदिर परिसर में श्रद्धालुजन पवित्र बोधि वृक्ष के दर्शन करते हैं जिसके तले वज्रासन (हीरे का सिंहासन) है। चारों ओर स्टील के मजबूत सरियों से सुरक्षित इस बोधिवृक्ष को उसी वृक्ष का वंशज माना जाता है जिसके नीचे बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ था। इसे स्पर्श करने की अनुमति नहीं है अतः बौद्ध भक्तों दर्शन करते हुए आगे बढ़ते हैं जहां मंदिर में भगवान बुद्ध की स्वर्ण प्रतिमा विराजमान है।
इस दिव्य आभा वाले स्थल में कभी बौद्ध साहित्य का अध्ययन करते हुए पढ़ा वह पद्य स्मरण हो उठा-
को नु हासो किमानन्दो निच्चं पज्जलिते सति।
अंधकारेन ओनद्धा पदीपं न गवेसथ।।
धम्मपद में दिए गए इस श्लोक के अनुसार- यह हँसना कैसा? यह आनंद कैसा? जब नित्य ही चारों ओर आग लगी है। संसार उस आग में जला जा रहा है। तब अंधकार में घिरे हुए तुम लोग प्रकाश को क्यों नहीं खोजते?
महाबोधि मंदिर परिसर में फोटोग्राफी की अनुमति नहीं है। दर्शन के बाद जब हम लौट रहे थे तो विशेष परिधान में विभिन्न देशों की एक टोली विचित्र संगीत वाद्य लिये मंदिर परिसर में प्रवेश कर रही थी। उससे अनुमान हुआ कि वहां संगीतमय प्रार्थना आदि भी की जाती है। महाबोधि मंदिर से कुछ दूरी पर बैठी हुई मुद्रा में बुद्ध की 80 फीट बुद्ध प्रतिमा स्थापित है जिसे अफगानिस्तान के बामयान के बाद सबसे ऊंची बुद्ध मूर्ति माना जाता है। ज्ञातव्य है चौथी और पांचवीं शताब्दी से काबुल (अफ़ग़ानिस्तान) के उत्तर पश्चिम में 230किलोमीटर की दूरी पर स्थित बामयान नामक स्थान पर बुद्ध की 115 और 174 फीट की दो विशाल मूर्तियां थी जिन्हें मार्च 2001 में तालिबानियों ने डाइनमाइट से उड़ा दिया गया था।
बोधगया में हर तरफ सजे धजे शोरूम में बौद्धमूर्तियां-कलाकृतियां तथा अन्य सामग्री खरीदी भी जा सकती है। लेकिन यहां का पुरातत्व संग्रहालय विशेष दर्शनीय है जहां प्राचीन बौद्ध मूर्तियों, कलाकृतियों का संग्रह है जिससे इस क्षेत्र की समृद्ध बौद्ध विरासत और इतिहास की जानकारी मिलती है। यूं तो बोधगया में भीड़ के कारण प्रतिदिन उत्सव का वातावरण रहता है लेकिन बुद्ध पूर्णिमा पर विशेष आयोजन होते हैं जिनकी धूम निराली होती है। बुद्ध के जन्म, ज्ञान प्राप्ति और परिनिर्वाण से परिचित कराते आयोजनों के दौरान बोधगया में तिल रखने की जगह भी नहीं मिलती है।