अभी कुछ दिन पहले संसद के दोनों सदनों से स्वीकृत किये गए वक्फ संशोधन बिल को राष्ट्रपति महोदया की मंजूरी मिलने के साथ ही अब ये कानून बन चुका है।
इस वक्फ बिल संशोधन बिल को पास करवाने के दौरान दो महत्वपूर्ण घटनाएं हुई जिसे काफी बारीकी से देखने पर ही देखने वालों को ही समझ आई…
पहली घटना,
इस बिल के आने से मुस्लिम संगठनों में दो फाड़ होता दिखा जिसमें एक धड़ा इस संशोधन के पक्ष में था और दूसरा इसके विरोध में।
संशोधन के पक्ष में मुसलिम राष्ट्रीय मंच….
और पसमांदा समाज के लोग थे,
जबकि विरोध में इन दोनों से अन्य आदि।
इससे एक बहुत बड़ा संदेश मिला कि
मुस्लिम राष्ट्रीय मंच को और ज्यादा सशक्त किये जाने की जरूरत है और दूसरा संदेश ये मिला कि ऐसा नहीं है कि गट्ठर खोला ही नहीं जा सकता है…और, यह अभेद्य है…..
अब यह स्पष्ट हो गया है कि गट्ठर खोला भी जा सकता है और बंधन काटा भी जा सकता है…
बशर्ते कि स्ट्रेटजी सही हो।
साथ ही, इस बिल के दौरान एक खास बात शायद बहुत कम लोगों ने नोटिस किया कि… मोदी जी संसद के किसी भी सदन में मौजूद नहीं थे बल्कि वे विदेशी दौरे पर थे।
कहने का आशय है कि…इस टास्क को पूरा करने की पूरी जिम्मेवारी उनके सेनापति ने ले रखी थी..और धारा 370 रिमूवल की तरह इस बार भी उनके सेनापति ने इस बार भी संगठनात्मक क्षमता के साथ साथ अन्य राजनैतिक पार्टियों से सामंजस्य एवं फ्लोर मैनेजमेंट की क्षमता का उत्कृष्ट प्रदर्शन किया।
लोग क्या सोचते हैं या कितना समझते हैं… लेकिन, यह साफ-साफ दिख रहा है कि ये सिर्फ संशोधन बिल नहीं था बल्कि एक अग्नि परीक्षा थी जो अपने उत्तराधिकारी को चुनने के लिए आयोजित की गई थी कि देखें, तुममें कितनी काबिलियत है.
बहुत से लोगों को शायद ये पसंद न आये लेकिन शायद अब इसी बिल के बाद इस यक्ष प्रश्न का पटाक्षेप भी हो गया है कि मोदी जी के बाद कौन..?
शायद इस बिल के जरिए मोदी जी ने बिना कुछ कहे ही सबको संदेश दे दिया है कि मोदी जी के बाद उनका उत्तराधिकारी कौन है ???
यहाँ यह स्पष्ट है कि कि बेशक महाराज जी बेहद कुशल प्रशासक हैं और वे प्रधानमंत्री पद के लिए योग्य उम्मीदवार हैं….
लेकिन……जहाँ तक राजनीति की समझ है तो शायद उनका नंबर अभी के उत्तराधिकारी के बाद ही आएगा क्योंकि, सारी की सारी परिस्थितियां इसी ओर इशारा कर रही हैं।
ये सिर्फ़ एक बिल नहीं था बल्कि उत्तराधिकारी की परख थी। मोदी जी ने बिना बोले बहुत कुछ कह दिया है।