पोप लियो 14वें ने एकता के लिए काम करने की प्रतिबद्धता जताई

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वेटिकन सिटी, 18 मई (एपी) इतिहास में पहले अमेरिकी पोप, पोप लियो 14वें ने एकता के लिए काम करने की प्रतिबद्धता जताई ताकि कैथोलिक चर्च दुनिया में शांति का प्रतीक बन सके।

पोप लियो (69) ने सेंट पीटर्स स्क्वायर में आयोजित सामूहिक प्रार्थना सभा के दौरान प्रेम और एकता का संदेश दिया। इस कार्यक्रम में कार्डिनल (उच्च पादरी), बिशप और पादरियों समेत बड़ी संख्या में लोग मौजूद थे।

लियो ने इस मौके पर कहा कि वह प्रेम और एकजुटता के संदेश के जरिये लोगों के सेवक बनना चाहते हैं। उन्होंने कहा, “मैं चाहता हूं कि हमारी पहली बड़ी इच्छा एक संयुक्त चर्च की हो, जो एकता का प्रतीक हो, जो मेल-मिलाप वाली दुनिया के लिए एक उदाहरण बन जाए।’’

कार्यक्रम में पोप को एक धार्मिक वस्त्र और एक अंगूठी दी गई। धार्मिक वस्त्र नए पोप के पदभार ग्रहण करने का प्रतीक होता है। उन्होंने अपना हाथ घुमाकर अंगूठी को देखा और फिर प्रार्थना के दौरान अपने हाथ जोड़ लिए।

कार्यक्रम के दौरान सुरक्षा व्यवस्था कड़ी की गई थी।

अमेरिका के उपराष्ट्रपति जे.डी. वेंस, जो पोप फ्रांसिस के निधन से पहले उनसे मिलने वाले अंतिम विदेशी नेताओं में से एक थे, ने शनिवार देर रात रोम पहुंचने पर अर्जेंटीना के पोप की समाधि पर श्रद्धांजलि अर्पित करने के बाद शिकागो में जन्मे लियो को सम्मानित करने वाले अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व किया।

अमेरिका और अन्य स्थानों पर कैथोलिक चर्च में ध्रुवीकरण को देखते हुए एकता के लिए उनका आह्वान महत्वपूर्ण है।

अपना पूरा जीवन पेरू में सेवा करते हुए बिताने वाले लियो ने वेटिकन के बिशप के प्रभावशाली दायित्व को संभाल लिया और कैथोलिक चर्च के दो हजार साल के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ जब अमेरिका से पोप चुने गए थे।

ऑगस्टीनियन धार्मिक आदेश के सदस्य लियो आठ मई को पोप चुने गये थे।

वेंस के साथ अमेरिका के विदेश मंत्री मार्को रुबियो भी थे, जो रूस-यूक्रेन शांति वार्ता को आगे बढ़ाने के प्रयास के लिए समय से पहले रोम पहुंच गए हैं।

पेरू की राष्ट्रपति डिना बोलुआर्टे, यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की समेत कई राष्ट्राध्यक्ष इस कार्यक्रम में शामिल हुए। रूस का प्रतिनिधित्व संस्कृति मंत्री ओल्गा लियुबिमोवा कर रही हैं।

दुनिया के 36 अन्य ईसाई चर्चों ने अपने-अपने प्रतिनिधिमंडल भेजे, यहूदी समुदाय का 13 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल था, जिनमें से आधे रब्बी थे। अन्य प्रतिनिधियों ने बौद्ध, मुस्लिम, पारसी, हिंदू, सिख और जैन प्रतिनिधिमंडलों का नेतृत्व किया।

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