नयी दिल्ली, 19 मई (भाषा) उद्योग निकाय एसईए ने सोमवार को कहा कि भारत वैश्विक आपूर्ति बाधाओं के बीच अंतरराष्ट्रीय दर की तुलना में अपनी कम कीमत का फायदा उठाते हुए चीन के रैपसीड अथवा सरसों डी-आयल्ड केक (डीओसी) के आयात में अपनी बाजार हिस्सेदारी फिर से हासिल करना चाहता है।
भारतीय रैपसीड डीओसी में कारोबार 202 डॉलर प्रति टन (एक्स-कांडला एफएएस) के भाव पर हो रहा है, जबकि अंतरराष्ट्रीय कीमत 308 डॉलर प्रति टन (एक्स-हैम्बर्ग) है। इससे भारतीय निर्यातकों के लिए एक आकर्षक अवसर पैदा होता है।
सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन (एसईए) ने वाणिज्य मंत्रालय से आयात शर्तों में ढील के लिए चीनी अधिकारियों के साथ बातचीत करने का आग्रह किया है।
एसईए ने बयान में कहा कि मौजूदा समय में चीन के सामान्य सीमा शुल्क प्रशासन के साथ पंजीकृत केवल तीन भारतीय सुविधा केन्द्रों को चीनी बाजार में सरसों (रैपसीड) डीओसी का निर्यात करने की अनुमति है।
चीन, पशु आहार के लिए, सरसों डीओसी का प्रमुख उपभोक्ता है, जो अधिकांशतया कनाडा और यूरोपीय संघ से सरसों या रैपसीड डीओसी का आयात करता है जिन देशों में इसकी आपूर्ति कम हो गई है और कीमतें बढ़ गई हैं।
एसईए ने कहा, ‘‘इस मौजूदा आपूर्ति बाधाओं और बढ़ती लागत को देखते हुए अगर चीन भारतीय सरसों डीओसी पर अपनी कठोर आयात शर्तों में ढील दे तो भारत के पास अब चीनी बाजार में अपनी पकड़ फिर से हासिल करने का एक मूल्यवान अवसर है।’’
इस बीच, भारत के डीओसी निर्यात क्षेत्र को डिस्टिलर्स ड्राइड ग्रेन्स विद सॉल्यूबल्स (डीडीजीएस) से बढ़ती प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है, जो एक एथनॉल निर्माण के दौरान निकलने वाला उप-उत्पाद है जिसका उपयोग मवेशियों और मुर्गीदाने में प्रोटीन युक्त विकल्प के रूप में तेजी से किया जा रहा है।
एसईए ने कहा कि जिस तरह चारे के रूप में सोयाबीन डीओसी, रैपसीड डीओसी और चावल भूसी डीओसी जैसी पारंपरिक सामग्री के विकल्प के रूप में डीडीजीएस अपना स्थान बनाता जा रहा है उसे देखते हुए, ‘‘डीडीजीएस अब आपूर्ति श्रृंखला का हिस्सा है और उद्योग को अपने व्यवसाय को उसी के अनुरूप बदलना होगा।’’
उद्योग निकाय ने कहा कि यह बदलाव पारंपरिक डीओसी निर्यात में वृद्धि को कम कर सकता है, जिसके लिए प्रमुख बाजारों में मांग को बनाए रखने के लिए लक्षित रणनीतियों की आवश्यकता होगी।
इसमें यह भी उल्लेख किया गया है कि भारत ने रिकॉर्ड स्तर पर इस वर्ष खरीफ सत्र में सोयाबीन फसल तथा रबी सत्र में सरसों (रैपसीड) फसल काटी है, जिससे अधिक पेराई को प्रोत्साहन मिला है तथा खली और डीओसी की उपलब्धता में वृद्धि हुई है। ‘‘हालांकि, अंतरराष्ट्रीय बाजार में मूल्य असमानता के कारण निर्यात मांग में कमी है।’’